श्रीनगर के हनुमान मंदिर में दिवाली पर काली पूजा का आयोजन, सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर दिया एकता और सौहार्द का संदेश
श्रीनगर के हनुमान मंदिर में दिवाली के अवसर पर काली पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें सभी धर्मों के लोगों ने भाग लिया. इस आयोजन ने कश्मीर में धार्मिक एकता और भाईचारे की मिसाल पेश की. कार्यक्रम में शामिल लोगों ने कहा कि त्योहार का असली संदेश प्रेम, सौहार्द और एकजुटता है.
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जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में इस दीवाली पर काली पूजा का अनोखा आयोजन हुआ, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य समुदायों के लोग एक साथ शामिल हुए. यह पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बनी, बल्कि कश्मीर घाटी में सद्भाव और एकता का मजबूत संदेश भी दिया. मंदिर परिसर में सजावट, दीप प्रज्वलन और सामूहिक आरती के बीच सभी ने मिलकर काली माता की आराधना की, जो दीवाली की रात्रि में ही काली पूजा के रूप में मनाई जाती है. यह आयोजन घाटी में शांति और सौहार्द की मिसाल बन गया.
हनुमान मंदिर में काली पूजा का विशेष महत्व
श्रीनगर का हनुमान मंदिर, जो शहर के दिल में स्थित है, लंबे समय से विभिन्न धर्मों के लोगों का आस्था केंद्र रहा है. दीवाली की अमावस्या रात्रि में काली पूजा का आयोजन यहां हनुमान जी की शक्ति और काली माता की रक्षा का प्रतीक बन गया. पूजा में काली माता की प्रतिमा स्थापित कर मंत्रोच्चार, होम और आरती की गई. स्थानीय पुजारी ने बताया, "हनुमान जी की भक्ति से प्रेरित होकर काली पूजा करना बुरी शक्तियों से रक्षा का माध्यम है. यह परंपरा गुजरात और पूर्वी भारत में प्रचलित है, लेकिन श्रीनगर में यह सभी के लिए खुला है. " मंदिर समिति के अनुसार, सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया, जिसमें मुस्लिम पड़ोसी भी दीये जलाने और प्रसाद ग्रहण करने पहुंचे.
सभी धर्मों की एकजुटता
आयोजन की सबसे खास बात रही विभिन्न धर्मों के लोगों का सक्रिय सहयोग. स्थानीय मुस्लिम समुदाय के युवाओं ने मंदिर को सजाने में मदद की, जबकि सिख भाईचारे ने लंगर का आयोजन कर सबको भोजन कराया. एक मुस्लिम महिला ने कहा, "यह पूजा प्रकाश का उत्सव है, जो हमें एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होने की प्रेरणा देती है. कश्मीर में हम सदियों से साथ रहते आए हैं. " सिख गुरुद्वारे से आए प्रतिनिधियों ने बताया कि यह आयोजन 'सर्व धर्म समभाव' की भावना को मजबूत करता है. कार्यक्रम में कश्मीरी पंडितों के अलावा कश्मीरी मुसलमानों की उल्लेखनीय उपस्थिति ने एकता का संदेश दिया. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे आयोजन घाटी में सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करते हैं.
दीवाली और काली पूजा की परंपरा
बुरी शक्तियों पर विजयदीवाली की रात्रि काली पूजा के लिए विशेष मानी जाती है, जहां काली माता को लक्ष्मी रूप में भी पूजा जाता है. श्रीनगर हनुमान मंदिर में यह परंपरा हनुमान जी की काली चैतर्दशी पूजा से जुड़ी हुई है, जो नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करती है. आयोजन में पारंपरिक मंत्र जाप, फूलमाला चढ़ाना और सामूहिक भजन हुए. NCRB और सांस्कृतिक विभाग के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में ऐसे इंटरफेथ कार्यक्रमों से सामुदायिक सद्भाव बढ़ता है. मंदिर ने पर्यावरण-अनुकूल दीये जलाए, जो आधुनिकता का भी प्रतीक बने.
सरकारी समर्थन और भविष्य की योजनाएं
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इस आयोजन को बढ़ावा दिया, जहां पर्यटन विभाग ने इसे 'एकता उत्सव' के रूप में प्रचारित किया. उपराज्यपाल ने संदेश जारी कर कहा, "ऐसे कार्यक्रम कश्मीर की गोद में शांति का दीप जलाते हैं. " मंदिर समिति ने घोषणा की कि आने वाले वर्षों में वार्षिक इंटरफेथ दीवाली महोत्सव आयोजित किया जाएगा, जिसमें स्कूलों के बच्चों को शामिल किया जाएगा.
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एनजीओ 'पीस फाउंडेशन' ने भी सहयोग किया, जो मानवाधिकार और सद्भाव पर काम करता है. यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्सव था, बल्कि कश्मीर की बहुलतावादी संस्कृति का उत्सव. जब सभी धर्म एक मंच पर आते हैं, तो प्रकाश की ज्योति और मजबूत हो जाती है.
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