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'मेलानिया ही बताएंगी ट्रंप से निपटने का हल...', अमेरिका के टैरिफ वॉर पर शशि थरूर का मजेदार तंज

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तंज कसते हुए कहा कि अगर 50% टैरिफ बरकरार रहा तो भारत को भी समान जवाब देना चाहिए. उन्होंने ट्रंप की तुलना स्कूल के दबंग से की और कहा कि भारत आत्मसम्मान पर सौदेबाजी नहीं करेगा. 25 अगस्त को होने वाली वार्ता से पहले उन्होंने संयम, समझदारी और कृषि पर समझौता न करने की सलाह दी.

'मेलानिया ही बताएंगी ट्रंप से निपटने का हल...', अमेरिका के टैरिफ वॉर पर शशि थरूर का मजेदार तंज
Image: File Photo

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाने की योजना ने राजनीतिक और आर्थिक हलकों में हलचल मचा दी है. इस मसले पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने खुलकर अपनी राय रखी और ट्रंप के अंदाज पर तंज कसा थरूर ने न सिर्फ अमेरिका की व्यापारिक नीतियों की आलोचना की बल्कि भारत की ओर से एक स्पष्ट संदेश भी दिया कि “आत्मसम्मान पर कोई सौदेबाज़ी नहीं होगी.”

थरूर का तीखा तंज

इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में जब शशि थरूर से पूछा गया कि वह ट्रंप से कैसे निपटेंगे, तो उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, “आपको मेलानिया ट्रंप से पूछना चाहिए कि वह डोनाल्ड से कैसे निपटती हैं.” यह बयान सुनकर इंटरव्यू के दौरान मौजूद सभी लोग मुस्कुरा उठे, लेकिन इसके पीछे छिपा संदेश साफ था. थरूर ट्रंप की आक्रामक और दबंगई वाली नीति को हल्के में नहीं लेते. उन्होंने ट्रंप की तुलना स्कूल के मैदान में बदमाशी करने वाले बच्चे से करते हुए कहा कि अमेरिका ने भारत को गलत तरीके से टारगेट किया है. उनका कहना था कि 25 अगस्त को दिल्ली में होने वाली भारत-अमेरिका वार्ता से पहले हमें संयम और समझदारी के साथ तैयारी करनी चाहिए और अपनी लाल रेखाएं स्पष्ट कर देनी चाहिए.

कृषि पर समझौता नहीं होगा

थरूर ने अमेरिका की व्यापारिक मांगों पर अपनी सबसे सख्त आपत्ति कृषि क्षेत्र को लेकर जताई. उन्होंने कहा, “हमारे देश में 70 करोड़ लोग कृषि पर निर्भर हैं. हम उन्हें सस्ते अमेरिकी अनाज की बाढ़ में बहा नहीं सकते. कुछ क्षेत्रों में हम लचीलापन दिखा सकते हैं, लेकिन कृषि पर कोई समझौता नहीं होगा.” यह बयान भारत के किसानों के हित में एक बड़ा राजनीतिक संकेत माना जा रहा है.

अमेरिका की ‘दोहरी नीति’ पर सवाल

थरूर ने अमेरिकी नीतियों में दोहरे मानदंड का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने खुलासा किया कि जनवरी से मई तक अमेरिका ने रूस से 806 मिलियन डॉलर के उर्वरक खरीदे, और यह सालभर में 1.8 से 2 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. इसके अलावा, अमेरिका ने रूस से यूरेनियम के आयात में 28% की बढ़ोतरी की, पैलेडियम का लगभग 1 अरब डॉलर का आयात किया, और एयरक्राफ्ट पार्ट्स, इंजन कंपोनेंट्स, तथा केमिकल्स भी खरीदे. थरूर का सवाल था कि “कैसे ट्रंप कह सकते हैं कि भारत के डॉलर रूस के युद्ध को फंड कर रहे हैं और अमेरिका के डॉलर नहीं? यह सीधी-सीधी कपटपूर्ण और अनुचित सोच है.”

तीन हफ्ते की कसौटी

आगामी तीन हफ्ते भारत के लिए बेहद अहम माने जा रहे हैं. 25 अगस्त को होने वाली वार्ता तक भारत को एक संतुलित लेकिन दृढ़ रणनीति अपनानी होगी. थरूर का सुझाव है कि हमें बातचीत में खुलापन दिखाना चाहिए, लेकिन अगर अमेरिका अनुचित रवैया जारी रखता है तो भारत को वैकल्पिक बाज़ार ढूंढने होंगे. उन्होंने कहा, “भारत को यह दिखाना होगा कि वह दबाव में झुकने वाला देश नहीं है। हम समान सम्मान के आधार पर व्यापारिक रिश्ते चाहते हैं, न कि एकतरफा शर्तों पर.”

क्यों है यह विवाद इतना अहम?

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते लंबे समय से सहयोग और टकराव, दोनों के मिश्रण रहे हैं. ट्रंप सरकार पहले भी भारत पर व्यापारिक रियायतों को लेकर दबाव डाल चुकी है. अतिरिक्त 25% टैरिफ का सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ेगा, खासतौर पर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और कृषि उत्पाद क्षेत्रों में. अगर यह टैरिफ लागू हो गया, तो भारत को अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है.

भारत की संभावित रणनीति

थरूर के मुताबिक, भारत को दो मोर्चों पर काम करना होगा –

  • राजनयिक वार्ता – जहां भारत अमेरिका को यह समझा सके कि कठोर टैरिफ दोनों देशों के रिश्तों के लिए हानिकारक होंगे.
  • वैकल्पिक बाजार – अगर अमेरिका अपनी जिद पर अड़ा रहा, तो भारत को यूरोप, एशिया और अफ्रीका के देशों के साथ व्यापार बढ़ाना होगा.

थरूर का यह भी मानना है कि इस तरह के संकट भारत के लिए नए अवसर भी खोल सकते हैं.

राजनीतिक और आर्थिक संदेश

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थरूर के बयानों से यह साफ है कि वह आर्थिक मुद्दों को राजनीतिक गरिमा से जोड़कर देखते हैं. उनकी बातों में जहां किसानों के प्रति चिंता झलकती है, वहीं अंतरराष्ट्रीय राजनीति के प्रति गहरी समझ भी दिखाई देती है. भारत-अमेरिका वार्ता आने वाले समय में न सिर्फ आर्थिक फैसले तय करेगी, बल्कि दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों की दिशा भी.

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