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प्रदर्शनों-आंदोलनों को किसने दी हवा, किसने की फंडिंग? अमित शाह ने दिए सब पता करने के आदेश; हो सकता है बड़ा खुलासा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने BPR&D को निर्देश दिया है कि 1974 के बाद से हुए सभी बड़े विरोध-प्रदर्शनों और जनांदोलनों का अध्ययन किया जाए. इसमें कारण, पैटर्न, फंडिंग और नतीजों की जांच होगी. उद्देश्य भविष्य में आंदोलनों को रोकने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार करना है.

Source: X/ Amit Shah

भारत में आजादी के बाद से लेकर अब तक अनेक जनांदोलन और विरोध-प्रदर्शन हुए हैं. कभी किसानों के हक की लड़ाई, कभी मजदूरों की मांग, तो कभी सामाजिक न्याय के मुद्दे. इन आंदोलनों ने देश की राजनीति, समाज और व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया है. अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन आंदोलनों को समझने और उनके पीछे की सच्चाई सामने लाने के लिए पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPR&D) को बड़ा निर्देश दिया है.

दरअसल, अमित शाह ने पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो को आदेश दिया है कि 1974 के बाद से देश में हुए सभी बड़े विरोध-प्रदर्शनों और जनांदोलनों का अध्ययन किया जाए. इसमें यह पता लगाया जाए कि वे आंदोलन क्यों हुए, किन लोगों ने उन्हें आगे बढ़ाया और सबसे अहम सवाल उनकी फंडिंग कहां से हुई. साथ ही यह भी देखा जाए कि उन आंदोलनों का नतीजा क्या रहा और उन्होंने देश की सुरक्षा या समाज पर कैसा असर डाला.

बड़ी साजिश का हो सकता है पर्दाफाश 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुलाई के आखिरी हफ्ते में नई दिल्ली में आयोजित ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन 2025’ के दौरान गृह मंत्री ने ये आदेश दिए. सम्मेलन का आयोजन इंटेलिजेंस ब्यूरो ने किया था और इसमें देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा गया कि BPR&D को खास तौर पर यह समझने का काम सौंपा गया है कि विरोध-प्रदर्शनों का पैटर्न क्या रहा, उनके कारण क्या थे और पर्दे के पीछे कौन लोग शामिल थे.

इस जाँच का क्या है मुख्य उद्देश्य?

गृह मंत्री का मकसद केवल इतिहास खंगालना नहीं है, बल्कि उससे सीख लेकर भविष्य की चुनौतियों का सामना करना है. अधिकारी बताते हैं कि शाह चाहते हैं कि इस अध्ययन के आधार पर एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की जाए. ताकि अगर भविष्य में किसी “निहित स्वार्थ” की वजह से बड़ा आंदोलन खड़ा होता है तो उसे समय रहते रोका जा सके. इसके लिए BPR&D राज्यों की पुलिस और अपराध जाँच विभागों (CID) के साथ मिलकर काम करेगी. पुराने केस की फाइलें और रिपोर्टें भी इस जांच का हिस्सा होंगी.

वित्तीय पहलुओं की भी होगी जांच

अमित शाह ने इस पड़ताल को और व्यापक बनाने के लिए वित्तीय एजेंसियों को भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं. इनमें प्रवर्तन निदेशालय (ED), वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (FIU-IND) और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) शामिल हैं. इन एजेंसियों को खासकर आंदोलनों की फंडिंग और वित्तीय गड़बड़ियों का पता लगाने का काम सौंपा गया है. उद्देश्य यह है कि कहीं इन प्रदर्शनों में आतंकी फंडिंग या संदिग्ध नेटवर्क तो शामिल नहीं रहे. अगर ऐसा है तो उनकी पहचान कर उन्हें ध्वस्त किया जा सके.

खालिस्तानी उग्रवाद पर भी विभाग की नजर

गृह मंत्री ने यह भी कहा है कि धार्मिक जनसभाओं और बड़े आयोजनों पर स्टडी की जाए. अक्सर ऐसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर भगदड़ और सुरक्षा से जुड़ी घटनाएं होती हैं. इसलिए इन आयोजनों की निगरानी और नियमन के लिए भी एक SOP बनाई जाएगी. इसके अलावा पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद की चुनौती से निपटने के लिए भी खास निर्देश दिए गए हैं. शाह ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), सीमा सुरक्षा बल (BSF) और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) को कहा है कि वे मिलकर SOP तैयार करें. इसका मकसद न केवल उग्रवाद बल्कि उससे जुड़ी आपराधिक गतिविधियों और ड्रग्स नेटवर्क पर भी शिकंजा कसना है.

क्यों अहम है यह कदम?

भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में विरोध और आंदोलन एक सामान्य बात है. लेकिन हाल के वर्षों में कई बार ऐसे आंदोलन सामने आए जिनमें हिंसा, तोड़फोड़ और बाहरी फंडिंग का शक रहा. किसान आंदोलन, शाहीन बाग प्रदर्शन और विभिन्न राज्यों में हुए जातिगत आंदोलन इसका उदाहरण हैं. सरकार का मानना है कि विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन अगर इसमें बाहरी ताकतें या आतंकी नेटवर्क शामिल हों तो यह देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है.

बता दें कि अमित शाह के इस कदम से साफ है कि सरकार अब विरोध-प्रदर्शनों को केवल राजनीतिक या सामाजिक गतिविधि के रूप में नहीं देखना चाहती. बल्कि उनकी जड़ों तक जाकर यह समझना चाहती है कि आखिरकार इन्हें हवा कौन देता है और उनका असली मकसद क्या होता है. ऐसे में अगर यह अध्ययन सफल होता है तो आने वाले वर्षों में देश को एक ऐसी नीति और SOP मिलेगी, जो आंदोलनों को समय रहते नियंत्रित करने में मदद करेगी. साथ ही, बाहरी फंडिंग और आतंकी नेटवर्क की पहचान कर भारत की आंतरिक सुरक्षा को और मजबूत किया जा सकेगा.

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