Nepal में विरोध प्रदर्शनों के पीछे की Inside Story, सिर तक करप्शन में डूबे प्रधानमंत्री KP Sharma Oli, स्थानीय पत्रकार ने बताई अंदर की बात
नेपाल की सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन सिर्फ आम जनता की नाराजगी नहीं हैं, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक हलचल छिपी है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर बड़े पैमाने पर करप्शन के आरोप लगे हैं, सरकारी ठेकों से लेकर विदेशों में संपत्तियां खड़ी करने तक के. नेपाल की नई पीढ़ी, खासकर Gen-Z, अब सवाल पूछ रही है कि देश का पैसा आखिर कहां जा रहा है. पूरी कहानी एक स्थानीय पत्रकार की जुबानी!
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नेपाल की सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन सिर्फ आम जनता की नाराजगी नहीं हैं, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक हलचल छिपी है. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर बड़े पैमाने पर करप्शन के आरोप लगे हैं, सरकारी ठेकों से लेकर विदेशों में संपत्तियां खड़ी करने तक के. नेपाल की नई पीढ़ी, खासकर Gen-Z, अब सवाल पूछ रही है कि देश का पैसा आखिर कहां जा रहा है.
लेकिन असल इनसाइड स्टोरी इससे भी ज्यादा गंभीर है. नेपाल के भीतर और बाहर सक्रिय ताकतों का आरोप है कि ओली ने अपने भ्रष्टाचार के मामलों से ध्यान हटाने के लिए भारत विरोध की लकीर को लंबा किया. बताया जा रहा है कि उन्होंने न सिर्फ सोशल मीडिया पर बैन लगाने का कदम उठाया बल्कि दिल्ली के खिलाफ माहौल बनाने के लिए कई तरह के प्रचार को भी हवा दी. सूत्र कहते हैं कि यह सब एक बड़े षडयंत्र का हिस्सा था, जिससे जनता का गुस्सा असली मुद्दों से हटाकर भारत विरोध की तरफ मोड़ा जा सके.
काठमांडू की सड़कों पर उतर रही भीड़ इसी दोहरे खेल का नतीजा है. एक तरफ लोग बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं, तो दूसरी तरफ पीएम ओली अपने बचाव में नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल की मौजूदा अस्थिरता सिर्फ घरेलू राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय शक्ति-संतुलन की गूंज भी सुनाई देती है.
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का लगा प्रदर्शन में तड़का!
Gen-Z प्रदर्शनकारी मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सरकारी अक्षमता के खिलाफ हैं. नेपाल में पिछले 17 वर्षों में 13 सरकारें बनीं, लेकिन आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और जीवन स्तर में सुधार नहीं हुआ. लाखों युवा मध्य पूर्व, दक्षिण कोरिया और मलेशिया में नौकरी के लिए पलायन कर रहे हैं. सोशल मीडिया बैन ने इस आक्रोश को भड़का दिया, क्योंकि युवा इसे अपनी आवाज दबाने का प्रयास मानते हैं.
यह आंदोलन प्रो-मोनार्की प्रदर्शनों से अलग है, जो मार्च-मई 2025 में हुए थे. उनमें पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के समर्थकों ने हिन्दू राजतंत्र की बहाली मांगी थी, जिसमें हिंसा हुई और दो मौतें हुईं. लेकिन Gen-Z का फोकस डिजिटल अधिकारों और पारदर्शिता पर है.
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार ने प्रदर्शन को दबाने के लिए सेना तैनात की है. उन्होंने देखते ही गोली मारने के भी आदेश दिए हैं. कुछ प्लेटफॉर्म्स जैसे व्हाट्सएप को बहाल किया गया, लेकिन बाकी ब्लॉक बने हुए हैं. विपक्षी दलों ने सरकार की निंदा की है, लेकिन एकजुट प्रतिक्रिया नहीं दिख रही. कहा तो ये भी जा रहा है कि सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन इसलिए लगाया ताकि राजतंत्र समर्थकों की मांग और आवाज को कंट्रोल किया जा सके.
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