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मोदी को मिला जापान का सबसे पवित्र तोहफा, गुड लक साइन दारुमा डॉल को निहारते रह गए PM, क्यों हो रही इस गुड़िया की चर्चा?

लाल रंग, गोल और खोखला आकार, सफेद आंखें, बिना हाथ पैर वाली दारुमा गुड़िया को जापान में गुड लक का संकेत माना जाता है. टोक्यो के फेमस शोरिनजान मंदिर के मुख्य पुजारी ने जब ये गुड लक गुड़िया पीएम मोदी को भेंट की तो वह भी कुछ देर तक इसे निहारते रहे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के जापान दौरे पर हैं. राजधानी टोक्यो में कदम रखते ही PM मोदी का ज़ोरदार स्वागत हुआ. PM के स्वागत में कहीं जापानी महिलाओं ने भरतनाट्यम किया तो कहीं गायत्री मंत्रों और भजनों की धुन सुनाई दी. इस दौरान PM मोदी को जापान में ऐसा तोहफ़ा भेंट किया गया जो दोनों देशों के बीच आध्यात्मिक और ऐतिहासिक कड़ी का प्रतीक बन गया. ये ख़ास तोहफा है दारूमा डॉल. ये गुड़िया जापान की संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा तो है ही साथ-साथ इसका कनेक्शन भारत से भी है. क्या है दारुमा डॉल का इतिहास और कहानी चलिए जानते हैं. 

लाल रंग, गोल और खोखला आकार, सफेद आंखें, बिना हाथ पैर वाली दारुमा गुड़िया को जापान में गुड लक का संकेत माना जाता है. 
टोक्यो के फेमस शोरिनजान मंदिर के मुख्य पुजारी ने जब ये गुड लक गुड़िया पीएम मोदी को भेंट की तो वह भी कुछ देर तक इसे निहारते रहे. इस गुल्लकनुमा गुड़िया की जापान में भगवान के समान ही पूजा की जाती है. 

बुरी शक्तियों का नाश, सौभाग्य का उदय!
दारुमा डॉल को जापान में बौद्ध धर्म की स्थापना का प्रतीक माना जाता है. दरअसल, जापान के प्रसिद्ध संत दारुमा के नाम पर इस गुड़िया का नाम दारुमा रखा गया. दारुमा पांचवीं शताब्दी के बौद्ध संत थे उन्हें बौधिधर्म भी कहा जाता था. संत दारुमा को ही जापान में बौद्ध धर्म की स्थापना का श्रेय दिया जाता है. शिंतो धर्म के बाद जापान में बौद्ध धर्म को मानने वाले सबसे ज्यादा लोग रहते हैं. दारुमा कागज से बनाई जाती है जबकि इसका बेस मिट्टी से तैयार होता है. इसके लाल रंग के पीछे माना जाता है कि लाल रंग बुरी आत्माओं को दूर भगाता है और जीवन में पॉजिटिविटी और सौभाग्य लेकर आता है. दारुमा डॉल को लेकर एक और ख़ास बात ये है कि यह गुड़िया गिरकर ख़ुद ही खड़ी हो जाती है. इसकी वजह इस गुड़िया की संरचना है. 

हार न मानने का प्रतीक 
दारुमा बिना हाथ-पैर वाली गुड़िया है डॉल का ये आकार देखने में जितना विचित्र है उसके मायने उतने ही गहरे हैं दारुमा डॉल का आकार में जीवन मंत्र छुपा हुआ है इसके पीछे विचार था कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं हार नहीं माननी है. वहीं, दारुमा डॉल की बनावट को लेकर एक धारणा ये भी है कि बौद्ध संन्यासी दारुमा के कठिन ध्यान के कारण उनके हाथ और पैर गायब हो गए थे. इसलिए दारुमा डॉल को बनाते वक्त इसमें हाथ पैर नहीं जोड़े गए. 

एदो काल में अस्तित्व में आई दारुमा डॉल
1603-1868 के समय को जापान में एदो काल कहा गया है. दो काल जापान का ऐतिहासिक युग था. यह वह समय था जब जापान में टोकुगावा शोगुनेट का शासन था. इस युग में जापान में शांति, स्थिरता, और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया गया. एदो काल में ही दारुमा गुड़िया अस्तित्व में आई. 

दारुमा डॉल का भारत कनेक्शन 
यूं तो भारत में शायद ही किसी ने दारुमा डॉल के बारे में सुना होगा, लेकिन दारुमा डॉल का कनेक्शन भारत से भी है. कहा जाता है संत बौधिधर्म या दारुमा भारत के मदुरै से ही जापान गए थे. वह पहले चीन गए और फिर जापान का रुख किया था. यहां उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार और स्थापना की. 

जापान के पुजारी का पीएम मोदी को यह दारुमा डॉल भेंट करना न केवल शिष्टाचार का हिस्सा है, बल्कि परंपरा और दो देशों की दोस्ती को और गहरा करने की ख्वाहिश भी है. इस खास तोहफे के जरिए जापान ने बताया कि, उनकी परंपरा की जड़ें कहीं न कहीं भारत से जुड़ी हैं. दोनों देशों का यही साझा इतिहास और धर्म उन्हें एक दूसरे से जोड़े रखता है. गौरतलब है कि, PM मोदी का यह 8वां जापान दौरा है. शुक्रवार सुबह पीएम मोदी राजधानी टोक्यो पहुंचे यहां पीएम मोदी भारतीय मूल के लोगों से मिले. इसके बाद उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा से मुलाकात की. दोनों के बीच कई समझौतों पर साइन किए गए. साथ-साथ आपसी रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करने पर ज़ोर दिया गया. 

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