भिखारियों से परेशान हुआ ये राज्य, भीख मांगने पर लगा दिया प्रतिबंध, विधानसभा से पास हुआ बिल, क्या अन्य स्टेट्स भी करेंगे ऐसा?
मिजोरम विधानसभा ने ‘प्रोहिबिशन ऑफ बेग्गरी बिल 2025’ पास किया. इसका उद्देश्य भिखारियों को केवल रोकना नहीं, बल्कि मदद और रोजगार देकर पुनर्वास करना है. सोशल वेलफेयर मंत्री लालरिनपुई ने बताया कि राज्य में फिलहाल भिखारियों की संख्या कम है, लेकिन 13 सितंबर को शुरू होने वाली सैरांग-सिहमुई रेल लाइन के बाद बाहर से भिखारियों के आने का खतरा बढ़ सकता है.
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मिजोरम विधानसभा ने बुधवार को एक अहम और ऐतिहासिक बिल पास किया है. इस बिल का नाम है ‘मिजोरम प्रोहिबिशन ऑफ बेग्गरी बिल 2025’. इसका मकसद केवल भिखारियों को रोकना नहीं है, बल्कि उन्हें मदद, रोजगार और पुनर्वास के जरिए समाज की मुख्यधारा में वापस लाना है. इस कदम को लेकर जहां सरकार और सामाजिक संगठन इसे क्रांतिकारी बता रहे हैं, वहीं विपक्ष ने अपनी आपत्तियां भी दर्ज कराई हैं.
क्या है बिल की खासियत?
इस नए कानून के तहत राज्य सरकार एक राहत बोर्ड का गठन करेगी और रिसीविंग सेंटर खोलेगी. यहां किसी भी भिखारी को अस्थायी तौर पर रखा जाएगा और 24 घंटे के भीतर उन्हें उनके घर या राज्य वापस भेजा जाएगा. यह सिर्फ़ सज़ा देने वाला कानून नहीं है, बल्कि एक ऐसी कोशिश है जिसके जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भिखारी समाज से अलग-थलग न हों, बल्कि उन्हें फिर से आत्मनिर्भर बनाया जाए.
मिजोरम में भिखारियों की संख्या
सोशल वेलफेयर मंत्री लालरिनपुई ने विधानसभा में बताया कि मिजोरम में भिखारियों की संख्या बेहद कम है. इसकी बड़ी वजह यहां का मजबूत सामाजिक ढांचा, चर्च और एनजीओ की सक्रियता और सरकार की योजनाएं हैं. मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार राजधानी आइजोल में फिलहाल 30 से अधिक भिखारी हैं और इनमें से कई बाहर से आए हुए हैं. लालरिनपुई ने यह भी कहा कि जल्द ही सैरांग-सिहमुई रेल लाइन शुरू होने जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 सितंबर को इसका उद्घाटन करेंगे. इस रेल लाइन से मिजोरम का कनेक्शन और मजबूत होगा, लेकिन इसके साथ यह आशंका भी बढ़ रही है कि बाहर से भिखारी बड़ी संख्या में यहां आने लगेंगे. इस वजह से सरकार पहले से ही एक ठोस कानून बनाकर स्थिति पर नियंत्रण चाहती है.
विपक्ष ने जताई आपत्ति
विधानसभा में इस बिल के पारित होने पर विपक्षी नेताओं ने इस बिल पर सवाल उठाए. एमएनएफ नेता लालचंदामा राल्ते ने कहा कि यह कानून राज्य की छवि को खराब करेगा और मसीही आस्था के खिलाफ जाएगा. उनका कहना था कि भिखारियों की मदद के लिए समाज और चर्च की भागीदारी को और मजबूत किया जाना चाहिए, न कि उन पर रोक लगाने वाला कानून बनाया जाए.
मुख्यमंत्री की सफाई
मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने विधानसभा में विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुए साफ किया कि इस कानून का उद्देश्य भिखारियों को दंडित करना नहीं है. उन्होंने कहा कि असली मकसद है, भिखारियों का पुनर्वास. इसके लिए सरकार, चर्च और एनजीओ मिलकर काम करेंगे. मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि मिजोरम को भिक्षावृत्ति-मुक्त राज्य बनाने के लिए यह कानून एक सकारात्मक पहल साबित होगा.
समाज और चर्च की भूमिका
मिजोरम देश का वह राज्य है जहां सामाजिक ताना-बाना बेहद मजबूत है. चर्च और स्थानीय एनजीओ यहां समाज की हर गतिविधि में अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में यह बिल तभी सफल होगा जब चर्च और समाज मिलकर सरकार की इस पहल को आगे बढ़ाएंगे. यही वजह है कि सरकार ने इसे केवल कानूनी दायरे तक सीमित नहीं रखा, बल्कि सामाजिक भागीदारी को भी अहमियत दी है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि भिखारियों पर पूरी तरह रोक लगाना आसान नहीं होगा. लेकिन अगर पुनर्वास और रोजगार देने की प्रक्रिया ईमानदारी से लागू की जाए तो यह देशभर के लिए एक मिसाल बन सकती है. उनका कहना है कि गरीबों और असहाय लोगों को सज़ा देना समाधान नहीं है, बल्कि उन्हें शिक्षा, प्रशिक्षण और रोज़गार से जोड़ना ही असली रास्ता है.
राष्ट्रीय स्तर पर संदेश
मिजोरम का यह कदम पूरे देश के लिए भी एक संदेश है. भारत में अभी भी लाखों लोग भिक्षावृत्ति के सहारे जी रहे हैं. कई राज्य इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में अगर मिजोरम में यह कानून सही ढंग से लागू हो गया तो बाकी राज्यों के लिए भी यह एक मॉडल बन सकता है.
मिजोरम विधानसभा का ‘प्रोहिबिशन ऑफ बेग्गरी बिल 2025’ सिर्फ एक कानून नहीं है, बल्कि एक सोच है. यह सोच बताती है कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को भी सम्मान और अवसर मिलना चाहिए. यह कानून अगर पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी से लागू हुआ तो मिजोरम भिक्षावृत्ति-मुक्त राज्य बन सकता है और बाकी राज्यों को भी इससे प्रेरणा मिलेगी.
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