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बॉबी मर्डर केस: बिहार की सियासत का वो काला कांड जिसने दिल्ली तक हिला दी सरकार, कांग्रेस नेता को बचाने के लिए पलट दी कहानी!

1983 के दौर में बिहार में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय विधानसभा में एक लड़की मामूली सी नौकरी करती थी. उस लड़की का नाम श्वेत निशा उर्फ बेबी था. चाहने वाले उसे बॉबी भी बोलते थे. निशा इतनी सुंदर थी कि विधानसभा में नेता उस पर फ़िदा थे. ख़ूबसूरती के चर्चे हर सियासतदानों की ज़ुबान पर रहते थे. हर किसी की एक ही ख्वाहिश थी कि निशा बस एक झलक देख भर ले.

01 Sep, 2025
( Updated: 03 Dec, 2025
02:48 PM )
बॉबी मर्डर केस: बिहार की सियासत का वो काला कांड जिसने दिल्ली तक हिला दी सरकार, कांग्रेस नेता को बचाने के लिए पलट दी कहानी!

बिहार की सियासी किताब के कुछ पन्ने ऐसे हैं जिनमें काले कांड के दाग आज भी स्याह है. काली करतूतों के ये छिंटे नेताओं के सफ़ेद कुर्ते को हमेशा के लिए दागदार कर गए. बॉबी मर्डर केस भी बिहार की उसी काली सियासत का एक चैप्टर है जिसने पटना से दिल्ली तक  के दरख़्त हिला दिए थे. चलिए जानते हैं बिहार की सबसे सनसनीख़ेज़ मिस्ट्री बॉबी हत्याकांड के बारे में. 

साल था 1983, बिहार विधानसभा में एक लड़की मामूली सी नौकरी करती थी. उस लड़की का नाम श्वेत निशा उर्फ बेबी था. चाहने वाले उसे बॉबी भी बोलते थे. निशा इतनी सुंदर थी कि विधानसभा में नेता उस पर फ़िदा थे. ख़ूबसूरती के चर्चे हर सियासतदानों की ज़ुबान पर रहते थे. हर किसी की एक ही ख्वाहिश थी कि निशा बस एक झलक देख भर ले. निशा की मां राजेश्वरी सरोज दास उस समय विधानसभा में उपसभापति थी. राजेश्वरी सरोज दास ने निशा को गोद लिया था. घर पर नेताओं का आना-जाना था. सिलसिला इसलिए भी बढ़ रहा था क्योंकि ज़्यादातर नेता निशा को देखने किसी न किसी बहाने उनके घर आते थे. 

निशा की ख़ूबसूरती के दीवाने कभी उसे बॉबी बुलाते तो कुछ उसकी तुलना पाटलिपुत्र की नगरवधू से ही कर देते. विधायकों के साथ साथ मंत्री भी उस पर लट्टू रहते थे. निशा के बारे में कहा जाता है कि उसने बीच में ही कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी. उसने दो शादियां भी की थी, लेकिन पति के साथ नहीं रहती थी. हालांकि ये कभी पता नहीं चल पाया कि उसके दो पति कौन थे. 

(फोटो- दिवंगत IPS ऑफिसर किशोर कुणाल और बॉबी )

7 मई 1983 की रात अचानक निशा की तबीयत बिगड़ गई. उसे पेट दर्द और उल्टियां हो रही थीं. फिर देर रात डॉक्टर के साथ एक शख्स निशा के घर आता है. शख़्स कार से नीचे नहीं उतरा लेकिन डॉक्टर अंदर गया और गर्म पानी में दवाई घोलकर निशा को पिला दी. निकलने से पहले डॉक्टर ने निशा की मां राजेश्वरी सरोज दास से कहा कि, टेंशन की कोई बात नहीं है, लेकिन असल में बात टेंशन की ही थी सुबह ख़बर आई कि बॉबी की मौत हो गई. कहने को तो तबीयत बिगड़ने से बॉबी की मौत हुई थी लेकिन उसके शव को 4 घंटे के अंदर ही उसे चुपचाप क़ब्रिस्तान में दफ़ना दिया गया. किसी को भनक तक नहीं लगने दी. 

