'भारत को सोने की चिड़ियां नहीं, शेर बनना है...', RSS प्रमुख मोहन भागवत की हुंकार, कहा- दुनिया शक्ति की ही बात समझती
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों केरल प्रवास पर हैं और रविवार को उन्होंने ज्ञान सभा नामक शिक्षा सम्मेलन में भाग लिया. इस दौरान अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत को अब अतीत की सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि ताकतवर शेर बनना होगा, क्योंकि दुनिया आदर्शों से ज़्यादा शक्ति का सम्मान करती है.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत इन दिनों केरल के प्रवास पर हैं. रविवार को वे "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" द्वारा आयोजित एक विशेष कार्यक्रम ‘शिक्षा सम्मेलन ज्ञान सभा’ में शामिल हुए. यह कार्यक्रम शिक्षा और संस्कृति को लेकर विचार-विमर्श के उद्देश्य से आयोजित किया गया था, जिसमें कई शिक्षाविद, विद्वान और समाजसेवी मौजूद रहे. मोहन भागवत इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में मंच से कई महत्वपूर्ण बातें रखीं.
अब सोने का शेर बनना होगा: मोहन भागवत
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से बात रखी. उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का उल्लेख करते हुए कहा कि एक समय था जब देश को "सोने की चिड़िया" कहा जाता था. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया केवल आदर्शों का नहीं, बल्कि ताकत का भी सम्मान करती है. ऐसे में भारत को अब सिर्फ अपने अतीत पर गर्व करने की बजाय शक्ति और आत्मबल का प्रदर्शन करना होगा. उन्होंने कहा, "अब भारत को अतीत की सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि शेर बनना होगा, जो दुनिया में अपनी उपस्थिति और शक्ति के दम पर सम्मान पाए." उनके इस विचार को सभा में उपस्थित लोगों ने विशेष ध्यान और गंभीरता से सुना.
शिक्षा ऐसी हो जो आत्मनिर्भर बनाए
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबें पढ़ना या स्कूल जाना भर नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि असली शिक्षा वह है जो किसी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपने दम पर जीवन जीने में सक्षम बनाए. भागवत रविवार को केरल में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन ‘ज्ञान सभा’ को संबोधित कर रहे थे. यह कार्यक्रम शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित किया गया था. अपने भाषण में उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय शिक्षा परंपरा व्यक्ति को त्याग और परोपकार सिखाती है. अगर कोई व्यवस्था व्यक्ति को केवल स्वार्थी बनना सिखा रही है, तो वह शिक्षा नहीं कहलाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ औपचारिक शिक्षा ही काफी नहीं है. घर और समाज का वातावरण भी शिक्षा का अहम हिस्सा है. इसलिए यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह अगली पीढ़ी के लिए ऐसा माहौल तैयार करे जो उन्हें जिम्मेदार और आत्मनिर्भर नागरिक बना सके.
भारत को भारत ही रहने दें: मोहन भागवत
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में जोर देकर कहा कि भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, और इसका अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संविधान में लिखा 'India that is Bharat' तो चल सकता है, लेकिन संवाद और लेखन में ‘भारत’ को ही 'भारत' कहा जाना चाहिए. उनका मानना है कि जब कोई राष्ट्र अपनी पहचान के नाम को ही बदल देता है या उसका अनुवाद करता है, तो धीरे-धीरे उसकी सांस्कृतिक आत्मा भी क्षीण होने लगती है. भागवत ने यह भी कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो सम्मान प्राप्त हुआ है, वह उसकी 'भारतीयता' के कारण है, न कि उसके किसी आधुनिक या पश्चिमी स्वरूप के कारण.
भारत का इतिहास काफी ज्ञानवान
भागवत के वक्तव्य की सबसे प्रभावशाली बात यह रही कि उन्होंने भारत के ऐतिहासिक व्यवहार को 'अहिंसक, शांति प्रिय और आध्यात्मिक' बताया. उन्होंने कहा कि भारत कभी भी शोषक या विस्तारवादी नहीं रहा. चाहे वह प्राचीन काल की सभ्यताओं के संपर्क की बात हो या आधुनिक वैश्विक सम्बन्धों की, भारत ने हमेशा 'विश्व बंधुत्व' की भावना से काम किया. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के ऋषि-मुनियों ने मेक्सिको से लेकर साइबेरिया तक की यात्राएं कीं, लेकिन कभी किसी की भूमि पर कब्जा नहीं किया.
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