राज्यसभा में सुधा मूर्ति का निजी संकल्प... सभी दलों के सांसदों ने किया समर्थन, जानें प्रस्ताव में क्या है खास
संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में सांसदों ने सुधा मूर्ति के निजी संकल्प की सराहना की. इसमें तीन से छह साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा और पोषण की गारंटी देने का प्रस्ताव शामिल है. उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का नाम बदलने और प्रारंभिक शिक्षा सुदृढ़ करने का सुझाव दिया.
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संसद का शीतकालीन सत्र जारी है और इस दौरान लोकसभा व राज्यसभा, दोनों सदनों में विभिन्न मुद्दों को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच लगातार टकराव देखने को मिल रहा है. हालांकि, शुक्रवार को राज्यसभा में एक ऐसा क्षण भी सामने आया, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसद एकजुट नजर आए. दरअसल, विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों ने राज्यसभा की मनोनीत सदस्य सुधा मूर्ति द्वारा पेश किए गए एक निजी संकल्प की सराहना की. इस संकल्प में तीन से छह वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा और पोषण की गारंटी देने का प्रस्ताव रखा गया है.
क्या है सुधा मूर्ति का निजी संकल्प?
दरअसल, सदन में संकल्प पेश करते हुए सुधा मूर्ति ने कहा कि शिक्षित मां देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाती है. उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पर्याप्त पोषण मिलने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बेहतर होता है. इस निजी संकल्प में छोटे बच्चों के लिए पोषण, स्वास्थ्य सेवाओं और प्री-प्राइमरी शिक्षा से जुड़ी सुविधाओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है.
सुधा मूर्ति के प्रस्ताव पर विपक्षी दल ने क्या कहा?
सुधा मूर्ति ने सुझाव दिया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का नाम बदलकर आशा कार्यकर्ता या ‘दीपम’ कार्यकर्ता किया जा सकता है. उनके प्रस्ताव का समर्थन करते हुए डीएमके सांसद पी. विल्सन ने कहा कि शिक्षा को कम से कम 12वीं कक्षा तक अनिवार्य बनाया जाना चाहिए. आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी इस निजी संकल्प के समर्थन में अपनी सहमति जताई. सुधा मूर्ति द्वारा पेश किए गए निजी संकल्प में यह प्रावधान शामिल है कि तीन से छह वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं और प्री-प्राइमरी शिक्षा सहित निशुल्क एवं अनिवार्य प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा की गारंटी देने के लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ने पर विचार किया जाए. उन्होंने कहा कि इस उम्र में बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कई बार अभिभावक पर्याप्त रूप से शिक्षित या जागरूक नहीं होते, जिससे बच्चों के विकास से जुड़े इन अहम पहलुओं पर पूरा ध्यान नहीं दिया जा पाता.
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का उठा मुद्दा
सुधा मूर्ति ने मोदी सरकार के ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का उदाहरण देते हुए कहा कि इसी अभियान की तरह तीन से छह साल के बच्चों को आंगनवाड़ी में शामिल करने के लिए भी विशेष अभियान चलाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस प्रयास में निगमित दायित्व कोष (सीएसआर) की मदद भी ली जा सकती है. साथ ही उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का नाम बदलकर आशा कार्यकर्ता या ‘दीपम’ कार्यकर्ता किया जाए. सुधा मूर्ति ने कहा, 'यदि हमें अपने देश को विकसित राष्ट्र बनाना है तो हमें बच्चों के तीन से छह वर्ष की उम्र में उनके समुचित विकास पर ध्यान देना होगा.' उन्होंने अपने जीवन का उदाहरण देते हुए बताया कि जब उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की और जमशेदपुर में टाटा कंपनी में नौकरी के लिए विज्ञापन देखा, जिसमें लिखा था कि महिलाएं आवेदन न करें, तो उन्होंने जे. आर. डी. टाटा को एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने कहा कि देश की आधी आबादी को अवसर से वंचित करना उचित नहीं है, क्योंकि देश के विकास में महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए. मूर्ति ने आगे कहा कि यह जेआरडी टाटा की महानता थी कि उन्होंने एक अपरिचित लड़की का सुझाव मानते हुए लड़कियों अपने यहां काम करने का अवसर दिया.
अन्य दलों की प्रतिक्रिया
बीजेपी की मेधा विश्राम कुलकर्णी ने कहा कि वह सुधा मूर्ति द्वारा आंगनवाड़ी को सशक्त बनाने के लिए पेश किए गए प्रस्ताव का पूरी तरह समर्थन करती हैं. उन्होंने बताया कि भाजपा की ओर से वह देश के विभिन्न हिस्सों में आंगनवाड़ी केंद्रों का निरीक्षण कर चुकी हैं और उन्हें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अधिकांश राज्यों में आंगनवाड़ियों का कामकाज प्रभावशाली है. इस चर्चा में द्रमुक के सांसद पी. विल्सन ने तमिलनाडु में केंद्र द्वारा स्कूली शिक्षा के लिए दिए जाने वाले फंड को रोके जाने का मुद्दा उठाया. उन्होंने शिक्षा अर्हता परीक्षा को अनिवार्य करने के नियम का विरोध करते हुए कहा कि इससे देश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी होने की संभावना है. आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी चर्चा में हिस्सा लिया और कहा कि जापान सहित कई देशों में तीन से छह वर्ष की उम्र के बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में शिक्षा का नेटवर्क विश्व का सबसे बड़ा है, लेकिन उसकी गुणवत्ता में व्यापक असमानता देखने को मिलती है.
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बताते चलें कि संसद में सुधा मूर्ति के निजी संकल्प ने सभी दलों के सांसदों का ध्यान छोटे बच्चों की शिक्षा और पोषण की अहमियत की ओर आकर्षित किया. इस प्रस्ताव पर बहस ने स्पष्ट कर दिया कि प्रारंभिक बाल्यावस्था में बच्चों के समुचित विकास के लिए सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति और जागरूकता जरूरी है.
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