सियासत में उठा तूफान 

उस वक़्त बिहार में कांग्रेस सरकार थी. चूंकी निशा उर्फ़ बॉबी विधानसभा का चर्चित चेहरा थी. इसलिए इस मौत ने बिहार के सियासी हलको में हड़कंप मचा दिया और शुरू हुआ इस केस की जांच रुकवाने का सिलसिला, असलियत छुपाने का सिलसिला. क्योंकि सच सियासत की नींव हिला सकता था कई सफ़ेदपोश बेनक़ाब हो सकते थे. 

IPS के पास आई एक कॉल से शुरू हुई जांच 

तत्कालीन IPS ऑफ़िसर और पटना के SSP दिवंगत किशोर कुणाल ने इस केस को अपने हाथ में लिया. दरअसल, निशा की मौत के तीन दिन बाद अख़बारों में मौत की ख़बर छपी थी. लेकिन पुलिस का न कोई बयान था न कोई केस दर्ज किया गया था. दो बड़े अख़बार के रिपोर्टर ने SSP किशोर कुणाल को कॉल किया. सामने से आवाज़ आई कि क्या पटना में कोई सनसनीख़ेज़ मर्डर हुआ है? इस पर किशोर कुणाल ने जवाब दिया मेरा वायरलेस हमेशा ऑन रहता है ऐसी कोई जानकारी नहीं आई. फिर रिपोर्टर बताता है कि, सचिवालय थाना क्षेत्र में एक मर्डर हुआ है और इसमें कई नेताओं का हाथ है.  सुनकर किशोर कुणाल हैरान रह गए. उन्होंने इलाक़े के पुलिस थाने में कॉल लगाया लेकिन निशा की मौत की रिपोर्ट वहां भी दर्ज नहीं थी. इसके बाद SSP ने तुरंत इस मामले की तफ्तीश के निर्देश दिए. अगले दिन पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल को बताते हैं कि एक लड़की की मौत हुई है नाम है श्वेत निशा त्रिवेदी. 

अधिकारियों की रिपोर्ट में कहीं भी हत्या की बात नहीं कही गई थी. लेकिन अख़बारों ने निशा की मौत की ख़बर को पहले पन्ने पर छापा. साथ में ‘बॉबी की संदिग्ध स्थिति में मौत, लाश को कहीं छिपाया गया’ जैसे शीर्षक दिए. धीरे धीरे मामला गर्माने लगा. केस की गंभीरता को देखते हुए SSP किशोर कुणाल ने इसमें दिलचस्पी ली और FIR दर्ज की. 

रिपोर्ट में हत्या की दो वजह

किशोर कुणाल ने अपनी किताब दमन तक्षकों में बॉबी हत्याकांड के हर एक पहलू को सिलसिलेवार तरीक़े से लिखा है. उन्होंने बताया कांग्रेस नेता के बेटे को बचाने के लिए हत्या को मौत की शक्ल दे दी गई. मौत के 4 घंटे के अंदर शव को दफ़नाना और डेथ सर्टिफिकेट में हत्या की दो अलग अलग वजह ने किशोर कुणाल के शक को और गहरा दिया था. 

बॉबी की मां ने छुपाए फैक्ट

अपनी किताब ‘दमन तक्षकों’ में किशोर कुणाल लिखते हैं, केस की जांच के लिए बतौर SSP वह सबसे पहले बॉबी की मां के पास पहुंचे. मां राजेश्वरी सरोज दास ने बताया कि 7 मई को बॉबी घर से बाहर गई हुई थी रात को घर लौटी तो उसके पेट में तेज़ दर्द हुआ और खून की उल्टियां होने लगीं. डॉक्टर ने जांच की और कुछ देर बाद ही बॉबी की मौत हो गई. बॉबी ईसाई थी इसलिए उसे क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया. किशोर कुणाल को बॉबी के दो डेथ सर्टिफिकेट की भी जानकारी थी इसलिए उन्हें बॉबी की मां की बातों पर शक हुआ. रिपोर्ट में मौत की एक वजह ब्लीडिंग बताई गई थी तो दूसरी रिपोर्ट में हार्ट अटैक लिखा गया. दोनों रिपोर्ट के बीच महज़ आधे घंटे का फ़ासला था यानी पहली रिपोर्ट के मुताबिक़, बॉबी की मौत सुबह 4 बजे हुई थी तो दूसरी में साढ़े चार बजे. दो अलग अलग वजह और टाइमिंग ने SSP किशोर कुणाल का सिर भी घुमा दिया. 

