OBC क्रीमीलेयर का बदल सकता है नियम... मोदी सरकार 6 मंत्रालयों में कर रही विचार-विमर्श, ये लोग हो सकते हैं आरक्षण के दायरे से बाहर
केंद्र सरकार OBC आरक्षण में बदलाव पर विचार कर रही है, जिसके तहत केंद्रीय-राज्य सेवाओं, सार्वजनिक उपक्रमों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र में ऊंचे पद व आय सीमा वाले कर्मचारियों को क्रीमी लेयर में शामिल किया जा सकता है, ताकि आरक्षण का लाभ केवल जरूरतमंदों तक पहुंचे.
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केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय के भीतर आरक्षण का लाभ सही वर्ग तक पहुंचाने के लिए एक बड़े बदलाव की तैयारी में है. सूत्रों के मुताबिक सरकार ऐसा प्रस्ताव ला रही है, जो केंद्रीय और राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के बीच क्रीमी लेयर के मामले में एक जैसी कसौटी तय करेगा. इसका सीधा असर उन परिवारों पर पड़ेगा, जो ऊंचे पदों और उच्च वेतनमान की वजह से अब क्रीमी लेयर में गिने जाएंगे और उनके बच्चे OBC आरक्षण के हकदार नहीं रहेंगे.
क्या चाहती है सरकार
इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य यह है कि OBC आरक्षण का लाभ समाज के कमजोर और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग तक पहुंचे. अभी की स्थिति में OBC समुदाय के भीतर कई आर्थिक रूप से संपन्न और ऊंचे पदों पर मौजूद लोग भी आरक्षण का फायदा उठा रहे हैं. सरकार चाहती है कि ऐसे लोगों को बाहर करके असल ज़रूरतमंदों तक यह सुविधा पहुंचे.
क्रीमी लेयर की मौजूदा स्थिति
OBC में क्रीमी लेयर की अवधारणा 1992 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले के फैसले के बाद लागू हुई थी. शुरुआत में 1993 में इसकी आय सीमा 1 लाख रुपये सालाना तय हुई. बाद में यह सीमा 2004, 2008 और 2013 में संशोधित की गई. आखिरी बार 2017 में इसे बढ़ाकर 8 लाख रुपये प्रतिवर्ष किया गया, जो आज भी लागू है. क्रीमी लेयर में वे लोग आते हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत हैं. इसमें अखिल भारतीय सेवाओं, केंद्रीय व राज्य सेवाओं के ग्रुप-ए/क्लास-I अधिकारी, ग्रुप-बी/क्लास-II अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के उच्च अधिकारी, सशस्त्र बलों के अधिकारी, बड़े व्यवसायी, पेशेवर, उद्योगपति और बड़ी संपत्ति के मालिक शामिल होते हैं.
समतुल्यता का मतलब क्या है?
दरअसल, अभी तक कई क्षेत्रों में यह साफ नहीं है कि कौन-सा पद या वेतनमान सरकारी सेवाओं के किस ग्रुप के बराबर है. इसी वजह से OBC प्रमाण पत्र जारी करने में दिक्कत आती है. 2017 में कुछ केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए समतुल्यता तय की गई थी, लेकिन विश्वविद्यालयों, निजी क्षेत्र, राज्य सरकारों और उनके संस्थानों के लिए यह काम बाकी है. अब सरकार इस पूरे दायरे में समानता लाने की तैयारी में है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रस्ताव सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, विधि मामलों के मंत्रालय, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय, नीति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के बीच परामर्श के बाद तैयार किया गया है.
किन-किन पर असर होगा
अगर प्रस्ताव लागू हुआ तो विश्वविद्यालयों के सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर जैसे शिक्षण कर्मचारियों को भी क्रीमी लेयर में गिना जाएगा, क्योंकि इनका वेतन लेवल-10 या उससे ऊपर होता है, जो ग्रुप-ए के बराबर है. इसका मतलब यह हुआ कि इन पदों पर कार्यरत लोगों के बच्चे OBC आरक्षण से बाहर हो जाएंगे. निजी क्षेत्र में भी पद और वेतनमान का मूल्यांकन किया जाएगा. जिनका पैकेज और पद ग्रुप-ए के समकक्ष पाया जाएगा, उन्हें भी क्रीमी लेयर में शामिल किया जाएगा. यानी ऊंची तनख्वाह पाने वाले प्राइवेट सेक्टर के अधिकारी भी आरक्षण के हकदार नहीं रहेंगे. केंद्रीय और राज्य स्वायत्त निकायों, वैधानिक संगठनों, विश्वविद्यालयों के गैर-शिक्षण कर्मचारियों, राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारियों और विभिन्न बोर्डों के उच्च प्रबंधकों को भी उनके स्तर और वेतनमान के आधार पर क्रीमी लेयर में लाया जा सकता है.
क्यों जरूरी है यह बदलाव?
OBC आरक्षण का मकसद पिछड़े वर्गों को शिक्षा और रोजगार में बराबरी का मौका देना है. लेकिन अगर समाज के पहले से मजबूत तबके को ही इसका फायदा मिलता रहेगा, तो असली हकदार पीछे छूट जाएंगे. सरकार का मानना है कि नई कसौटी तय होने के बाद आरक्षण का लाभ सही वर्ग तक पहुंचेगा और सामाजिक न्याय की भावना मजबूत होगी.
विपक्ष और विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
इस प्रस्ताव पर राजनीतिक हलकों और विशेषज्ञों में अलग-अलग राय है. कुछ का कहना है कि यह कदम आरक्षण की आत्मा के अनुरूप है और इससे असमानता घटेगी. वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि आय सीमा और पद का मूल्यांकन सिर्फ वेतन के आधार पर नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति और स्थानीय परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए.
जानकारी देते चलें कि रिपोर्ट के अनुसार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, विधि मंत्रालय, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय, नीति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के बीच परामर्श के बाद ही अंतिम फैसला होगा. फिलहाल चर्चा और मसौदा तैयार करने का काम चल रहा है. ऐसे में अगर यह प्रस्ताव लागू हो गया, तो यह OBC आरक्षण नीति में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव होगा. इससे लाखों परिवारों की पात्रता प्रभावित हो सकती है. अगले कुछ महीनों में इस पर अंतिम निर्णय आने की उम्मीद है.
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