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महादेव की नगरी काशी में आधी रात को शमशान में क्यों नाचती है नगरवधुएं?

मोक्ष नगरी काशी जिसके रहस्यों का खुलासा आज तक नहीं हुआ है, आज भी काशी के मणिकर्णिका घाट की रौनक यहां जल रही सैकड़ों चिताएं होती हैं जो ये बताती हैं मृत्यु ही जीवन का कटु सत्य है, लेकिन इन ही चिताओं के बीच कुछ नगरवधुएं 350 से चली आ रही परंपराओं का पालन कर रही थीं।

मोक्ष नगरी काशी जिसे महादेव की नगरी कहते हैं, इस स्थान को हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इस नगरी को बनारस के नाम से भी जाना जाता है, गंगा नदी के किनारे बसा ये शहर कलयुग के मोक्ष का द्वार है। मान्यता है कि काशी में मृत्यु होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी का मणिकर्णिका घाट जिसकी रौनक यहां जलती चिताएं से होती है, महाशमशान के नाम से जाने जाने वाले इस घाट में 24 घंटे चिताएं जलती हुई नजर आएंगी जो बयां करती हैं कि मृत्यु ही जीवन का कटु सत्य है, और सत्य को अपनाते हुए इस श्मशान के बीच, जलती चिताओं के बीच, कुछ वैश्या नाचते हुए नजर आई जिसे देख आपके भी मन में सवाल उठने लगे होंगे कि कौन हैं ये नगरवधुएं, आखिर क्यों ये जलती चिताओं के बीच नाच रही थीं? इस घाट पर चिताओं के जलने का सिलसिला आखिर क्यों थमने का नाम नहीं ले रहा था। 

महादेव की नगरी काशी जिसमें कई रहस्य आज भी छिपे हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को ये शहर इतना प्रिय है कि उन्होंने इस शहर को भगवान विष्णु से अपने निवास के लिए मांग लिया, ये शहर भगवान शिव के त्रिशूल पर बसा है, जब भगवान शिव ने अपना त्रिशूल आगे किया तब निर्माण हुआ काशी का। काशी को मानव शरीर के आकार का बनाया गया है जहां 72,000 मंदिर हैं जो शरीर में नाड़ियों के समान हैं, और यहां अलग-अलग संस्कृतियों के लोग रहते हैं, लेकिन काशी के कुछ रहस्य अभी तक सुलझाए नहीं गए हैं, जैसे कि बनारस में स्थित है एक ऐसा कुंड जहां आता है पाताल लोक से पानी, स्कंद पुराण में भी इसका जिक्र है और इसे सूर्य कुंड भी कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर धर्म नगरी काशी में 350 सालों से चली आ रही एक ऐसी परंपरा जिसे देखकर हम हैरान रह गए थे। दरअसल महाशमशान के बीच जलती चिताओं की राख पर कुछ नगरवधुएं नाच रही थीं जिनके आस-पास लोगों की भीड़ जमा हो गई। लेकिन इसका पहलु जुड़ा है वासंतिक नवरात्र के सप्तमी तिथि से जब वासंतिक नवरात्र के सप्तमी तिथि को महाशमशान नाथ मंदिर के कोने-कोने को लगभग 350 सालों से सजाने की परंपरा चली आ रही है, कहते हैं कि 16वीं सदी से चली आ रही इस परंपरा में हर साल नगरवधुएं अगले जन्म में वैश्यावृत्ति से मुक्ति पाने के लिए रात भर नाचकर कामना करती हैं। ये परंपरा राजा मानसिंह ने 16वीं शताब्दी में शुरू की थी, उन्होंने उस वक्त इस मंदिर की मरम्मत करवा कर नृत्य कार्यक्रम करवाना चाहा लेकिन किसी ने भी जलती चिताओं के बीच शमशान घाट में रात के वक्त नृत्य करने से मना कर दिया। इसके बाद वहां खुद कुछ वेश्याओं ने आकर यहां जलती चिताओं के बीच प्रस्तुति दी तब से उन्हें नगरवधुएं कहा जाता है और उस वक्त से ये परंपरा चली आ रही है।

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