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'मुंबई आओ, समंदर में डुबो-डुबोकर मारेंगे...', राज ठाकरे की निशिकांत दुबे को खुली चुनौती

महाराष्ट्र में भाषा विवाद गहराता जा रहा है. एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे को चुनौती देते हुए कहा कि अगर वे मुंबई आए, तो उन्हें "समंदर में डुबो-डुबोकर मारा जाएगा". ठाकरे का आरोप है कि एक भाजपा सांसद ने मराठियों को पटकने की बात कही थी. उन्होंने मीरा रोड की हालिया घटना का बचाव करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मराठी का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और जवाब "महाराष्ट्र स्टाइल" में मिलेगा.

19 Jul, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
10:00 AM )
'मुंबई आओ, समंदर में डुबो-डुबोकर मारेंगे...', राज ठाकरे की निशिकांत दुबे को खुली चुनौती

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर भाषा का मुद्दा पूरे उफान पर है. एमएनएस (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) अध्यक्ष राज ठाकरे ने हाल ही में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के एक कथित बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने अपने तीखे और विवादित बयानों से राज्य की सियासत में नया मोड़ ला दिया है. ठाकरे ने सीधे-सीधे चुनौती देते हुए कहा कि अगर दुबे मुंबई आए, तो उन्हें "समुद्र में डुबो-डुबोकर मारा जाएगा". इस बयान ने केवल राजनीतिक तापमान नहीं बढ़ाया, बल्कि मराठी अस्मिता और हिंदी बनाम मराठी के बहस को भी केंद्र में ला दिया.

 राज ठाकरे की महाराष्ट्र स्टाइल चेतावनी

राज ठाकरे ने मुंबई के मीरा रोड में हाल ही में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां जो व्यक्ति पीटा गया, वह पूरी तरह से उचित था. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जो भी रहेगा, उसे मराठी भाषा और संस्कृति का सम्मान करना ही होगा. ठाकरे का यह बयान राज्य में बढ़ते गैर-मराठी प्रवासियों के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश माना जा रहा है. "अगर मस्ती करोगे, तो महाराष्ट्र स्टाइल में समझा देंगे", यह वाक्य उनकी चेतावनी नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति की झलक देता है.

हिंदी भाषा पर हमला या चेतावनी?

राज ठाकरे ने राज्य सरकार पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि अब जाकर सरकार को समझ आ रहा है कि मराठी भाषा का क्या महत्व है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की गई, तो महाराष्ट्र इसका कड़ा विरोध करेगा. ठाकरे ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महाराष्ट्र में सभी स्कूलों में मराठी अनिवार्य होनी चाहिए. उनका कहना था कि हिंदी को अगर थोपने की कोशिश की गई, तो यह महाराष्ट्र के आत्मसम्मान पर सीधा हमला माना जाएगा. राज ठाकरे का कहना है कि कुछ गुजराती नेताओं और व्यापारियों की योजना मुंबई और महाराष्ट्र को अलग करने की रही है. वह सरदार पटेल का हवाला देते हैं, जिन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग नहीं किया जाना चाहिए. ठाकरे का आरोप है कि हिंदी और गैर-मराठी तत्वों के जरिए राज्य की भाषाई एकता को तोड़ने की कोशिश हो रही है. वह दावा करते हैं कि हिंदी ने अब तक 250 से अधिक भाषाओं को निगल लिया है और यह एक "थोपी गई भाषा" है जो केवल 200 साल पुरानी है. इसके उलट मराठी का इतिहास ढाई से तीन हजार साल पुराना बताया गया.

सिर्फ भाषा नहीं, पहचान की लड़ाई

यह पूरा विवाद केवल भाषा का नहीं है. यह पहचान, संस्कृति और आत्मसम्मान की लड़ाई है. मराठी भाषियों को लगता है कि मुंबई जैसे महानगर में धीरे-धीरे उनकी भाषा और संस्कृति को हाशिए पर डाला जा रहा है. वहीं हिंदी भाषी प्रवासी इसे प्रांतीयता और क्षेत्रीय कट्टरता कह रहे हैं. वही राज ठाकरे ने यह भी कहा कि वह हिंदू हैं, लेकिन हिंदी उनके ऊपर थोपी नहीं जा सकती. उनका यह बयान बताता है कि यह केवल भाषायी नहीं, बल्कि एक गहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्श की ओर इशारा कर रहा है. ठाकरे ने यह भी जोड़ा कि महाराष्ट्र के गैर-मराठी लोगों को जल्द से जल्द मराठी बोलना सीखना चाहिए और दुकानों, ऑफिसों या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में मराठी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए.

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गौरतलब है कि भाषा की राजनीति कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह पहचान और अस्तित्व के साथ जुड़ जाती है, तो वह खतरनाक मोड़ ले सकती है. मुंबई जैसे महानगर, जो विविधता का उदाहरण हैं, वहां भाषायी भेदभाव और धमकियों की राजनीति सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकती है. मराठी का सम्मान होना चाहिए, लेकिन किसी भी भाषा या समुदाय को अपमानित करके सम्मान की बात नहीं की जा सकती. बता दें कि इस विवाद ने एक बार फिर साबित किया है कि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं, संस्कृति और पहचान से जुड़ा मुद्दा है. ऐसे में नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे शब्दों की मर्यादा रखें. मराठी हो या हिंदी हर भाषा को उसका सम्मान मिलना चाहिए. लेकिन यह सम्मान आपसी समझ, सहयोग और संवेदनशीलता से ही संभव है, न कि धमकियों और टकराव से.

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