इस्लामिक देश के राजाई की जनता से अपील, ‘ईद पर पशुओं की कुर्बानी से बचें’
उत्तर अफ्रिकी देश मोरक्को के राजा ने लोगों से इस साल बक़रीद यानी इद -उल-अजहा के मौक़े पर धार्मिक त्यौहार के दौरान भेड़ों की क़ुर्बानी नहीं देने का आह्वान किया है। क्या है पूरी ख़बर देखिए इस ख़ास रिपोर्ट में
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उत्तर अफ्रिकी देश मोरक्को के राजा ने लोगों से इस साल बक़रीद यानी ईद-उल-अजहा के मौक़े पर धार्मिक त्यौहार के दौरान भेड़ों की क़ुर्बानी नहीं देने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि देश लगातार सातवें साल सूखे की मार झेल रहा है। इस वजह से देश में पशुधन की आबादी कम हो गई है और मांस की क़ीमतें बढ़ गई हैं। ईद-उल-अजहा के दौरान हर साल दुनिया भर में बसे मुसलमान लाखों भेड़, बकरियां और अन्य पशुओं की बलि देते हैं। इस साल 6 या 7 जून को बक़रीद मनाई जाएगी।
क्यों की गई ऐसी अपील?
मोरक्को के आधिकारिक आँकड़ों से पता चलता है कि एक दशक में भेड़ों की संख्या में 38% की गिरावट आई है, क्योंकि देश सूखे की चपेट में है, जिसकी वजह से चारागाह सूख गए हैं। इससे भेड़ों को ज़रूरी भर का खाना नहीं मिल पा रहा है। इससे मांस के दाम बहुत बढ़ गए हैं। और इन ही परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने एक लाख भेड़ों को ऑस्ट्रेलिया से इम्पोर्ट भी किया है।
पहले भी की जा चुकी है अपील
बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब देश में भेड़ों की संख्या में कमी आई हो। इससे पहले भी 1966 में राजा मोहम्मद के पिता की तरफ़ से ऐसी अपील की गई थी। हसन 2 ने अपने देश में भयंकर सूखा देखने के बाद अपने देश के लोगों से इसी तरह की अपील की थी।
मोरक्को में बारिश की कमी से पड़ रहा सूखा
पिछले तीन दशकों के औसत की तुलना में इस साल बारिश में 53% की कमी आ गई है, जिससे देश सूखे जैसी स्थिति से गुजर रहा है। बारिश की कमी के कारण चारागाह कम हो गए और मांस के उत्पादन में कमी आ गई। इस वजह से मांस की क़ीमतों में भारी बढ़ोतरी हो गई है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए मोरक्को ने अपने 2025 के बजट में मवेशियों, भेड़ों, ऊँटों और रेड मीट पर इम्पोर्ट टैक्स और वैल्यू एडेड टैक्स को निलंबित कर दिया है।
बक़रीद में अभी कुछ वक्त बाकी है, लेकिन परेशानियों को देखते हुए राजा मोहम्मद 6 ने अभी से ही लोगों से अपील की है, ताकि लोग परिस्थितियों को समझें और अपनी धार्मिक प्रथा को थोड़ा बदलने की कोशिश करें। लेकिन इस अपील का विरोध भी देखा जा रहा है। कोई कह रहा है कि "ईद पर मांस नहीं तो घास खाएंगे क्या?" तो कोई कह रहा है कि "ये यहूदियों के हाथों बिक चुके हैं।" खैर, मामले पर सोशल मीडिया दो धड़ों में बंटा हुआ है। कोई कह रहा है कि हालात के हिसाब से रवायतों को लेकर कदम उठने चाहिए, जिन परंपराओं में बदलाव की ज़रूरत है वो बदलने चाहिए, लेकिन दूसरी तरफ़ कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि आसमान टूटे या धरती फट जाए, परंपराओं में जो कहा गया है सिर्फ़ वही करना चाहिए।
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