हिंदुओं पर जबरन थोपा जा रहा 'हलाल'... आर्थिक जिहाद की बड़ी साजिश, खुद CM योगी ने चेताया
हलाल व्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था और हिंदू समाज की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर और सीधी चुनौती बनता जा रहा है. हलाल उत्पादों की बिक्री भारत में मुस्लिम धार्मिक विश्वासों को सनातनी हिंदुओं पर थोपने का एक और जरिया बन चुकी है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने हलाल उत्पादों के खतरों के बारे में जनता को आगाह किया है.
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हलाल व्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था और हिंदू समाज की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर और सीधी चुनौती बनता जा रहा है. 'हलाल' शुद्ध रूप से एक इस्लामिक मान्यता है, जिसकी उत्पत्ति सऊदी अरब में हुई. कहीं से कहीं तक यह भारत की आर्थिक या धार्मिक परंपराओं का हिस्सा नहीं रहा है. यह किसी भी स्थिति में हिंदू समाज पर थोपा नहीं जा सकता. इसके बावजूद भी भारत में हलाल-सर्टिफाइड उत्पादों का प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है. देश में हलाल अर्थव्यवस्था बिना रोक-टोक के चलाई जा रही है. तमाम विशेषज्ञ इसे आर्थिक जिहाद (Economic Jehad) का ही दूसरा नाम बताते हैं.
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाज को इस उभरते खतरे (हलाल अर्थव्यवस्था) से सावधान किया है. भारत में हलाल व्यापार और हलाल उत्पादों की बिक्री की प्रथा, वास्तव में सनातनी हिंदुओं पर इस्लामी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को थोपने की एक बड़ी साजिश है.
क्या है हलाल?
दरअसल, 'हलाल' एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है 'स्वीकार्य या अनुमान के योग्य' या 'जिसकी अनुमति है', यानी वे उत्पाद जो मुसलमान उपभोग कर सकते हैं. इसके विपरीत 'हराम' वे चीज़ें हैं, जो मुसलमानों के लिए निषिद्ध हैं. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि यह अवधारणा केवल मुसलमानों पर लागू होती है, हिंदुओं पर नहीं. फिर भी, भारत में हलाल अर्थव्यवस्था हिंदुओं पर थोपी जा रही है, जो वास्तव में भारत में 'आर्थिक जिहाद' का एक रूप है.
आखिर भारत में हलाल का क्या काम?
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि हलाल पूरी तरह इस्लामिक अवधारणा है, इसलिए भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था से इसका कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. भारत की पारंपरिक आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों में इसकी कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
हलाल उत्पादों की बिक्री भारत में मुस्लिम धार्मिक विश्वासों को सनातनी हिंदुओं पर थोपने का एक और जरिया बन चुकी है. अब बड़ा सवाल यह है कि भारत की हिंदू बाहुल्य आबादी को आखिर क्यों मजबूर किया जाए कि वे इस्लामिक हलाल उत्पाद ही खरीदें?
टेरर फंडिंग में हो रहा हलाल के पैसों का इस्तेमाल
मुस्लिम समुदाय अब सीधे-सीधे अपने धार्मिक विश्वास हिंदुओं पर थोप रहा है. आतंकी फंडिंग, अवैध धर्मांतरण, लव जिहाद, मदरसों में देशविरोधी गतिविधियां और कट्टरपंथी शिक्षा, इन सबके पीछे हलाल से कमाए धन का उपयोग किया जा रहा है. दंगों और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल मुसलमानों के कानूनी खर्च का बड़ा हिस्सा भी इसी हलाल अर्थव्यवस्था से उठाया जाता है.
एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में ग्राहक को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपना पैसा कहां और कैसे खर्च करे. मुस्लिम विक्रेताओं को अपने इस्लामिक विश्वासों को हिंदू उपभोक्ताओं पर जबरन थोपने की अनुमति कतई नहीं दी जानी चाहिए. हलाल उत्पादों की बिक्री इस्लाम के प्रसार का एक छिपा हुआ तरीका बन गई है.
