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'तो उसे पद छोड़ना ही होगा...', PM-CM को हटाने वाले बिल को लेकर विपक्ष पर अमित शाह का बड़ा हमला, पूछा- क्या वे जेल से सरकार चलाना चाहते हैं?

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक पर विवाद के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि विपक्ष चाहता है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या मंत्री जेल से भी सरकार चला सकें, लेकिन लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं है. शाह का कहना है कि यह बिल लोकतांत्रिक गरिमा बनाए रखने के लिए जरूरी है.

25 Aug, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
03:53 AM )
'तो उसे पद छोड़ना ही होगा...', PM-CM को हटाने वाले बिल को लेकर विपक्ष पर अमित शाह का बड़ा हमला, पूछा- क्या वे जेल से सरकार चलाना चाहते हैं?
Source: X / Amit Shah

संसद के मानसून सत्र में पेश किए गए संविधान (130वां संशोधन) विधेयक ने राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया है. इस बिल को लेकर जहां सरकार इसे लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने वाला ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे ‘ब्लैक बिल’ करार देकर विरोध पर उतारू है. इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर सीधा हमला बोलते हुए कई तीखे सवाल खड़े कर दिए.

दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि विपक्ष का विरोध केवल जनता को गुमराह करने के लिए है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि लोकतंत्र में ऐसा नहीं हो सकता कि कोई मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या मंत्री जेल में रहते हुए भी सरकार चलाए. और आज भी उनका यही प्रयास है कि अगर कभी जेल गए तो वहां से सरकार चला सकें. शाह ने आगे कहा, "क्या जेल को सीएम हाउस, पीएम हाउस बनाया जा सकता है? क्या मुख्य सचिव, गृह सचिव या डीजीपी जेल से आदेश लेंगे?"

बिल में क्या है खास

संविधान (130वां संशोधन) विधेयक के अनुसार, अगर कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आरोपों में गिरफ्तार होता है और 30 दिन के भीतर उसे जमानत नहीं मिलती, तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा. हालांकि, अगर अदालत से उसे जमानत मिल जाती है तो वह दोबारा शपथ लेकर पद संभाल सकता है. इस प्रावधान का सीधा संदेश यह है कि कोई भी व्यक्ति जेल से सरकार नहीं चला पाएगा. अमित शाह के अनुसार, यह नियम लोकतंत्र की गरिमा और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है.

पीएम मोदी का विशेष सुझाव

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस बात पर जोर दिया कि बिल में प्रधानमंत्री के पद को भी शामिल किया जाए. शाह ने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में 39वें संविधान संशोधन के जरिए राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा था. लेकिन मोदी सरकार इसके उलट पारदर्शिता लाने वाला कदम उठा रही है.

शाह ने दिया खुद का उदाहरण 

गृह मंत्री शाह ने इंटरव्यू में इस बिल पर बात करते हुए खुद का उदाहरण भी दिया. शाह ने कहा CBI से समन मिलने के दूसरे ही दिन मैंने इस्तीफा दे दिया था, कांग्रेस मुझे क्या नैतिकता सिखाएगी. शाह ने आगे यह भी कहा कि मेरी गिरफ़्तारी हुई, बाद में केस चला लेकिन उस मामले में पूरी तरह न्यायालय से मुझे निर्दोष करार दिया.

विपक्ष का विरोध और संसद में हंगामा

बिल पेश होते ही विपक्ष ने संसद में जमकर हंगामा किया. कांग्रेस और कई अन्य दलों का कहना है कि यह बिल खास राजनीतिक उद्देश्यों से लाया गया है और इससे लोकतांत्रिक अधिकार सीमित होंगे. विपक्षी दलों ने इसे ‘ब्लैक बिल’ कहते हुए चर्चा तक नहीं होने दी. इस पर नाराजगी जताते हुए अमित शाह ने कहा, "क्या संसद बहस के लिए है या केवल शोरगुल के लिए? हमने भी अतीत में विरोध किया है लेकिन कभी किसी बिल को पेश होने से नहीं रोका. विपक्ष का रवैया पूरी तरह अलोकतांत्रिक है और जनता को इसका जवाब देना होगा."

कांग्रेस और दोहरी नैतिकता का मुद्दा

अमित शाह ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने याद दिलाया कि जब मनमोहन सिंह सरकार ने लालू यादव को बचाने के लिए अध्यादेश लाया था, तो राहुल गांधी ने उसे सार्वजनिक मंच पर फाड़ दिया था और उसे बकवास बताया था. शाह ने पूछा कि अगर उस दिन नैतिकता थी, तो क्या आज नहीं है? क्या इसलिए नहीं है क्योंकि कांग्रेस लगातार तीन चुनाव हार चुकी है? उन्होंने आगे कहा कि आज वही कांग्रेस, सरकार बनाने के लिए आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को समर्थन दे रही है. शाह ने आम आदमी पार्टी के नेता सत्येंद्र जैन का नाम भी लिया और विपक्ष पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया.

क्या कहती है बीजेपी

बीजेपी और गृह मंत्री का साफ कहना है कि देश को किसी एक व्यक्ति के बिना नहीं रोका जा सकता. शाह ने कहा, "अगर कोई सदस्य हटता है तो पार्टी के अन्य नेता सरकार चला सकते हैं. जब उन्हें जमानत मिलेगी, वे फिर से पद संभाल सकते हैं. इसमें समस्या क्या है?" उन्होंने विश्वास जताया कि यह विधेयक संसद से पारित होगा और विपक्ष के भीतर भी कई नेता इसे नैतिक आधार पर समर्थन देंगे.

जनता के बीच बड़ा सवाल

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या वास्तव में किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में जेल से सरकार चलाना सही है? क्या यह जनता के भरोसे और लोकतंत्र की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाएगा? सरकार का तर्क है कि यह कदम राजनीतिक शुचिता और पारदर्शिता की ओर है. वहीं विपक्ष का कहना है कि यह बिल लोकतंत्र को कमजोर करेगा और सत्ताधारी दल को विपक्षी नेताओं को दबाने का मौका देगा.

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संविधान (130वां संशोधन) विधेयक केवल संसद में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में बहस का विषय बन गया है. एक ओर इसे लोकतंत्र की पवित्रता बनाए रखने वाला ऐतिहासिक सुधार बताया जा रहा है, तो दूसरी ओर इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला कहा जा रहा है. ऐसे में अब निगाहें संसद की कार्यवाही और विपक्ष-सरकार की रणनीति पर टिकी हैं। यह तय है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा और भी ज्यादा राजनीतिक गर्मी पैदा करेगा.

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