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सोना मुश्किल नहीं, जगह पर रहना चुनौती है...स्पेस स्टेशन से शुभांशु शुक्ला ने बताए अंतरिक्ष जीवन के राज, छात्रों के हर सवाल का दिया बेबाकी से जवाब

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचे पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने गुरुवार को भारतीय छात्रों से संवाद किया. उन्होंने एक्सिओम मिशन 4 को अद्भुत और गतिशील बताया और कहा कि अंतरिक्ष में रहना मजेदार अनुभव है, क्योंकि वहां न फर्श होता है न छत. छात्रों के सवालों पर उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के रोमांच और मानवता को मिलने वाले लाभों पर भी प्रकाश डाला.

अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने गुरुवार को भारतीय छात्रों के साथ एक रोचक और प्रेरणादायक बातचीत की. इस दौरान छात्रों ने उनसे अंतरिक्ष जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण अनुभव को साझा किया, जैसे अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं, वे कैसे सोते हैं, और अगर कोई बीमार पड़ जाए तो क्या होता है.

छात्रों ने यह भी जानना चाहा कि अंतरिक्ष यात्रा का सबसे आनंददायक पहलू क्या होता है और मानवता को इससे क्या लाभ मिलते हैं. इन सवालों का उत्तर देते हुए शुभांशु शुक्ला ने अपने एक्सिओम मिशन 4 के प्रक्षेपण अनुभव को “अद्भुत” और “गतिशील” बताया. उन्होंने कहा, “यह वास्तव में मजेदार है, क्योंकि अंतरिक्ष में न तो फर्श होता है और न ही छत. इसलिए अगर आप आईएसएस जाएं, तो पाएंगे कि कोई दीवारों पर सो रहा है, तो कोई छत पर. सब कुछ गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण हवा में तैरता है.” शुक्ला ने बच्चों को वैज्ञानिक सोच अपनाने और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल विज्ञान का नहीं, बल्कि मानवता के भविष्य से जुड़ा एक बड़ा मिशन है.

खाने के सवाल पर बोले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला
जब एक छात्र ने पूछा कि अंतरिक्ष यात्री क्या खाते हैं, तो शुक्ला ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "अधिकांश भोजन पहले से पैक किया हुआ होता है और यह ध्यान रखा जाता है कि अंतरिक्ष यात्रियों को पर्याप्त पोषण मिले. विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं, और अंतरिक्ष यात्री उन्हें चख सकते हैं. जो भी उन्हें पसंद आता है, उसी को पैक कर दिया जाता है.” उन्होंने बताया कि स्वाद और पोषण के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी होता है, क्योंकि अंतरिक्ष में शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव अलग होते हैं.

अंतरिक्ष में बीमार पड़े तो क्या होगा?
जब एक छात्र ने पूछा कि यदि कोई अंतरिक्ष में बीमार पड़ जाए तो क्या होता है, तो शुभांशु शुक्ला ने कहा, “ऊपर तैरना और खुद को छत से बांधना बहुत आसान है, लेकिन असली चुनौती यह है कि आप सुबह उसी जगह पाए जाएं जहां रात को सोए थे. इसलिए हमें अपने स्लीपिंग बैग को अच्छी तरह बांधना होता है, ताकि हम कहीं और न तैर जाएं.” एक अन्य छात्र ने मानसिक स्वास्थ्य पर अंतरिक्ष के प्रभाव के बारे में पूछा. इस पर शुक्ला ने कहा कि आज की तकनीक ने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यह पहलू काफी आसान बना दिया है. “हम अपने परिवार और दोस्तों से जुड़ सकते हैं, वीडियो कॉल कर सकते हैं. इससे बहुत मदद मिलती है. भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में यह तकनीकी सुविधा बहुत अहम भूमिका निभाती है.” शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष में दिन-रात का कोई तय पैटर्न नहीं होता, इसलिए नियमित दिनचर्या और मानसिक ताजगी बनाए रखना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है, जिसे टीमवर्क और तकनीकी सपोर्ट के जरिए संभाला जाता है.

पृथ्वी पर लौटना फिर एक चुनौती
छात्रों से बातचीत में शुभांशु शुक्ला ने कहा, अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कीं. उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष के भारहीन वातावरण (माइक्रोग्रैविटी) में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है, क्योंकि शरीर में तरल पदार्थों का प्रवाह बदल जाता है, जिससे पाचन तंत्र पर असर पड़ता है. शुक्ला ने कहा, "मेरा शरीर अब माइक्रोग्रैविटी के अनुकूल हो गया है, लेकिन जब मैं पृथ्वी पर वापस लौटूंगा तो मेरे शरीर को गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल फिर से ढलना होगा। यह फिर से एक चुनौती है.”

इस बीच नासा ने गुरुवार को जानकारी दी कि शुभांशु शुक्ला स्पेस में मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस (Brain-Computer Interface) विकसित करने पर काम कर रहे हैं. वह एक्सिओम मिशन-4 (Ax-4) के तहत अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आईएसएस पर 14 दिवसीय वैज्ञानिक मिशन पर हैं. इस मिशन के दौरान यह दल लगभग 60 वैज्ञानिक और वाणिज्यिक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. इसमें 31 देशों की भागीदारी है, जिनमें अमेरिका, भारत, पोलैंड, हंगरी, सऊदी अरब, ब्राजील, नाइजीरिया, यूएई और यूरोप के कई देश शामिल हैं. भारत ने भी इसरो के माध्यम से इस अंतरराष्ट्रीय अभियान में अहम भूमिका निभाई है. इसरो द्वारा सावधानीपूर्वक चयनित सात वैज्ञानिक अध्ययनों को इस मिशन में शामिल किया गया है, जो भारत की वैज्ञानिक क्षमता और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में बढ़ते योगदान को दर्शाता है.

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