'हलाल जिहाद' पर आंखें मूंदे रहीं पिछली सरकारें
हिंदू समाज हलाल खाद्य पदार्थों और हलाल अर्थव्यवस्था को अब सहन नहीं करेगा. पहले की साम्प्रदायिक सरकारें अपने मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए इस अवैध हलाल अर्थव्यवस्था को अनुमति देती रहीं. लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब उन पूर्ववर्ती मुस्लिम-तुष्टिकरण वाली सरकारों की अवैधताओं को ठीक कर रहे हैं.
'थूक जिहाद' जैसी घिनौनी साजिश
यह गोरखधंधा सिर्फ बाजार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हिंदुओं की आस्था के केंद्र मंदिरों के बाहर भी हैरान और परेशान करने वाली हरकते हैं भी आए दिन सामने आती रहती है. हाल के वर्षों में कई घटनाएं सामने आई हैं जहां कारोबार की आड़ में मुस्लिम दुकानदारों को मंदिर के प्रसाद में थूकने या फिर पेशाब करने जैसे घिनौने आरोपों में पकड़ा गया है.
मुस्लिम विक्रेता जानते हैं कि सनातन धर्म में पवित्रता और शुद्धता का बहुत महत्व है. कई मुस्लिम मौलवियों ने यह भी स्वीकार किया है कि भोजन में थूकने की प्रथा इस्लाम में 'जायज' मानी जाती है और यह हिंदुओं को बेचे जाने वाले उत्पादों में चोरी-छुपे की जाती है. यह घृणित प्रथा हिंदू धर्म का अपमान करने और उसकी पवित्रता को भंग करने के लिए की जाती है.
हिंदू आर्थिक क्षेत्र पर आक्रमण है 'हलाल'
हलाल न केवल राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि यह हिंदू समाज की आर्थिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है. हलाल, जो कभी केवल मुसलमानों के मांसाहार तक सीमित था, अब खाने-पीने की चीजों, उपभोक्ता की वस्तुओं और अन्य क्षेत्रों तक फैल चुकी है, जिन्हें हिंदू समुदाय उपयोग करता है. इससे हिंदू पहचान और भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा-सीधा खतरा पैदा हो गया है.
हलाल को लेकर कोई कानून नहीं
गौर करने वाली बात यह है कि भारत में सो कॉल्ड हलाल ट्रेडिंग के लिए किसी तरह के गवर्नमेंट सर्टिफिकेश की व्यवस्था नहीं है. यह पूरी प्रक्रिया निजी इस्लामिक सर्टिफिकेशन एजेंसियों द्वारा नियंत्रित की जाती है. हलाल सर्टिफिकेट देने का काम निजी मुस्लिम संस्थाएं जैसे Halal India आदि, भारी भरकम फीस लेकर करती हैं. इस पूरी प्रणाली पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, न ही इसका कोई कानूनी नियमन है.
यूपी सरकार ने हलाल प्रोडक्ट्स पर लगाया बैन
साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में हलाल प्रमाणित खाद्य उत्पादों के उत्पादन और बिक्री पर बैन की घोषणा की थी. योगी सरकार ने यह कदम राज्य की बहुसंख्यक आबादी की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए और हलाल प्रथाओं में पाई गई कई अनियमितताओं को देखते हुए उठाया था.
सीएम योगी आदित्यनाथ ने हलाल उत्पादों के खतरों के बारे में जनता को आगाह कर अपने संवैधानिक कर्तव्य का ही पालन किया है, ताकि समाज की धार्मिक मान्यताओं और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा हो सके.
भारतीय अर्थव्यवस्था में हलाल की गहरी पैठ
आज हलाल का प्रभाव भारतीय उपभोक्ता संस्कृति में बहुत गहराई तक फैल चुका है. जैसे कि भारत की बड़ी हिंदू आबादी, जाने-अनजाने में लगभग हर दिन हलाल उत्पाद खरीदने को मजबूर हो रही है. भारत में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स में कई नाम ब्रंड अमूल, नंदिनी, हल्दीराम, बिकाजी, ब्रिटानिया, मदर डेयरी, देसाई फूड, गोदरेज रियल गुड मीट जैसी कंपनियां भी शामिल हैं.
मांस, पोल्ट्री और खजूर के अलावा, हलाल सर्टिफिकेशन अब कॉस्मेटिक और फ़ार्मास्यूटिकल उद्योगों तक भी अपनी पैठ बना चुका है.
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