लेटरल एंट्री खुल गई राहुल की पोल, मोदी को आरक्षण विरोधी बताने वालों के सबूत देखिए !
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में 2007 से 2,700 से अधिक वरिष्ठ वैज्ञानिकों की भर्ती साक्षात्कार के माध्यम से की गई है, जिससे आरक्षण नीति का उल्लंघन हुआ है। वैज्ञानिकों की संस्था ARSSF ने इस प्रणाली पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है जिससे कार्यस्थल पर विषाक्त वातावरण बन रहा है और आरक्षित वर्गों के वैज्ञानिक पदोन्नति में पिछड़ रहे हैं
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राहुल गांधी जो राजनीति कर रहे है उसकी उम्र ज्यादा नहीं है क्योंकि उसकी बुनियाद झूठ पर टिकी है, और जब इमारत झूठ की बुनियाद पर टिकी हो तब, कब इमारत भरभराकर गिर जाएं, कहना मुश्किल होता है। जी हां, लेटरल एंट्री के मामले पर राहुल को लगा की सरकार से लेटरल एंट्री का फैसला वापस करवाकर उन्होने जंग जीत ली लेकिन असली खेल तो मोदी ने किया है, फैसले को वापस लेकर, मोदी ने फैसला वापस लेकर दिखा दिया कि राहुल और उनके सहयोगी असल में आरक्षण विरोधी है। इस पूरे मामले में द हिंदू ने एक रिपोर्ट छापी है, जिससे कांग्रेस की पोल खुल गई, और जो मोदी बैकफुट पर थे वो फ्रंटफुट पर आ गए।तो चलिए एक एक कर आपको बताते है कि कैसे कांग्रेस के वक्त में लेटरल एंट्री हुआ करती थी।
द हिंदू की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानि ICAR में ज्यादातर उच्च पदों की भर्तिया आरक्षण के नियमों की धज्जिंया उड़ाते हुए की गई। ये बोर्ड पूरे भारत में 113 कृषि इकाईयों में भर्ती करता है। अखबार ने दावा किया कि वरिष्ठ वैज्ञानिक रिसर्च मैनेजमेंट पोस्ट या उससे ऊपर के ग्रेड वाले की भर्ती लेटरल एंट्री या सिर्फ इंटरव्यू से की जाती है। अब इस ICAR में हुई भर्तियों का पूरा ब्योरा देख लिजिए। 2020 के एक ऑफिस मेमोरेंडम के मुताबिक, इस संस्थान में 6304 कर्मचारी है, 4420 वैज्ञानिक है, जिनकी भर्ती आरक्षण नीतियों के तहत होती है लेकिन वरिष्ठ वैज्ञानिक, प्रमुख वैज्ञानिक, निदेशक, एचओडी, क्षेत्रीय केंद्र प्रमुख , परियोजना समन्वयक , महानिदेशक, अतिरिक्त और उप महानिदेशक जैसे बाकि 1,884 पदों को सीधे इंटरव्यू या लेटरल एंट्री से भरा गया है।
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ICAR भारत की सबसे बड़ी कृषि अनुंसंधान संस्था है, और इस लेटरल एंट्री से इस संस्था में भी विवाद हो गया था, एक प्रस्ताव में कहा गया थी कि सीधी भर्ती से 'दोनों तरह से भर्ती हुए वैज्ञानिकों के बीच टकराव' होता है। जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होती है, जो वैज्ञानिक आईसीएसआर में 25 साल से ज्यादा समय से सेवा दे रहे हैं और कृषि वैज्ञानिक भर्ती परीक्षा से चुने गए हैं, उन्हें सेमी रिसर्च मैनेजमेंट पोस्ट और आरएमपी पद नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि इन पदों पर लेटरल एंट्री से भर्तियां की जा रही हैं। तो एक कहावत आपने सुनी होगी की सौ चुहें खाकर बिल्ली हज को चली। तो जिन राहुल की पार्टी ने कभी लेटरल एंट्री में आरक्षण का ध्यान नहीं रखा, जो इन भर्तियों में आरक्षण विरोधी रहे, वो आज मोदी पर सवाल उठा रहे है।
अब गांधी परिवार के चस्मोचिराग राहुल गांधी से कुछ सवाल, क्या राहुल मानेंगे कि उन्होने आरक्षण पर डांका डाला है। यूपीए के वक्त में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन कर उसके सदस्यों की लेटरल एंट्री से भर्ती की गई थी। क्या मानेगें वो गलत था, इतना ही नहीं, इसकी चेयरपर्सन होने की आड़ में सोनिया गांधी 'सुपर पीएम' बन गई थीं। तब दलितों-वंचितों, पिछड़ों के अधिकारों की चिंता क्यों नहीं हुई। क्या राहुल इन सवालों का जवाब दे पाएंगे, या फिर इनके साथ जो इनके चरणचंपक चिल्ला रहे है वो सोनिया गांधी पर सवाल उठा पाएगें।
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