कब्र से बॉबी की लाश निकालकर करवाया पोस्टमार्टम 

मौत की असली वजह और समय जानने के लिए किशोर कुणाल ने बॉबी का शव कब्रिस्तान से निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. विसरा जांच में सामने ‘आया कि, ब़ॉबी को मेलेथियन' नाम का जहर दिया गया था. अब साफ हो गया था बॉबी का मर्डर किया गया है. 

उपसभापति के हाउस हेल्पर ने उगले राज 

पुलिस ने मामले की तफ्तीश तेज़ कर दी थी. हाउस हेल्पर के बयान भी लिए जा रहे थे, लेकिन ये तो पुलिस भी जानती थी कि सच उगलवाना इतना आसान नहीं. ऐसे में उप सभापति के आउट हाउस में रहने वाले दो कर्मचारियों को पुलिस अपने साथ दूर ले गई और पूछताछ की. दोनों कर्मचारियों ने जो राज बताए उसे सुन पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि क्यों आख़िर इस केस को दबाया जा रहा था. दोनों कर्मचारियों ने बताया कि, 7 मई की रात बॉबी से मिलने एक शख़्स आया था. ये शख़्स कोई और नहीं बल्कि उस वक्त के कांग्रेस की एक बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा रघुवर झा था. 

स्टिंग ऑपरेशन में छलका बॉबी की मां का दर्द 

SSP किशोर कुणाल एक बार फिर बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज के पास पहुंचे. उन्होंने कहा- मैडम आप बूढ़ी हो गई हैं बेटी को न्याय दिलाने के सिए बुढ़ापे में तो सच बोलिए. किशोर कुणाल की बात सुनकर राजेश्वरी का दिल भर आया. उन्होंने बताया, उस रात रघुवर झा ने ही बॉबी को एक दवाई दी थी. जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ गई. फिर फ़र्ज़ी डॉक्टर ने उसका इलाज किया और नकली रिपोर्ट तैयार की. बॉबी की मां का ये बयान कुर्सी के नीचे रखे टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड हो रहा था. किशोर कुणाल ने ये रिकॉर्डर चुपचाप वहां रखा था. हालांकि बाद में उन्होंने इसके बारे में बॉबी की मां को बताया था. राजेश्वरी सरोज दास ने 28 मई 1983 को कोर्ट में भी ये ही कहा था कि उनकी बेटी को ज़हर दिया गया था. 

दिल्ली तक हुई केस दबाने की कोशिश 

चूंकी केस में कांग्रेस की बड़ी नेता के बेटे का नाम था. बिहार के सियासी हलको में हड़कंप मच गया. बिहार से निकलकर बात दिल्ली तक पहुंच गई थी. देशभर में बॉबी मर्डर केस को लेकर लोगों में उबाल था. जांच के साथ कुछ नेताओं की धड़कने भी तेज होती जा रही थी. क्योंकि मुख्य आरोपी रघुवर झा फंसा तो वह अपने साथ कई और नेताओं को भी फंसाएगा. दूसरी ओर कांग्रेस पर विपक्ष का दबाव भी बढ़ता जा रहा था. 

