मिजोरम-मणिपुर में बसा है एक छोटा ‘इजरायल’? मिल गया यहूदियों का खोया कबीला, अब इन्हें अपने देश ले जाएंगे नेतन्याहू
Manipur-Mizoram: कुछ शोध के मुताबिक यहूदियों के कुल 12 कबीले थे, जिनमें से 10 के गुम हो जाने का दावा किया जाता है. वहीं, खोए हुए 10 कबीलों में एक कबीला ‘बनी मेनाशे’ का मणिपुर और मिजोरम में होने का दावा किया गया है.
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यहूदी मूल के कुछ कबीले भारत में सदियों से रहते आए हैं. इन्हें ‘भारतीय यहूदी’ भी कहा जाता है. कोचीन यहूदी, बनी इसराइल, बगदादी, बेनी मेनाशे ऐसे कई यहूदियों के कबीले हैं, जो भारत में कोलकाता, मुंबई और पूर्वोतर के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. इन्हीं में से एक कबीला ‘बनी मनाशे’ है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहता आया है. जानकारी के मुताबिक़ अब इन्हें इज़रायल में बसाया जाएगा. भारत सरकार के साथ बात-चीत के बाद इज़रायल की बेंजमिन नेतन्याहू सरकार के एक फैसले के तहत 2030 तक मिजोरम-मणिपुर में रह रहे इस कबीले के लगभग 5800 लोगों को इज़रायल में बसाया जाएगा. इन सभी के बसने के लिए उत्तरी इज़रायल के गैलिली इलाके को चिन्हित किया गया है.
कौन हैं ‘बनी मेनाशे’ जनजाती? यहूदियों से क्या है रिश्ता?
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार यहूदियों के कुल 12 कबीले थे, जिनमें से 10 कबीलों के गुम हो जाने का दावा किया जाता है. ये 12 कबीले याकूब (Jacob) के 12 सन्नतानों से उत्तपन्न हुए. इन्हीं खोए हुए कबीले में एक कबीले का नाम ‘बनी मेनाशे’ है. इस समुदाय के लोग ख़ुद को खोए हुए कबीले का वंशज बताते हैं. यह भारत और म्यांमार की सीमा से सटे तिब्बती-बर्मी जातीय समूहों से भारतीय यहूदियों का एक समुदाय है. इन्हीं में से कुछ ने यहूदी धर्म को अपना लिया है. ऐसा माना जाता है कि बनी मेनासे समुदाय में लगभग 10,000 सदस्य हैं. इनमें से 5,000 भारत में तो इज़रायल में 5,000 ये समुदाय रहते हैं.
यहूदियों के कौन-कौन से हैं वो 12 कबीले?
यहूदियों के 12 कबीलों में रउबने, शिमोन, लेवी, यहूदा, दान, नप्ताली, गाद, आशोर, इस्साकार, जबूलून, यूसुफ (बाद में इनके दो पुत्रों के नाम पर दो कबीले बंटे- एप्रैम, मेनाशे), बिन्यामीन शामिल हैं. इन 12 कबीलों में 10 कहीं खो गए. जिनकी तलाश के लिए कई शोध और आंदोलन शुरू हुए. इन्हीं शोध में पता चला कि यहूदियों के कुछ कबीले भारत के अन्य कई हिस्सों में रहते हैं. इन्हीं में से एक मणिपुर-मिजोरम के नज़दीक रह रहे ‘बनी मेनाशे’ कबीले के लोग भी शामिल हैं.
1951 से शुरू हुआ था आंदोलन
Lost Israelites from the Indo-Burmese Borderlands: Re- Traditionalisation and Conversion Among the Shinlung or Bene Menasseh, नाम का यह शोध जुलाई 2004 में ResearchGate पर छपा. जानकारी के मुताबिक यहूदियों का ये आंदोलन 1951 में तब शुरू हुआ था, जब एक आदिवासी नेता सपना देखा कि उनके लोगों की मातृभूमि इजरायल है. मतलब उनके पूर्वज इजरायल के हैं. इसी सपने के आधार पर कुछ लोगों ने ये मान लिया कि वे लोग यहूदी थे.
1951 के बाद 2005 में मिली थी यहूदी होने की मान्यता
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आदिवासी नेता ने जब अपने पूर्वजों के यहूदी होने का सपना देखा, उसके बाद बहुत से लोगों ने यहूदी धर्म तो अपना लिया लेकिन उन्हें यहूदी होने की मान्यता कभी इज़रायल ने नहीं दी. वहीं, इजरायलियों के आध्यात्मिक नेता रब्बी एलियाहू अवीचेल ने इन लोगों को ‘मनश्शे’ से उनके वंश के विवरण के आधार पर ‘बनी मेनाशे’ नाम दिया. उसके बाद रब्बी श्र्लोमो अमर ने ‘बनी मेनाशे’ को एक खोई हुई जनजाति के रूप में मान्यता दे दी.
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