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केरल में ईसाइयों के गढ़ में लहराया भगवा, जहां चला वक्फ बोर्ड के खिलाफ आंदोलन, वहां जीती BJP, हिली लेफ्ट सरकार

केरल में स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए सकारात्मक नजर आ रहे हैं. पार्टी ने उन इलाकों में भगवा लहराया है, जहां वक्फ विवाद काफी हावी रहा है. बीजेपी को ईसाइयों से मिले समर्थन ने राज्य की राजनीति में लेफ्ट और कांग्रेस की बुनियाद हिला दी है.

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13 Dec 2025
( Updated: 13 Dec 2025
04:02 PM )
केरल में ईसाइयों के गढ़ में लहराया भगवा, जहां चला वक्फ बोर्ड के खिलाफ आंदोलन, वहां जीती BJP, हिली लेफ्ट सरकार

केरल में स्थानीय निकाय चुनावों के बाद राज्य की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाली माकपा (CPI-M) को इस बार नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. सत्तारूढ़ दल को अपने पारंपरिक गढ़ों में भी भारी झटके लगे हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को स्पष्ट लाभ मिलता दिख रहा है. इन नतीजों ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है. बीजेपी ने उन इलाकों में भी जीत दर्ज की है या बढ़त बनाई है, जहां के सामाजिक समीकरण कभी से उसके पक्ष में नहीं रहे हैं. हालांकि बीजेपी को इस बार उसकी वर्षों की मेहनत का ऐसा फल मिला है, जिसका स्वाद वह आने वाले विधानसभा चुनावों में भी चख सकती है.

आपको बता दें कि केरल के स्थानीय निकाय चुनावों को राज्य की राजनीति के लिए टर्निंग पॉइंट कहा जा रहा है. इसकी कई वजहें हैं. नतीजों के लिहाज से देखें तो वैसे तो बीजेपी नंबर्स हासिल नहीं कर पाई है, लेकिन उसने एक तरह से अपना वह सामाजिक समीकरण बना लिया है, जिसकी कोशिश वह लंबे समय से कर रही थी. आपको बता दें कि केरल के एर्नाकुलम जिले का मुनंबम इलाका, जहां वक्फ विवाद का लंबा इतिहास रहा है, वहां एनडीए की जीत ने इतिहास रच दिया है. बीजेपी के केरल महासचिव अनूप एंटनी जोसेफ ने मुनंबम वार्ड में एनडीए की जीत को “ऐतिहासिक” बताया है.

वक्फ आंदोलन का बीजेपी को मिला फायदा!

बीजेपी नेता अनूप एंटनी जोसेफ ने दावा किया है कि मुनंबम में करीब 500 ईसाई परिवार कथित तौर पर वक्फ बोर्ड के अवैध दावों की वजह से अपने ही घरों से बेदखली के संकट का सामना कर रहे थे. उनके लिए जीवन और मरण का खतरा पैदा हो गया था. अनूप एंटनी ने आगे कहा कि केंद्र की मोदी सरकार और बीजेपी ने इस मुद्दे पर खुलकर पीड़ित परिवारों का साथ दिया. आज उसी का नतीजा है कि इन लोगों ने स्थानीय चुनाव में बीजेपी को अपना आशीर्वाद दिया है.

सात दशक पुरानी है वक्फ विवाद की जड़

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुनंबम वक्फ विवाद की जड़ करीब सात दशक पुरानी है. दरअसल, साल 1950 में सिद्दीकी सैत नामक व्यक्ति ने अपनी जमीन फरीद कॉलेज को दान में दे दी थी. बाद में कॉलेज प्रशासन ने इसी जमीन पर पहले से रह रहे स्थानीय लोगों के हाथों दान की गई भूमि के कुछ हिस्से को सौंप दिया. करीब 69 साल बाद, 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने इस पूरी जमीन को वक्फ संपत्ति के तौर पर रजिस्टर करा दिया, जिसके बाद इन लोगों के लिए वहां रहना मुश्किल हो गया. जमीन के वक्फ के रूप में रजिस्टर्ड होने के बाद पहले हुए सभी समझौते अमान्य माने जाने लगे, यानी सैकड़ों ईसाई परिवारों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया.

कोर्ट में क्या हुआ?

वहीं इस फैसले के खिलाफ मुनंबम और चेराई इलाकों में 410 दिनों से भी ज्यादा समय तक आंदोलन चला. प्रभावित परिवारों ने कोझिकोड वक्फ ट्रिब्यूनल में इस फैसले को चुनौती दी. बाद में राज्य सरकार ने जमीन के स्वामित्व की जांच के लिए सी.एन. रामचंद्रन नायर आयोग का गठन किया था. 2025 में केरल हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इस आयोग को रद्द कर दिया था, लेकिन बाद में डिवीजन बेंच ने आयोग को बहाल कर दिया. साथ ही अदालत ने 2019 के वक्फ रजिस्ट्रेशन को ‘कानून के अनुरूप नहीं’ बताया.

सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत!

हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के “नॉट वक्फ” वाले फैसले पर रोक लगा दी और जनवरी 2026 तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. इससे फिलहाल किसी भी परिवार की बेदखली पर रोक लग गई है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन भी पहले ही भरोसा दिला चुके हैं कि किसी को जबरन नहीं हटाया जाएगा.

मुनंबम की जीत, ईसाई समुदाय के बीच बढ़ी बीजेपी की पैठ!

ऐसे में जो इलाका वक्फ विवाद को लेकर सुर्खियों में रहा, वहां बीजेपी की जीत से नए राजनीतिक समीकरण जन्म लेते दिख रहे हैं. भगवा पार्टी ने पूरे मामले को “न्याय बनाम अन्याय” की लड़ाई के तौर पर पेश किया है. पार्टी मुनंबम में मिली ऐतिहासिक जीत को केरल में ईसाई समुदाय के बीच उसकी बढ़ती पैठ और भरोसे के संकेत के तौर पर देख रही है. ऐसे में ईसाइयों से मिले समर्थन से उत्साहित बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में इसे भुनाने और आक्रामक कैंपेन चलाने की तैयारी में है.

निकाय चुनाव के नतीजों से हिली लेफ्ट-कांग्रेस!

केरल के अन्य नगर निगमों में भी माकपा की स्थिति कमजोर नजर आ रही है. कोझिकोड, कोल्लम और कोझिकोड जैसे प्रमुख नगर निगमों में पार्टी की हार की आशंका जताई जा रही है, जिसे राजनीतिक विश्लेषक बेहद चौंकाने वाला मान रहे हैं. परंपरागत रूप से माकपा स्थानीय निकाय चुनावों में, खासकर पंचायत स्तर पर, कठिन राजनीतिक परिस्थितियों में भी अपने किले बचाने में सफल रहती रही है, लेकिन इस बार यह परंपरा टूटती दिख रही है.

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माकपा इन चुनावों में सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाने जैसे कदमों की घोषणा के साथ उतरी थी. हालांकि, पहले के चुनावों के विपरीत इस बार ये कल्याणकारी उपाय पार्टी के पक्ष में जाते नजर नहीं आए, जबकि माकपा लगातार दूसरी बार राज्य की सत्ता में है. यह साफ होता जा रहा है कि माकपा नेतृत्व को इस हार के कारणों पर गंभीर मंथन करना होगा.

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