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जबरन धर्मांतरण पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जताई चिंता, नहीं हटेंगे गांवों में पादरियों के 'प्रवेश' वाले होर्डिंग्स

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने धर्मांतरण से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट नेआदिवासी बहुल गांवों में जबरन धर्मांतरण रोकने के उद्देश्य से पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रतिबंध को लेकर लगाए गए होर्डिंग्स को हटाने से इनकार कर दिया.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जबरन, प्रलोभन, या छल के आधार पर हो रहे धर्मांतरण पर बड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई करते कम से कम आठ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों” के प्रवेश पर प्रतिबंध को लेकर लगाए गए होर्डिंग्स को हटाने की मांग खारिज कर दी है. कोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए लगाए गए इन होर्डिंग्स असंवैधानिक भी मानने से इनकार कर दिया.

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की पीठ ने 28 अक्टूबर को दिए गए आदेश में कहा कि, 'ऐसा प्रतीत होता है कि ये होर्डिंग्स संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा आदिवासी समुदाय और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए एक सतर्कता कदम के रूप में लगाए गए हैं.'

PIL में क्या था?

आपको बताएं कि ये याचिका कंकर जिले के निवासी डिगबल टांडी ने दायर की थी. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि उनके यानी कि ईसाई समुदाय और उनके धार्मिक नेताओं को मुख्यधारा या गांव समुदाय से अलग किया जा रहा है. याचिका में आरोप लगाया गया कि पंचायती राज विभाग ज़िला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत को “हमारी परंपरा हमारी विरासत” के नाम से प्रस्ताव/संकल्प पारित करने के लिए निर्देश दे रहा है. दअरसल इसका असली मकसद गांवों में पादरी और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना है. 

क्यों लगे छत्तीसगढ़ के आदिवासी गांवों में होर्डिंग्स?

मालूम हो कि कंकर जिले के कम से कम आठ गांवों में पादरी और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग्स लगाए गए हैं. दावा किया जा रहा है कि इससे ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय में डर और हिंसा की आशंका पैदा हो रही है. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि यह परिपत्र पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996 का दुरुपयोग कर ईसाई समुदाय के खिलाफ धार्मिक घृणा फैलाने के लिए पारित किया गया.

क्या है PESA नियम?

अतिरिक्त अधिवक्ता सामान्य वाई.एस. ठाकुर ने अदालत के समक्ष दलील दी कि PESA नियम ग्राम सभा को स्थानीय सांस्कृतिक विरासत, जैसे देवी-देवताओं के स्थल, पूजा प्रणाली, संस्थान (जैसे गोतुल, धुमकुडिया) और मानवीय सामाजिक प्रथाओं को किसी भी प्रकार के विनाशकारी व्यवहार से बचाने का अधिकार देता है.

ठाकुर ने आगे कहा कि संबंधित ग्राम सभा द्वारा लगाए गए होर्डिंग्स केवल उन पादरियों को रोकने के लिए हैं, जो अन्य गांवों से आकर आदिवासी समुदाय का गैरकानूनी रूप से धर्म परिवर्तन कराते हैं. 

उन्होंने होर्डिंग्स के मुख्य मकसद के बारे में कहा कि ये होर्डिंग्स यह बताती हैं कि आदिवासियों को लुभाकर धर्मांतरित करना उनकी संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है. 

इतना ही नहीं उन्होंने नारायणपुर जिले में 2023 में हुई हिंसा सहित पिछले कानून-व्यवस्था मामलों का भी हवाला दिया, जिसमें आदिवासियों ने चर्च को अपवित्र किया और पुलिसकर्मियों पर हमला किया था, जिसमें एसपी भी शामिल थे.

धर्मांतरण से जागरूकता के लिए लगाए गए होर्डिंग्स संवैधानिक

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि लुभावने या धोखाधड़ी तरीके से जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए होर्डिंग्स लगाना असंवैधानिक नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील दायर करने से पहले किसी वैकल्पिक वैधानिक उपाय का उपयोग नहीं किया. आदेश में कहा गया कि किसी भी शिकायत का निवारण मांगने के लिए हाई कोर्ट में आने से पहले उपलब्ध वैधानिक वैकल्पिक उपायों का प्रयोग करना आवश्यक है.

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