दिल्ली दंगा मामले में उमर खालिद और शरजील इमाम को लगा तगड़ा झटका, दिल्ली हाई कोर्ट से सारे आरोपियों की जमानत याचिका खारिज
दिल्ली दंगा मामले में JNU के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और एक्टिविस्ट शरजील इमाम समेत सारे 9 आरोपियों को तगड़ा झटका लगा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी की जमानत याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मौजूदा परिस्थिति में बेल देने का कोई आधार नहीं है.
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दिल्ली हाई कोर्ट से जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और एक्टिविस्ट शरजील इमाम को तगड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और कार्यकर्ता शरजील इमाम समेत सभी 9 आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं.
जमानत याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाते हुए कहा कि इस मामले में फिलहाल आरोपियों को राहत देने का कोई आधार नहीं है. अदालत के इस फैसले से उमर खालिद और शरजील इमाम के अलावा मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, अथर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की जमानत की उम्मीदें भी खत्म हो गईं. हालांकि, बचाव पक्ष के वकीलों ने साफ किया है कि वे इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.
दिल्ली पुलिस ने क्या आरोप लगाए हैं?
दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद और अन्य आरोपियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. पुलिस का कहना है कि ये लोग दिल्ली हिंसा के “मास्टरमाइंड” थे और इन पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत केस दर्ज है. जांच एजेंसियों के अनुसार, फरवरी 2020 में हुई हिंसा कोई अचानक भड़की घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थी, जिसमें प्रदर्शन की आड़ में अशांति फैलाने और राजधानी को अस्थिर करने की कोशिश की गई. पुलिस ने यह भी दावा किया कि इस साजिश का मकसद वैश्विक स्तर पर भारत की छवि खराब करना था.
दूसरी ओर, आरोपियों के वकीलों का कहना है कि उनके मुवक्किल चार साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में हैं और मुक़दमे की प्रक्रिया बेहद लंबी खिंच रही है. उनका तर्क है कि इतने लंबे समय तक आरोपियों को जेल में रखना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. लेकिन अदालत ने यह दलील खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा परिस्थितियों और गंभीर आरोपों को देखते हुए जमानत देना उचित नहीं होगा.
“बेहतर है आप जेल में ही रहें…”
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी जमानत याचिकाओं का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि “अगर आप राष्ट्र के खिलाफ कुछ करेंगे, तो बेहतर है कि बरी होने तक जेल में ही रहें.” उन्होंने अपनी दलील में कहा कि इन दंगों की सुनियोजित साजिश रची गई थी. मेहता ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने की साजिश रची गई थी.
दिल्ली दंगों में हुई थी 50 से अधिक लोगों की मौत
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बता दें कि फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा ने राजधानी को हिला दिया था. इस दौरान हुई झड़पों में 50 से अधिक लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए थे. इसके अलावा करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ था, जिसमें घर, दुकानें और धार्मिक स्थल तक शामिल थे. दंगे के बाद से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आरोप-पत्र दाखिल किए और कई आरोपियों को जेल भेजा. अब हाईकोर्ट के इस ताज़ा फैसले ने साफ कर दिया है कि इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया अभी लंबी चलेगी और आरोपियों की रिहाई फिलहाल दूर की बात है.
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