VIDEO: जेब में नहीं पैसे, फिर भी 93 साल के बुजुर्ग ने पत्नी को दिलाया मंगलसूत्र, सुनार भी रो पड़ा
93 साल के बुजुर्ग ने अपनी पत्नी के लिए सोने का मंगलसूत्र खरीदने की भावुक कहानी, जिसमें गरीबी के बीच भी सच्चे प्यार और इंसानियत की मिसाल दिखी.जानिए कैसे एक ज्वैलर ने 20 रुपये में दिया मंगलसूत्र और इस जोड़ी की प्रेम कहानी ने लोगों के दिल जीते.
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कहते हैं कि सच्चा प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता. महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर की ये कहानी इसी सच्चे प्रेम और उम्मीद की मिसाल है, जिसने 93 साल के बुजुर्ग निवृत्ति शिंदे की आंखों में फिर से रोशनी भर दी. निवृत्ति का सपना था कि वो अपनी पत्नी शांताबाई को सोने का मंगलसूत्र दिलाएं, लेकिन गरीबी ने उनकी इस इच्छा को अधूरा छोड़ दिया था. पैसों की कमी के बावजूद, उनकी दिल में पत्नी के लिए प्यार और खुशियां देने की तमन्ना थी.
मुश्किलों के बावजूद प्यार की मिसाल
निवृत्ति और शांताबाई जालना जिले के एक छोटे से गांव अंभोरा जहांगीर के किसान परिवार से आते हैं. जीवन की कठिनाइयों ने इन दोनों को बुरी तरह प्रभावित किया है — उनके एक बेटे का निधन हो चुका है, जबकि दूसरा बेटा उनकी देखभाल करने में असमर्थ है. मजबूर होकर वे अपना घर छोड़कर छत्रपति संभाजीनगर आ गए, जहां वो गजानन महाराज मंदिर के पास भीख मांगकर अपना गुजारा कर रहे हैं.
A gold mangalsutra is purchased by an elderly couple on a pilgrimage to Pandharpur from a jewelry store. Unaware of the cost, the wife naively offers her meager savings.
— Akanksha Ojha (@obsolete_utopia) June 17, 2025
"Please keep your money. Just bless me, and may Lord Pandurang bless us all," the shopkeeper replied.
❤️❤️❤️ pic.twitter.com/x0M4dzOdb7
ज्वैलर की दुकान पर मिली उम्मीद की किरण
जब निवृत्ति और शांताबाई “गोपिका ज्वेलर्स” की दुकान पहुंचे और अपनी स्थिति बताई, तो दुकान के मालिक नीलेश खिवंसरा की आंखें नम हो गईं. उन्होंने बुजुर्ग दंपती से पूछा कि उनके पास कितना पैसा है. निवृत्ति ने 1,120 रुपये नकद दिखाए, जो उनकी सारी बचत थी. उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति और गहरे प्रेम को समझते हुए, नीलेश ने बुजुर्ग दंपती को मात्र 20 रुपये में मंगलसूत्र दे दिया. उन्होंने कहा, “आपके और पांडुरंग के आशीर्वाद से हमें और सफलता मिलेगी.”
एक छोटा मंगलसूत्र, एक बड़ी खुशी
शांताबाई पिछले दस सालों से मंगलसूत्र पहनने का सपना देख रही थीं, पर गरीबी ने बार-बार उन्हें निराश किया. चार दुकानों ने उनसे ये मांग पूरी करने से इनकार कर दिया, लेकिन पांचवीं दुकान पर उन्हें न केवल सम्मान मिला, बल्कि एक ऐसा तोहफा भी मिला जिसने उनके जीवन में उम्मीद जगाई.
ये कहानी सिर्फ एक मंगलसूत्र की नहीं, बल्कि प्यार, दया और इंसानियत की भी है. जब दिल सच्चे हों, तो कोई भी परिस्थिति मुश्किल नहीं रहती.निवृत्ति और शांताबाई का संघर्ष और उनके बीच का अटूट प्रेम हमें यही सिखाता है कि इंसानियत से बड़ा कोई धन नहीं होता.
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ये कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा है कि जीवन की हर चुनौती में प्यार और सहानुभूति की शक्ति हमें आगे बढ़ने का हौसला देती है.
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