Advertisement

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने उप सेनाध्यक्ष का कार्यभार संभाला, श्रीलंका में लड़े भीषण युद्ध से लेकर रणनीतिक पदों तक का शानदार सफर

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने भारतीय थल सेना के उप सेनाध्यक्ष का पद संभाल लिया है. वे 1987 में पैरा रेजिमेंट (स्पेशल फोर्सेस) की चौथी बटालियन से कमीशंड हुए थे. श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के अभियान के दौरान उन्होंने 1989 में एक क्विक रिएक्शन टीम का नेतृत्व करते हुए घातक हमले का सामना किया और बहादुरी से जवाब दिया. इस संघर्ष में चार एलटीटीई आतंकवादी ढेर हुए, जबकि वे स्वयं गंभीर रूप से घायल हुए थे.

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने भारतीय थल सेना के उप सेनाध्यक्ष (Vice Chief of Army Staff) के रूप में शुक्रवार को कार्यभार संभाल लिया है. पैरा रेजिमेंट (स्पेशल फोर्सेस) की चौथी बटालियन से संबंध रखने वाले इस वरिष्ठ अधिकारी को वर्ष 1987 में कमीशन मिला था. अपनी सेवाओं के दौरान उन्होंने भारतीय सेना में कई महत्त्वपूर्ण अभियानों और ऑपरेशनों का हिस्सा रहते हुए अद्वितीय नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है.

कहां हुई पहली तैनाती?

लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेन्द्र सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज और लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से सैन्य प्रशिक्षण लिया. युवा अधिकारी के रूप में उन्होंने अपनी सेवा की शुरुआत श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के तहत की, जहां उनकी बटालियन 4 पैरा को अक्टूबर 1987 में तैनात किया गया था. इस दौरान उन्होंने जाफना और किलिनोच्चि जैसे संवेदनशील इलाकों में अभियानों में भाग लिया.

जब घायल हो गए थे लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह

22 जुलाई 1989 को सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में वे एक क्विक रिएक्शन टीम का नेतृत्व कर रहे थे. उनकी टुकड़ी पर ईरानामाडु से किलिनोच्चि जाते समय घात लगाकर हमला किया गया. अत्यंत कठिन हालात में उन्होंने साहस और नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए मुकाबला किया. इस संघर्ष में चार एलटीटीई आतंकवादी मारे गए जबकि कई घायल हुए. हालांकि, इस कार्रवाई में उनकी टीम के पांच बहादुर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. लेफ्टिनेंट पुष्पेन्द्र सिंह स्वयं भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उप सेनाध्यक्ष का कार्यभार संभालने के मौके पर उन्होंने इस अभियान में शहीद हुए पांच सैनिकों के परिजनों और वीर नारियों को आमंत्रित किया. वे उनके साथ नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचे, जहां उन्होंने ‘एटरनल फ्लेम’ पर श्रद्धांजलि अर्पित की और ‘त्याग चक्र’ पर पुष्पांजलि समर्पित की, जिस पर शहीदों के नाम अंकित हैं.

कई बड़े ऑपरेशन का रहे हिस्सा 

लेफ्टिनेंट जनरल सिंह इससे पहले सेना मुख्यालय में महानिदेशक, परिचालन लॉजिस्टिक्स एवं रणनीतिक आवागमन (DGOLSM) के पद पर कार्यरत थे. उन्होंने सेना में अपने 38 वर्षों के सेवा काल में ऑपरेशन पवन, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन ऑर्किड और ऑपरेशन रक्षक जैसे महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया है. उन्होंने नियंत्रण रेखा (LoC) और कश्मीर घाटी में एक स्पेशल फोर्स यूनिट की कमान संभाली. इसके अलावा ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के दौरान चीन सीमा पर एक माउंटेन डिवीजन का नेतृत्व किया. वे जम्मू, सांबा और पठानकोट जैसे संवेदनशील इलाकों की जिम्मेदारी संभालने वाले कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग भी रह चुके हैं. उन्हें उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं की रणनीति और सुरक्षा व्यवस्था की गहरी समझ है.

जानकारी देते चलें कि उनकी शैक्षणिक योग्यता भी उतनी ही प्रभावशाली रही है. उन्होंने वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज से स्टाफ कोर्स, सिकंदराबाद के कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट से हायर डिफेंस मैनेजमेंट कोर्स और आईआईपीए से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एडवांस प्रोफेशनल कोर्स किया है. इसके अलावा उन्होंने ओस्मानिया यूनिवर्सिटी से प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री और पंजाब विश्वविद्यालय से एम.फिल. की डिग्री प्राप्त की है. राष्ट्र के प्रति समर्पण और सेना में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा मेडल (AVSM) और सेना मेडल (SM) से सम्मानित किया जा चुका है. उनके नेतृत्व से भारतीय सेना को आने वाले समय में रणनीतिक दृष्टि और मजबूत संचालनिक दिशा मिलने की उम्मीद है.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement

अधिक →