बांग्लादेश की जेल में 103 दिन रही, दर्दनाक यादों के साथ भारत लौटी सुनाली, सुप्रीम कोर्ट के आगे झुकी सरकार
जब एक 9 महीने की प्रेग्नेंट महिला को इस बॉर्डर से उस बॉर्डर घुमाया जाए. इससे और भी बुरा तब होता है जब उस महिला का देश उसे वहां का नागरिक मानने से ही इंकार कर दे. पुलिस की एक लापरवाही ने सुनाली की जिंदगी को नरक बना दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मानों जिंदगी फिर से लौटा दी.
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देश में अवैध रूप से रह रहे लोगों को उनके देश भेजा जा रहा है. घुसपैठियों और रोहिंग्याओं के खिलाफ सरकार एक्शन में है. लेकिन क्या हो जब एक्शन के दौरान सभी मानवीय सीमाएं ताक पर रख दी जाएं. जब एक 9 महीने की प्रेग्नेंट महिला को इस बॉर्डर से उस बॉर्डर घुमाया जाए. इससे और भी बुरा तब होता है जब उस महिला का देश उसे वहां का नागरिक मानने से ही इंकार कर दे. हम बात कर रहे हैं 26 साल की सुनाली खातून की. जिसे भारत का नागरिक होने के बावजूद बांग्लादेश भेज दिया गया.
पश्चिम बंगाल के बीरभूम की रहने वाली 26 वर्षीय सुनाली खातून बांग्लादेश से भारत वापस लाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सुनाली खातून 8 साल के बच्चे के साथ वापस लौटीं. सुनाली गर्भवती हैं और इस हालत में उन्होंने बांग्लादेश की जेल में करीब 103 दिन बिताए हैं. सुनाली करीब 20 साल से दिल्ली की बंगाली बस्ती में रह रहीं थी. तमाम कागजात दिखाने के बावजूद पुलिस ने उन्हें 18 जून को बांग्लादेशी होने के आरोप में गिरफ्तार कर बांग्लादेश डिपोर्ट करवा दिया.
एक फरमान ने जिंदगी बना दी नरक
सुनाली को दिल्ली में हिरासत में लेने के बाद असम ले जाया गया. यहीं पर एक रात बिताने के बाद उन्हें बांग्लादेश भेजा गया. इसके बाद सुनाली ने रात के अंधेरे में फिर से देश में दाखिल होने की कोशिश की. सुनाली को जेल में रखने के बाद BSF की टीम उन्हें पश्चिम बंगाल में मालदा जिले की महादी सीमा चौकी पर ले गई. फिर रात के अंधेरे में सुनाली समेत 4 लोगों की आंखों पर पट्टी बांध कर बांग्लादेश बॉर्डर की ओर दखेल दिया. सुनाली खातून अपने बेटे और गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ बांग्लादेश तो पहुंच गईं लेकिन यहां जैसे यातनाओं का दौर शुरू ही हुआ था.
बांग्लादेश पुलिस ने कहा- भारतीय घुसपैठिया
जो सुनाली खातून भारत में बांग्लादेशी करार दी गईं थी वो उन्हें बांग्लादेश ने भारतीय घुसपैठिया करार दे दिया. 9 महीने की गर्भवती को बेटे के साथ जेल में डाल दिया गया. पासपोर्ट एक्ट और फॉरेनर्स एक्ट के तहत केस दर्ज कर दिया. सुनाली को उस चापैनवाबगंज जेल में भेजा गया जहां खूंखार क्रिमिनल को रखा जाता है. यहां उन्हें ठीक से दो वक्त का खाना भी नहीं मिलता था. ऊपर से गर्भवती, सुनीला यहां कुपोषण का शिकार हो गईं.
#WATCH | Malda, West Bengal | Sunali Khatun, and her 8-year-old son brought back to India. This comes following the Supreme Court asking the Central government to bring back the duo on account of the possibility of them being Indian citizens. They were deported from India on… https://t.co/zpvxhxMmyj pic.twitter.com/aTV0mhL9J6
— ANI (@ANI) December 5, 2025
जमीन के कागज भी दिखाए, पुलिस ने नहीं सुनी
गृह मंत्रालय के आदेश पर पुलिस घुसपैठियों के खिलाफ ऑपरेशन चला रही थी, लेकिन सुनाली खातून ने भारतीय होने के सबूत दिए. आधार पैन के साथ जमीन के कागजात दिखाए. यहां तक कि उनके पिता भारतीय हैं लेकिन पुलिस ने एक न सुनी.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, वापस लाईं गई सुनाली
सुनाली खातून का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पश्चिम बंगाल माइग्रेट बोर्ड के अध्यक्ष समीरुल इस्लाम और सुप्रीम कोर्ट में वकील संजय हेगड़े ने सुनाली के सपोर्ट में पैरवी की. सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर मानवीय मामला करार दिया. कोर्ट ने सरकार से सुनाली खातून को वापस भारत लाने के निर्देश दिए. SC ने कहा, सुनाली 9 महीने की गर्भवती हैं, 8 साल का बच्चा पहले से है. ऐसे में कानून को कभी-कभी इंसानियत के आगे झुकना पड़ता है. जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा, अगर सुनाली के पिता भारतीय नागरिक हैं, तो उनका बच्चा भी भारतीय माने जाएंगे. उन्हें भारत वापस लाना चाहिए.
इस पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा, सरकार सोनाली और उनके बेटे को भारत आने देगी. उन्होंने साफ किया कि यह अनुमति मानवीय आधार पर होगी. इससे नागरिकता से जुड़े मुद्दों पर सरकार का रुख प्रभावित नहीं होगा.
आखिरकार बांग्लादेश की जेल में दर्द भरे 103 दिन बिताने के बाद सुनाली खातून भारत लौट आई हैं. फिलहाल वह पश्चिम बंगाल के बीरभूम की हॉस्पिटल में हैं. जहां उनकी डिलीवरी होगी. वहीं, TMC ने इसे गरीब परिवार के लिए बड़ी जीत बताया. सुनाली की गलत पहचान की गई, प्रशासन की इस एक गलती ने सुनाली की जिंदगी में दर्दनाक चैप्टर जोड़ दिया.
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