बाबरी मस्जिद को फिर से बनाने का मंसूरी कर रहा था दावा, सुप्रीम कोर्ट ने निकाली हेकड़ी, कहा- रद्द नहीं होगा आपराधिक केस
सुप्रीम कोर्ट ने कानून छात्र मोहम्मद फैय्याज मंसूरी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी. मंसूरी पर 2020 में बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण संबंधी फेसबुक पोस्ट डालने का आरोप है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जय माल्या बागची की पीठ ने कहा कि मामला तथ्यों पर आधारित है, इसलिए कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगी.
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कानून के छात्र मोहम्मद फैय्याज मंसूरी के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया. मंसूरी ने वर्ष 2020 में फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर कहा था कि 'बाबरी मस्जिद का भी एक दिन पुनर्निर्माण किया जाएगा, जिस तरह तुर्की में सोफिया मस्जिद का पुनर्निर्माण किया गया था.' इस पोस्ट के बाद उनके खिलाफ भड़काऊ टिप्पणी के आरोप में केस दर्ज किया गया था.
कोर्ट ने क्या कहा?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जय माल्या बागची की दो न्यायाधीशों की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि वे इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने खुद मंसूरी की पोस्ट देखी है और उसे गंभीरता से परखा है. सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से रखे गए तर्कों को सुना, परंतु यह माना कि मामला पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित है, और इस स्तर पर न्यायालय को दखल नहीं देना चाहिए.
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दिया तर्क?
मंसूरी की ओर से वकील ताल्हा अब्दुल रहमान ने अदालत में दलील दी कि उक्त पोस्ट में कोई अश्लीलता या भड़काऊ भाषा नहीं थी. उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल ने केवल धार्मिक भावनाओं के आधार पर एक तुलना की थी. वकील ने यह भी कहा कि असली भड़काऊ टिप्पणी किसी अन्य व्यक्ति ने की थी, जिसकी जांच तक नहीं की गई. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वकील को अदालत से कोई कठोर टिप्पणी आमंत्रित नहीं करनी चाहिए. अदालत के मूड को समझते हुए वकील ने याचिका वापस लेने का आग्रह किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. पीठ ने आदेश में कहा, 'कुछ समय तक सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की मांग की. इसे अनुमति दी जाती है. यह याचिका वापस ली गई मानी जाए और खारिज की जाती है.' सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अब ट्रायल कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई करेगा और मंसूरी द्वारा पेश किए गए सभी बचाव पक्ष के तर्कों पर अपने स्तर पर विचार करेगा.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, अगस्त 2020 में मंसूरी के खिलाफ लखीमपुर खीरी जिले में एफआईआर दर्ज की गई थी. आरोप था कि फेसबुक पर डाली गई पोस्ट में हिंदू समुदाय की भावनाएं भड़काने वाली बातें थीं. इस पोस्ट के आधार पर जिला मजिस्ट्रेट ने उनकी हिरासत का आदेश भी दिया था. हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाद में वह हिरासत आदेश रद्द कर दिया था. इसके बावजूद, इस साल की शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया और कार्यवाही जारी रखी. इसके बाद मंसूरी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने भी उनकी दलीलें अस्वीकार कर दीं. अंततः मंसूरी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, पर शीर्ष अदालत ने भी आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इंकार कर दिया.
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बताते चले कि इस पूरे मामले ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच की संवेदनशील सीमाओं पर चर्चा छेड़ दी है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह संदेश गया है कि किसी भी पोस्ट या टिप्पणी की जिम्मेदारी व्यक्ति को खुद लेनी होगी और अगर वह सामाजिक सौहार्द पर असर डालती है, तो कानून अपना काम करेगा.
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