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'गायब' होने की अटकलों के बीच जनता से सामने आए खामेनेई, लेकिन लोगों की उम्मीद के बावजूद नहीं दिया कोई संदेश

ईरान और इजरायल के बीच 12 दिन चले संघर्ष और 24 जून को हुए युद्धविराम के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई आशूरा के मौके पर पहली बार जनता के सामने आए. तेहरान में आयोजित धार्मिक समारोह में वे काले वस्त्रों में नजर आए और पारंपरिक अंदाज में लोगों का अभिवादन किया. हालांकि उन्होंने कोई भाषण नहीं दिया, लेकिन उनकी सार्वजनिक मौजूदगी को एक अहम राजनीतिक संकेत माना जा रहा है.

ईरान और इजरायल के बीच 12 दिन तक चले भयंकर हवाई संघर्ष और 24 जून को हुए युद्धविराम के बाद आखिरकार ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने पहली बार सार्वजनिक रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. शनिवार को तेहरान में आयोजित शिया मुसलमानों के सबसे पवित्र अवसर आशूरा के मौके पर उन्होंने जनता के बीच आकर कई अटकलों पर विराम लगा दिया. समारोह के दौरान खामेनेई काले वस्त्रों में नजर आए और उन्होंने पारंपरिक शिया अंदाज में सिर झुकाकर और हाथ हिलाकर उपस्थित जनसमूह का अभिवादन किया. हालांकि, उन्होंने मंच से कोई राजनीतिक या धार्मिक संदेश नहीं दिया. लेकिन उनका आना ही अपने-आप में एक बड़ा प्रतीक बन गया है.

युद्ध के बाद पहली बार सामने आए खामेनेई
86 वर्षीय अयातुल्ला खामेनेई की यह उपस्थिति इस लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि 13 जून को इजरायल द्वारा ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ की शुरुआत के बाद से वे लगातार सार्वजनिक रूप से अनुपस्थित रहे थे. उस ऑपरेशन में इजरायल ने ईरान के कई परमाणु केंद्रों, सैन्य अड्डों और प्रमुख अधिकारियों को निशाना बनाया था. इन हमलों में ईरान के कई उच्चस्तरीय सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए थे. इसके बाद से खामेनेई केवल रिकॉर्ड किए गए वीडियो संदेशों के माध्यम से ही सामने आते रहे थे. ऐसे में उनकी इस सार्वजनिक झलक को उनके स्वास्थ्य और नियंत्रण को लेकर किए जा रहे सवालों का स्पष्ट जवाब माना जा रहा है.

बिना कुछ बोले खामेनेई ने दिया राजनीतिक संदेश 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खामेनेई की यह सार्वजनिक मौजूदगी केवल धार्मिक श्रद्धा का हिस्सा नहीं थी, बल्कि यह एक सुविचारित राजनीतिक संदेश भी है. उनकी चुप्पी और ग़ैरहाज़िरी के चलते विरोधी खेमों में यह धारणा बन रही थी कि शायद ईरानी नेतृत्व लड़खड़ा गया है या खामेनेई गंभीर संकट में हैं. लेकिन आशूरा के मौके पर उनका सशक्त और संयमित रूप में सामने आना ईरानी जनता के मनोबल को पुनर्जीवित करने और विश्व को यह दिखाने की कोशिश है कि ईरान अब भी संगठित और आत्मविश्वासी है.

ईरान-इजरायल संघर्ष में भारी नुकसान
ईरान की न्यायपालिका के अनुसार, इस 12 दिन के संघर्ष में 900 से अधिक लोग मारे गए. जबकि अमेरिका की मदद से इजरायल द्वारा किए गए हमलों में ईरान की परमाणु ठिकानों को भी भारी नुकसान पहुंचा है. हालांकि, आधिकारिक रूप से यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उन परमाणु केंद्रों की वास्तविक क्षति कितनी गंभीर है. इस पूरे संघर्ष के दौरान अमेरिका ने इजरायल को राजनीतिक और सैन्य समर्थन दिया, वहीं ईरान ने भी अपनी सीमा सुरक्षा को हाई अलर्ट पर रखते हुए कई जवाबी हमले किए. 

आशूरा का अवसर और खामेनेई की भूमिका
जानकरी देते चलें कि आशूरा शिया इस्लाम के लिए बेहद खास दिन होता है. यह दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. तेहरान में आयोजित समारोह में खामेनेई की मौजूदगी ने पूरे कार्यक्रम को विशेष बना दिया. समारोह के दौरान ‘लब्बैक या हुसैन’ के नारों की गूंज सुनाई दी और उपस्थित लोगों ने खामेनेई के स्वागत में उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया दी. इस उपस्थिति ने यह भी सुनिश्चित किया कि ईरान का शीर्ष नेतृत्व जनता के साथ खड़ा है और धर्म तथा राष्ट्रीय सुरक्षा, दोनों ही मोर्चों पर सक्रिय है.

खामेनेई की आशूरा समारोह में उपस्थिति एक राजनीतिक और सामाजिक संदेश लेकर आई है. यह न केवल उनके नेतृत्व की निरंतरता का संकेत है, बल्कि ईरान की जनता को यह भरोसा दिलाने की कोशिश भी है कि संकट के समय में उनका नेतृत्व कमजोर नहीं हुआ है. ईरान-इजरायल संघर्ष के दौरान उनकी अनुपस्थिति ने जहां कई अटकलों को जन्म दिया, वहीं उनकी यह एक झलक अब यह संकेत दे रही है कि ईरान की रणनीति और नेतृत्व दोनों अभी भी नियंत्रण में हैं. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि खामेनेई अपने आगे के कदमों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ईरान की स्थिति को कैसे स्थापित करते हैं.

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