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कैलाश विजयवर्गीय का विवादित बयान, 1947 की आज़ादी को बताया अधूरा, जानें क्यों कहा ‘कटी-फटी स्वतंत्रता

947 में मिली आज़ादी क्या सचमुच अधूरी थी? क्या विभाजन का दर्द आज़ादी की चमक को कम कर गया था या फिर यह स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का अपमान है? कैलाश विजयवर्गीय के इस बयान ने ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब हर कोई अपनी सोच और नजरिए से ढूंढ रहा है.

Image Source: Social Media/X

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया जिसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी. उन्होंने कहा कि “1947 में हमें कटी-फटी आज़ादी मिली थी”. उनके इस कथन के बाद राजनीतिक बहस तेज हो गई है और विपक्ष ने इसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अपमान से जोड़ दिया है.

1947 की आज़ादी को क्यों बताया अधूरी?

विजयवर्गीय ने अपने भाषण में कहा कि भारत को अंग्रेजों से आज़ादी तो मिली, लेकिन वह अधूरी और बंटी हुई थी. उनके अनुसार, देश को विभाजन के दर्द के साथ आज़ादी लेनी पड़ी. लाखों लोग विस्थापित हुए, लाखों की जान गई और करोड़ों लोग अपने घरों से बेघर हो गए. इस संदर्भ में उन्होंने 1947 की स्वतंत्रता को “कटी-फटी” बताया.

विपक्ष का पलटवार

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस बयान की कड़ी आलोचना की. विपक्ष का कहना है कि 1947 की आज़ादी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का परिणाम थी और इसे किसी भी रूप में अधूरा या “कटी-फटी” कहना उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने अपनी जान कुर्बान की. कई नेताओं ने विजयवर्गीय से बयान वापस लेने की मांग की.

बीजेपी का पक्ष

वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है कि विजयवर्गीय का आशय स्वतंत्रता सेनानियों को कमतर दिखाना नहीं था, बल्कि उनका इशारा देश के विभाजन की त्रासदी की ओर था. पार्टी का कहना है कि आज़ादी के साथ हुए बंटवारे ने पूरे भारतीय समाज को गहरे जख्म दिए थे और उसी दर्द को बयान करने के लिए उन्होंने यह शब्द इस्तेमाल किए.

जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर लोगों की राय बंटी हुई दिखी. कुछ लोगों ने इसे विभाजन की ऐतिहासिक सच्चाई बताने वाला बयान माना, वहीं कुछ ने इसे स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष पर सवाल उठाने वाला बताया. ट्विटर और फेसबुक पर #कटिफटीआज़ादी और #KailashVijayvargiya जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे.

इतिहास का संदर्भ

इतिहासकारों के अनुसार, 1947 की आज़ादी के साथ ही भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, जिसमें लगभग 1.5 करोड़ लोग विस्थापित हुए और करीब 10 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई. यह भारत के इतिहास का सबसे दर्दनाक दौर था. इसीलिए कई बार विभाजन को आज़ादी के साथ जुड़ा “काला अध्याय” कहा जाता है.

कैलाश विजयवर्गीय का बयान चाहे जिस भावना से दिया गया हो, लेकिन इसने राजनीति में नई बहस को जन्म दे दिया है. यह बयान हमें याद दिलाता है कि 1947 की आज़ादी सिर्फ जश्न का नहीं, बल्कि विभाजन और पीड़ा का दौर भी थी. सवाल यह है कि क्या आज़ादी को “कटी-फटी” कहना सही है या यह स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को कमतर दिखाने वाली सोच है—यह फैसला जनता पर ही छोड़ा जा सकता है.

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