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कांवड़ियों के लिए दिल्ली सरकार भी अपनाएगी 'योगी मॉडल', अलग से रूट, भरपूर फंड...सुविधाएं ऐसी कि नहीं चुभ सकेगा एक भी कांटा

श्रद्धा और भक्ति की प्रतीक, शिव भक्तों की यात्रा और सबसे बड़ी तपस्या कांवड़ यात्रा, जिसका श्री गणेश 11 जुलाई से होना है. इसी बीच शिव भक्तों को अभी से एक और 'योगी' मिल चुका है. अब ना ही पांव में कांटा चुभेगा और ना ही कोई मुसीबत झेलनी पड़ेगी, क्योंकि योगी बाबा के नक़्शे कदमों पर चली सीएम मैडम ने कांवड़ यात्रा को लेकर बड़ा ऐलान किया है?

भोले को प्रसन्न करने का बड़ा मौक़ा है, क्योंकि सावन जो आना है. त्रिलोक के स्वामी शिव शंकर, संहार के अधिपति होने के बावजूद सृजन के भी प्रतीक हैं. इनके लिए कहा जाता है कि इनका ना कोई आरंभ है और ना ही कोई अंत…ये तो अनादि, अनंत, अजन्मा हैं. भगवान शिव की दुनिया उनके भक्तों के लिए हमेशा से रहस्यमय रही है. शिव जैसा ऐसा कोई देव नहीं, जिसका श्मशान निवास स्थान हो. शिव जैसा ऐसा कोई देव नहीं, जिनकी जटाओं में माँ गंगा का स्थान हो. शिव जैसे ऐसे कोई देव नहीं, जिसने विष का प्याला पिया हो और शिव जैसा ऐसा कोई देव नहीं, जो इतना भोला हो. अपने इसी भोले को प्रसन्न करने के लिए भक्तों को हर साल सावन का इंतज़ार रहता है.

इस बार 11 जुलाई से सावन की शुरुआत हो रही है और इसी के साथ कांवड़ यात्रा भी निकलनी शुरू हो जाएगी. सावन में कांवड़ यात्रा की अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाइए—जो व्यक्ति कांवड़ लेकर आता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है. साथ ही सभी पापों का अंत भी हो जाता है. जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है. मृत्यु के बाद उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है और ऊपर से शिव द्वारा उसकी तमाम मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. इस बार की कांवड़ यात्रा शुरू होने में महज़ 20 दिनों का समय बचा है. ऐसे में प्रशासन की तैयारियाँ चरम पर हैं और राजधानी दिल्ली अभी से सुपर एक्टिव हो चुकी है.

अबकी बार की कावड़ यात्रा में शिव भक्तों को एक काँटा तक ना चुभे, इसके लिए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने हर संभव सुविधा देने का ऐलान किया है. अबकी बार सीएम मैडम का जो भगवा रूप देखने को मिला, उसके बाद से हर किसी का यही मानना है कि सीएम मैडम अब योगी बाबा के नक्शे कदम पर चल पड़ी हैं. तभी तो योगी की देखा-देखी दिल्ली में कावड़ के लिए सिंगल विंडो सिस्टम तैयार करवा रही हैं. हाल ही में हुई मीटिंग में सीएम मैडम ने कैबिनेट मंत्रियों को कांवड़ यात्रा के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियाँ सौंपी हैं. दरअसल, हर साल अलग-अलग राज्यों से आने वाले हजारों की संख्या में कांवड़ यात्री दिल्ली से होकर गुजरते हैं, जिस कारण राजधानी दिल्ली में उन्हें एक काँटा तक ना चुभे, इसके लिए सीएम मैडम का कहना है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि शिव भक्तों के पांव में एक भी काँटा न चुभे. कांवड़ यात्रा आस्था, भक्ति और अनुशासन का पर्व है. सरकार इसे कुशल बनाने के लिए हर संभव कदम उठाएगी.

वहीं, समितियों की चिंताओं पर सीएम ने आश्वासन दिया कि इस साल उन्हें किसी भी तरह की प्रशासनिक बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा. करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद शिव भक्तों को परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं, लेकिन इस बार सरकार ऐसा नहीं होने देगी.

मतलब बिल्कुल साफ है कि दिल्ली से होकर जितनी बड़ी कांवड़ यात्रा निकलेगी, उसकी देखरेख की जिम्मेदारी मंत्री से लेकर जिला विकास समिति के अध्यक्ष और जिलाधिकारी के ज़रिए की जाएगी. मैडम सीएम के इसी भगवा अंदाज़ को देख शिव भक्तों को उम्मीद है कि यूपी के बाद अब दिल्ली में भी उन पर पुष्पवर्षा होनी शुरू हो जाएगी. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली को भी अपना योगी मिल चुका है.

बहरहाल, कांवड़ से जुड़ी एक रोचक जानकारी आपके लिए. क्या आप जानते हैं कि इस सृष्टि का पहला कांवड़िया कौन था? इसको लेकर धर्म ग्रंथों में दो नामों का ज़िक्र मिलता है—एक लंकापति रावण और दूसरा भगवान परशुराम.

मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान शिवजी ने हलाहल विष पी लिया था. विष के गंभीर नकारात्मक प्रभावों ने शिवजी को असहज कर दिया. महादेव को इस पीड़ा से मुक्त कराने के लिए उनके परम भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर कई वर्षों तक उनका जलाभिषेक किया. इसके चलते शिवजी विष के प्रभाव से मुक्त हुए और उनके गले में हो रही जलन शांत हो गई. यहीं से कांवड़ यात्रा का आरंभ माना जाता है.

हालाँकि, कुछ मान्यताओं में प्रथम कांवड़िया भगवान परशुराम को माना जाता है. कथा के अनुसार, परशुराम को सहस्त्रबाहु की हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने के लिए गंगाजल से शिव का अभिषेक करने का निर्देश मिला. इसके चलते परशुराम जी ने मीलों पैदल यात्रा कर कांवड़ में गंगाजल भरकर लाया. अपने आश्रम के पास उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर महादेव का जलाभिषेक किया. उसी दिन से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई.

अगर आप भी कांवड़ यात्रा पर जाने के इच्छुक हैं, तो फिर बोलिए—जय भोलेनाथ!

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