अंतरिक्ष में फिर लहराया तिरंगा, अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुंचे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, हो रही स्पेस यान की सुरक्षा जांच
भारतीय अंतरिक्ष यात्री कैप्टन शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक उड़ान अब स्पेस स्टेशन पहुंच चुकी है. स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल ने तय समय से करीब 20 मिनट पहले अंतरिक्ष स्टेशन के हार्मनी मॉड्यूल के अंतरिक्ष के सामने वाले पोर्ट पर डॉकिंग कर ली है.

भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में एक नया इतिहास रच दिया है. Ax-4 मिशन के तहत वह स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के जरिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से सफलतापूर्वक जुड़ चुके हैं. इसकी खास बात यह रही कि ड्रैगन कैप्सूल ने निर्धारित समय से 20 मिनट पहले ही डॉकिंग कर ली. अब अगला चरण है 1 से 2 घंटे की सुरक्षा जांच, जिसमें यह देखा जाएगा कि कहीं कोई हवा का रिसाव या दबाव में असमानता तो नहीं है. जांच पूरी होने के बाद, मिशन का क्रू आधिकारिक रूप से ISS में प्रवेश करेगा और इसी के साथ भारत का नाम एक बार फिर अंतरिक्ष में चमकेगा. जानकारी के अनुसार ये डॉकिंग हार्मनी मॉड्यूल के अंतरिक्ष-सामने वाले पोर्ट पर हुई है.
डॉकिंग का निर्धारित समय क्या था?
भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंचने वाले पहले भारतीय बन चुके हैं. शुभांशु शुक्ला के अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य लोगों के साथ गुरुवार सुबह 7 बजे (भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे) अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचना था, लेकिन वो तय समय से करीब 20 मिनट पहले ही पहुंचने में कामयाब रहे हैं.
Axiom Mission 4 aboard the @SpaceX Dragon docked to the station at 6:31am ET today. Soon the Ax-4 astronauts will open the hatch and greet the Exp 73 crew live on @NASA+. More... https://t.co/XmWYPa4BhT pic.twitter.com/LjjMd7DfmW
— International Space Station (@Space_Station) June 26, 2025
• कक्षा में प्रक्षेपण और पृथक्करण: ड्रैगन कैप्सूल को फाल्कन 9 रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाता है. कक्षा में पहुंचने के बाद, कैप्सूल रॉकेट से अलग हो जाता है और अपने थ्रस्टर्स का उपयोग करके अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ओर बढ़ना शुरू करता है.
• नेविगेशन और एलाइनमेंट: कैप्सूल अपने ऑनबोर्ड सेंसर, जैसे लेजर-आधारित LIDAR और कैमरों, का उपयोग करके ISS के सापेक्ष अपनी स्थिति और दूरी का आकलन करता है. यह चरण यह सुनिश्चित करता है कि कैप्सूल सही गति और दिशा में ISS के करीब पहुंचे.
• निकटता संचालन (Proximity Operations): ISS से लगभग 250 मीटर की दूरी पर, कैप्सूल सावधानीपूर्वक अपनी गति को नियंत्रित करता है. यह "सॉफ्ट कैप्चर" के लिए तैयार होता है, जहां यह ISS के डॉकिंग पोर्ट के साथ संरेखित होता है. ग्राउंड कंट्रोल और कैप्सूल का स्वचालित सिस्टम इस दौरान निरंतर निगरानी करते हैं.
• सॉफ्ट कैप्चर: कैप्सूल का नोज़कोन खुलता है, जिससे इसका डॉकिंग मैकेनिज्म (International Docking System Standard, IDSS) सामने आता है. कैप्सूल धीरे-धीरे ISS के डॉकिंग पोर्ट से संपर्क करता है, और सॉफ्ट कैप्चर रिंग्स दोनों को जोड़ते हैं. यह प्रक्रिया हल्के संपर्क के साथ शुरू होती है ताकि कोई झटका न लगे.
• हार्ड कैप्चर: सॉफ्ट कैप्चर के बाद, मैकेनिकल लैचेस और हुक सक्रिय होकर कैप्सूल को ISS के पोर्ट से मजबूती से लॉक कर देते हैं. इस चरण में दोनों के बीच एक स्थिर और सुरक्षित कनेक्शन बनता है.
• एयरटाइट सील कंस्ट्रक्शन: लॉकिंग के बाद, डॉकिंग पोर्ट के बीच एक वायुरोधी सील बनाई जाती है. दबाव की जांच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो कि कोई रिसाव नहीं है. इसके बाद, हैच खोला जाता है, जिससे अंतरिक्ष यात्री और सामग्री का हस्तांतरण संभव होता है.