40 MLA और दो मंत्रियों ने CM को दी धमकी 

उस वक़्त बिहार में कांग्रेस के डॉ. जगन्नाथ मिश्र CM थे. हत्याकांड में ज़्यादातर कांग्रेस नेताओं का नाम शामिल था. इसलिए एक दिन अचानक 40 MLA औ 2 मंत्री मुख्यमंत्री के ऑफिस पहुंच गए. CM को सीधे-सीधे चेतावनी दे डाली. सभी ने कहा, अगर केस बिहार पुलिस से CBI को ट्रांसफर नहीं किया गया तो सरकार गिरा देंगे. विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर भी लगातार इस केस की CBI जांच की मांग कर रहे थे. 

100 लोगों के बयान, तीन आरोपी 

किशोर कुणाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, बॉबी हत्याकांड में एक नहीं बल्कि तीन मुख्य आरोपी थे. केस में कुल 100 लोगों के बयान दर्ज किए गए थे. सभी ने बॉबी और उसके नेताओं से कनेक्शन के बारे में जो बताया उससे जांच की आंच में कई नेताओं तक पहुंच रही थी. सफ़ेद लिबास में छिपे चेहरों की घिनौनी करतूत बाहर आ सकती थी

जब मुख्यमंत्री से SSP ने कहा-केस से दूर रहिए 

केस लगभग सुलझ चुका था SSP किशोर कुणाल ने सारे सबूत इकट्ठा कर लिए थे. तैयारी गिरफ़्तारी की थी कि एक दिन उनके पास CM का फोन आता है. CM जगन्नाथ मिश्र ने उनसे पूछा- बॉबी केस में क्या हो रहा है. इस पर किशोर कुणाल ने जवाब दिया- सर अन्य मामलों में आपकी छवि चाहे जैसी हो, इसमें आप बेदाग हैं. इसलिए इस केस में हाथ मत डालिए नहीं तो हाथ जल जाएगा. इतना सुनकर CM ने कॉल कट कर दिया. 

CBI के पास पहुंचा केस और बदल गई थ्योरी 

बिहार पुलिस की टीम इस केस की कार्रवाई में लगभग अपने आख़िरी पड़ाव पर थी. उसी वक़्त 25 मई 1983 को इस केस को बिहार पुलिस से लेकर CBI को सौंप दिया गया और यहीं से बदल गई पूरी थ्योरी. 

हत्या बन गई मौत, बंद हुआ केस 

CBI की जांच में इस केस को मर्डर नहीं बल्कि सुसाइड माना गया. CBI ने अपने रिपोर्ट में बताया कि बॉबी अपने प्रेमी से मिले धोखे से परेशान थी, इसलिए उसने सेंसीबल नाम की टैबलेट खा ली थी. रिपोर्ट में ये भी लिखा गया कि, कांग्रेस नेता का बेटा रघुवर झा इस मामले में निर्दोष है और घटना के दिन वो एक शादी में गया था. CBI ने आरोपी रघुवर झा से केस को बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज की ओर मोड़ दिया. CBI ने रिपोर्ट में बताया कि, बॉबी से जुड़े लेटर और डॉक्यूमेंट्स को उसकी मां राजेश्वरी ने ही जलाया था, ताकि बड़े लोगों का नाम इस केस में न आए. 

CBI ने ये सब कुछ अपनी क्लोजर रिपोर्ट में लिखा था. आख़िरकार बॉबी मर्डर केस सुसाइड का केस बनकर बंद हो गया. किशोर कुणाल अपनी किताब में लिखते हैं कि उस वक़्त PIL दाखिल नहीं होती थी. लोगों ने केस को दोबारा खोलने की अपील भी की थी, लेकिन कोर्ट ने अपील ख़ारिज कर दी. कोर्ट का कहना था कि, मृतक का परिवार या सरकार ही इस केस को खोलने के लिए अपील कर सकती है.

कांग्रेस नेता का बेटा निर्दोष करार देते हुए बच निकला. साथ-साथ कई सफ़ेदपोश बेनक़ाब होते-होते रह गए. सारा दोष आ गया बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज पर, ये केस बंद हो गया और इंसाफ़ का रास्ता भी. बॉबी के साथ साथ राजनीति के कुछ घिनौने राज भी अनसुलझे रह गए थे. 

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