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माडवी हिड़मा: 76 जवानों का हत्यारा, कांग्रेस के काफिले को खून से रंगा… सबसे खूंखार नक्सली की क्रूर कहानियां

एक दुबला-पतला शरीर, परछाई की तरह गायब होने वाली चाल, लेकिन क्रूरता से भरे इरादे, नाम माडवी हिड़मा, जो नक्सलियों का आका कहा जाता था. अब उसके अंत के साथ ही छ्तीसगढ़ समेत कई इलाकों में लाल आतंक का भी अंत हो गया है.

18 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
09:55 AM )
माडवी हिड़मा: 76 जवानों का हत्यारा, कांग्रेस के काफिले को खून से रंगा… सबसे खूंखार नक्सली की क्रूर कहानियां

छत्तीसगढ़ के जंगलों में उसकी आहट भर से हवा का रुख बदल जाता था. उसके कदमों के साथ एक तूफान भी आता था. ऐसा तूफान जिससे पूरा जंगल थर्रा जाता था. एक दुबला-पतला शरीर, परछाई की तरह गायब होने वाली चाल, लेकिन क्रूरता से भरे इरादे, नाम माडवी हिड़मा, जो नक्सलियों का आका कहा जाता था. अब उसके अंत के साथ ही छ्तीसगढ़ समेत कई इलाकों में लाल आतंक का भी अंत हो गया है. कौन था नक्सल कमांडर हिड़मा जिसके खूनी खेल ने सुरक्षा एजेंसियों से लेकर दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक को खौफजदा रखा और कब-कब उसने पूरे देश को दहलाया? जानते हैं 

साल 2004 से लेकर 2025, करीब दो दशक तक हिड़मा ने जंगलों से लाल आतंक से नरसंहार मचाया. हिड़मा बस्तर समेत कई इलाकों में खौफ और क्रूरता का पर्यायवाची बन गया था. 

साल 2010- दंतेवाड़ा हमला 

तारीख थी 6 अप्रैल 2010, जगह- दंतेवाड़ा का ताड़मेटला इलाका. सुबह-सुबह CRPF के 150 जवान सर्चिंग के लिए निकले थे. जवान सर्चिंग से वापस लौट ही रहे थे कि करीब 1000 नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया. नक्सलियों ने पहले ब्लास्ट किया और फिर अंधाधुंध फायरिंग करने लगे. नक्सलियों के इस बर्बर हमले में 76 जवान शहीद हो गए. इसे नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा हमला माना गया. जिसकी पटकथा लिखी थी माडवी डिड़मा ने. उसी ने हमले की रणनीति बनाई और बसवाराजू के साथ मिलकर इसे अंजाम दिया. 

साल 2013- झीरम घाटी हमला 

25 मई 2013 की तारीख भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे काले दिन में दर्ज है. उस दिन बस्तर में कांग्रेस पार्टी की परिवर्तन यात्रा निकल रही थी. काफिले की 25 गाड़ियों में करीब 200 नेता चल रहे थे. इनमें छत्तीसगढ़ की टॉप लीडरशिप शामिल थी. जैसे ही काफिला झीरम घाटी मोड़ पर पहुंचा, हिड़मा के लोगों ने चारों ओर से घेर लिया. नक्सलियों की ये बटालियन पहले से ही घात लगाकर काफिले का इंतजार कर रही थी. चारों ओर बमबारी का धुआं, गोलियों की तड़तड़ाहट का शोर और क्रूर का खेल शुरू हुआ. चंद ही मिनटों में सब कुछ खामोश हो गया, सड़क खून से रंग गई. काफिला हमेशा के लिए थम गया. इस बड़े नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ला, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा समेत 29 लोग मारे गए. जांच में सामने आया कि इस पूरे हमले की प्लानिंग से लेकर अंजाम तक पहुंचाने में हिड़मा सर्वेसर्वा था. 

साल 2017- बुर्कापाल हमला 

CRPF के जवानों पर ये दूसरा बड़ा नक्सली हमला था. जिसने सुरक्षा सिस्टम की जड़ों को हिलाकर रख दिया था. जब CRPF के जवान सड़क निर्माण कार्य में सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. घात लगाकर बैठी हिड़मा की टीम ने इन जवानों पर हमला बोल दिया. जिसमें 24 जवाब शहीद हो गए. हमले का तरीका वैसा ही था बिल्कुल हिड़मा स्टाइल. यानी वो ही बारूदी धुआं, बमबारी, फिर गोलीबारी और चंद ही पलों में खेल खत्म, दशहतगर्द फरार. हिड़मा के लोग पूरे इलाकों की घेराबंदी करते थे और फिर इस तरह हमला करते थे कि बचने का चांस न के बराबर रहे. हिड़मा का खौफ बस्तर के जंगलों तक ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ से सटे बॉर्डर इलाकों में भी था. जैसे मध्य प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा. 

कौन था माडवी हिड़मा? 

हिड़मा का असली नाम संतोष था. साल 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा में उसका जन्म हुआ था. वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की सबसे घातक हमलावर यूनिट पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) बटालियन नंबर 1 का प्रमुख था. इस संगठन का वह इकलौता आदिवासी नेता माना जाता था. धीरे-धीरे उसने नक्सलवाद में खुदको इस तरह से लिप्त कर दिया कि लाल आतंक का आका कहलाने लगा और टॉप कमांडर का दर्जा हासिल कर लिया. 

दुबला पतला शरीर, खतरनाक इरादे

माडवी हिड़मा देखने में भले ही दुबला-पतला लगता था लेकिन बिजली की गति जितना फुर्तीला था. जो पलक झपकते ही मंसूबे पूरे कर फरार हो जाता था. जो जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था. पहाड़ी रास्ते भी उसे सुगम लगते थे, गुरिल्ला टैक्टिस और करीब से हमला उसकी खासियत थी. हिड़मा को घोस्ट कमांडर भी कहा जाता था. छोटे बड़े नक्सली हमलों का वह सबसे क्रूर चेहरा था. जिसने सुरक्षाबलों से लेकर, खुफिया तंत्र और राजतंत्र सबको अपनी उंगली पर नचा रखा था. आखिरकार सुरक्षा तंत्र ने हिड़मा के अभेद किले को भेद ही दिया. 

छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर मरेडमिल्ली जंगल में हुए एनकाउंटर में देश का सबसे खतरनाक नक्सल कमांडर हिड़मा मारा गया. उसके साथ-साथ राजे उर्फ रजक्का और 4 बड़े नक्सलियों को भी ढेर कर दिया गया है. 

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