'पूरी दुनिया में सनातन का प्रसार जरूरी...', RSS चीफ मोहन भागवत ने युद्ध से जूझ रही दुनिया को दिया शांति का मंत्र, बताई हिंदुत्व की ताकत
पूरी दुनिया इस समय संघर्ष और युद्ध से जूझ रही है. इसी बीच नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि वैश्विक अशांति की वजह यह है कि दुनिया विविधताओं के साथ जीना नहीं जानती. उन्होंने स्पष्ट कहा कि शांति और स्थिरता के लिए आज पूरे विश्व को भारत के धर्म और आध्यात्मिक मूल्यों की जरूरत है.
Follow Us:
आज पूरी दुनिया अस्थिरता और संघर्षों के दौर से गुजर रही है. कहीं सीमाओं पर युद्ध छिड़ा है तो कहीं आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने देशों के रिश्तों में खटास ला दी है. अमेरिका, चीन, रूस और यूरोप जैसे बड़े देशों की आपसी तनातनी ने विश्व राजनीति को असुरक्षा और अविश्वास के घेरे में खड़ा कर दिया है. इस बीच नागपुर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान वैश्विक बहस का हिस्सा बन गया है. उन्होंने साफ कहा है कि यदि दुनिया को शांति और स्थिरता चाहिए तो उसे भारत के धर्म और आध्यात्मिक संस्कृति की ओर देखना होगा.
नागपुर से उठा आध्यात्मिक संदेश
मोहन भागवत नागपुर में धर्म जागरण न्यास के कार्यालय लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल हुए. यहां उन्होंने दुनिया में बढ़ रहे युद्ध और हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा कि "हमारे धर्म की सारे विश्व को जरूरत है." उन्होंने समझाया कि इंसान विविधताओं के साथ सहज होकर जीना नहीं सीख पाया है और यही संघर्ष का कारण है. भागवत का यह कथन इसलिए अहम है क्योंकि इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा. पश्चिम एशिया में संघर्ष जारी है. अमेरिका और चीन आर्थिक युद्ध की स्थिति में हैं. एशिया और अफ्रीका के कई देशों में गृहयुद्ध और विद्रोह जैसी स्थितियां बनी हुई हैं. ऐसे में भारत का यह आध्यात्मिक संदेश एक विकल्प के रूप में सामने आता है.
दुनिया हमें इकोनॉमी से नहीं अध्यात्म से पहचानती है
मोहन भागवत ने अपने भाषण में कहा कि भारत की असली पहचान उसकी अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि उसका अध्यात्म है. उन्होंने कहा कि "दुनिया हमें इकोनॉमी नहीं, अध्यात्म के कारण विश्वगुरु मानती है." भारत हमेशा दूसरों की मदद करता है. हम खुशियां साझा करते हैं और दुख में साथ खड़े होते हैं. यही हमारी संस्कृति है जो हमें विशेष बनाती है. यह बयान उस धारणा को भी मजबूत करता है कि भारत केवल विकास और तकनीकी शक्ति से नहीं बल्कि आध्यात्मिक मूल्यों के जरिए विश्वगुरु बन सकता है.
भारत की अर्थव्यवस्था और आध्यात्मिक ताकत
संघ प्रमुख ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि भारत जल्द ही 3 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा. हालांकि उन्होंने साफ किया कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि चीन और अमेरिका जैसे देश यह मुकाम पहले ही हासिल कर चुके हैं. लेकिन भारत के पास जो ताकत है वह किसी के पास नहीं है और वह है आध्यात्मिक ज्ञान. उन्होंने कहा कि इस दुनिया में कई देश अमीर हैं. उनके पास आधुनिक हथियार और तकनीक है. लेकिन भारत जैसा गहरा आध्यात्मिक दर्शन और जीवन को सही दिशा देने वाला ज्ञान किसी देश के पास नहीं है. यही वजह है कि भारत संकट के समय भी दुनिया का मार्गदर्शन कर सकता है.
क्यों अहम है यह विचार?
आज का दौर में दुनियाभर में केवल शक्ति और प्रतिस्पर्धा पर आधारित हो गया है. देश हथियारों पर अरबों डॉलर खर्च कर रहे हैं. लेकिन युद्ध और तनाव को रोकने में ये हथियार किसी काम नहीं आ रहे. शांति और स्थिरता तब आएगी जब इंसान अपने भीतर की सोच बदलेगा। यही सोच भारत का धर्म और संस्कृति देते हैं. भारत का धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है. यह विविधताओं में एकता का संदेश देता है. यह बताता है कि अलग-अलग धर्म, जाति और संस्कृतियों के लोग भी शांति और सम्मान के साथ एक साथ रह सकते हैं. यही वह मूल्य हैं जो दुनिया के लिए सबसे जरूरी हैं.
भारत और विश्वगुरु की भूमिका
मोहन भागवत का कहना है कि भारत की असली उपलब्धि तब होगी जब वह अपनी आध्यात्मिक ताकत से दुनिया को दिशा देगा. उन्होंने कहा कि जब भारत का आध्यात्मिक ज्ञान दुनिया में फैलेगा तभी युद्ध और संघर्ष कम होंगे. यह वही सोच है जिसे भारत सदियों से "वसुधैव कुटुंबकम्" के माध्यम से दुनिया को सिखाता आया है. भारत की विदेश नीति भी इसी विचार पर आधारित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर तक कई बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत संघर्ष का नहीं, बल्कि संवाद और सहयोग का समर्थक है. यही वजह है कि भारत को वैश्विक स्तर पर शांति की आवाज माना जाता है.
यह भी पढ़ें
नागपुर से उठी मोहन भागवत की यह आवाज केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है. उन्होंने साफ कहा कि विविधताओं को अपनाना और इंसानियत को प्राथमिकता देना ही शांति की कुंजी है. आज जब युद्ध और संघर्ष से दुनिया कांप रही है, तब भारत का धर्म और आध्यात्मिक संस्कृति उम्मीद की किरण की तरह सामने आते हैं. शायद यही कारण है कि मोहन भागवत का यह कथन बिल्कुल सही प्रतीत होता है कि "दुनिया को आज हमारे धर्म की सबसे ज्यादा जरूरत है."
टिप्पणियाँ 0
कृपया Google से लॉग इन करें टिप्पणी पोस्ट करने के लिए
Google से लॉग इन करें