• पोस्ट-डॉकिंग प्रक्रिया: डॉकिंग पूरी होने के बाद, कैप्सूल के सिस्टम को स्थिर किया जाता है, और ISS के साथ इसका विद्युत और डेटा कनेक्शन स्थापित होता है. ग्राउंड कंट्रोल इस दौरान सभी सिस्टम की स्थिति की निगरानी करता है.
यह पूरी प्रक्रिया स्वचालित रूप से होती है, जिसमें ग्राउंड कंट्रोल और कैप्सूल के सॉफ्टवेयर का समन्वय महत्वपूर्ण होता है. प्रत्येक चरण में सटीकता और सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है.
लखनऊ के लिए भी गर्व के पल
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मे शुक्ला की उड़ान फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39ए से सुबह 2:31 बजे ईडीटी (भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजे) पर फाल्कन 9 रॉकेट पर एक नए स्पेसएक्स ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में लॉन्च हुई थी. इस लिहाज से शहर के लिए ये एक गर्व का पल है.
एक्सिओम मिशन-4 के चालक दल के चार सदस्य हैं
नासा ने एक अपडेट में बताया, "बुधवार को 2:31 बजे ईडीटी पर कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च होने के बाद स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की ओर बढ़ रहा है, जिसमें एक्सिओम मिशन 4 के चालक दल के चार सदस्य हैं." ड्रैगन में एक्स-4 कमांडर पैगी व्हिटसन, पायलट शुभांशु शुक्ला और मिशन विशेषज्ञ स्लावोज उज्नान्स्की-विज्निएव्स्की और टिबोर कपू सवार हैं.
अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय होंगे कैप्टन शुभांशु
41 साल बाद भारत का एक अंतरिक्ष यात्री फिर से अंतरिक्ष में है. शुक्ला 1984 में राकेश शर्मा की उड़ान के बाद अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय होंगे.
ISS जाते समय अपने संदेश में शुक्ला ने कहा, "नमस्ते, मेरे प्यारे देशवासियों. क्या सफर है. 41 साल बाद हम फिर से अंतरिक्ष में हैं. यह एक शानदार अनुभव है. हम 7.5 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं."
शुक्ला ने कहा, "यह केवल मेरी यात्रा नहीं है. मैं अपने साथ भारतीय तिरंगा ले जा रहा हूं. यह भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की यात्रा है."
शुभांशु शुक्ला अपने साथ गाजर का हलवा, मूंग दाल हलवा और आम का रस ले गए हैं, ताकि अंतरिक्ष में घर के खाने की क्रेविंग को शांत कर सकें और अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ इसे बांट सकें.
एक्सिओम-4 मिशन न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि भारत की वैश्विक तकनीकी शक्ति के रूप में उभरती स्थिति का प्रमाण है. यह देश की अंतरिक्ष नवाचार में नेतृत्व करने, स्थिरता को बढ़ावा देने और वैश्विक मिशनों में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता को दर्शाता है.
'नमस्कार फ्रॉम स्पेस...'
— NMF NEWS (@nmfnewsofficial) June 26, 2025
कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने स्पेस से भेजा पहला मैसेज, जानें देशवासियों से क्या कहा. #ShubhanshuShukla #DragonCapsule #SpaceX pic.twitter.com/woDLAqQkkh
फूड और स्पेस न्यूट्रिशन पर शोध करेगी शुभांशु की टीम
आईएसएस पर सवार होने के बाद शुभांशु शुक्ला फूड और स्पेस न्यूट्रिशन से संबंधित प्रयोग करेंगे. ये प्रयोग इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के सहयोग से नासा के समर्थन के साथ विकसित किए गए हैं. इनका उद्देश्य लंबी अवधि अंतरिक्ष यात्रा के लिए महत्वपूर्ण टिकाऊ जीवन-रक्षा प्रणालियों की समझ को बढ़ाना है.
शोध में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और अंतरिक्ष विकिरण के खाद्य सूक्ष्म शैवालों पर प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा, जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर, उच्च क्षमता वाला खाद्य स्रोत है. प्रयोग में प्रमुख विकास मापदंडों का मूल्यांकन किया जाएगा और विभिन्न शैवाल प्रजातियों में अंतरिक्ष में होने वाले ट्रांसक्रिप्टोमिक, प्रोटीओमिक और मेटाबोलोमिक परिवर्तनों की तुलना पृथ्वी पर उनके व्यवहार से की जाएगी.