दिग्विजय सिंह के बदले सुर... मालेगांव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा के बरी होने पर बोले- ना हिंदू आतंकवादी हो सकता है, ना मुसलमान
एनआईए की विशेष अदालत ने सितंबर 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में 17 साल बाद आज बीजेपी की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट के इस फैसले पर दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि ना हिंदू आतंकवादी हो सकता है ना मुसलमान, हर धर्म प्रेम, सदभाव, सत्य और अहिंसा का रूप है.

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अदालत ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी, जैसा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था. उसने कहा कि यह भी साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट कथित तौर पर मोटरसाइकिल पर लगाए गए बम से हुआ था. इससे पहले सुबह, जमानत पर रिहा सातों आरोपी दक्षिण मुंबई स्थित सत्र अदालत पहुंचे जहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गयी है.
हिंदू हो या मुस्लिम कोई भी आतंकवादी नहीं हो सकता
दिग्विजय सिंह ने कहा कि चाहे हिंदू हो या मुस्लिम या फिर सिख हो या ईसाई, कोई भी आतंकवादी नहीं हो सकता. बस कुछ लोग होते हैं जो धर्म को नफरत का हथियार बनाकर इस्तेमाल करते हैं. आपको बता दें कि मालेगांव ब्लास्ट में छह लोग मारे गए थे और 101 अन्य घायल हुए थे. एनआईए. के मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं.
VIDEO | On Special NIA Court acquitting all seven accused in the 2008 Malegaon blast case, Congress MP Digvijaya Singh says, “Terrorism should not be associated with any religion. There is no such thing as Hindu terrorism or Islamic terrorism. Every religion represents love,… pic.twitter.com/p43AbmkOJT
— Press Trust of India (@PTI_News) July 31, 2025
2008 मालेगांव ब्लास्ट में 6 लोगों की हुई थी मौत
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मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोट उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे. न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मामले को संदेह से परे साबित करने के लिए कोई ‘‘विश्वसनीय और ठोस'' सबूत नहीं है. अदालत ने कहा कि इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधान लागू नहीं होते.