Advertisement

दोनों का DNA एक, दोनों अखंड भारत का हिस्सा... संघ प्रमुख मोहन भागवत की बैठक में प्लान 'मुस्लिम आउटरीच' पर हुआ बड़ा फैसला, जानें पूरी डिटेल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) शताब्दी वर्ष पर हिंदू-मुस्लिम एकता बढ़ाने पर जोर दे रहा है. संघ की करीबी संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) अगले दो माह में देशभर में सम्मेलन और बौद्धिक बैठकें आयोजित करेगी. इसका उद्देश्य सामाजिक एकता और देश की प्रगति को मजबूत करना है.

Mohan Bhagwat (File Photo)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इस वर्ष अपने शताब्दी वर्ष का जश्न मना रहा है. संघ के प्रमुख मोहन भागवत इस मौके पर लगातार सुर्ख़ियों में बने हुए हैं. शताब्दी वर्ष के दौरान संघ ने देश की सामाजिक एकता और सर्वांगीण विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम जैसे धार्मिक विवादों को कम करना और देश में भाईचारे को बढ़ावा देना है.

दरअसल, वैश्विक स्तर पर बदलते आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, यह कदम देश की स्थिरता और आर्थिक प्रगति के लिए बेहद जरूरी माना जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब समाज के अलग-अलग वर्ग एक साथ मिलकर काम करेंगे, तभी देश विकास की नई ऊँचाइयों तक पहुंच सकता है. इसी दृष्टि से संघ ने मुस्लिम समाज के साथ संवाद बढ़ाने की रणनीति तैयार की है.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को मिली जिम्मेदारी 

इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए संघ की करीबी संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को जिम्मेदारी दी गई है. एमआरएम अगले दो माह में दिल्ली में एक बड़े मुस्लिम सम्मेलन का आयोजन करेगा. इसके साथ ही देशभर में जिला स्तर पर मुस्लिम बौद्धिक बैठकों का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें संघ के पदाधिकारी भी भाग ले सकते हैं. इस तरह से मुस्लिम समाज के साथ बातचीत और सहयोग का मार्ग और स्पष्ट किया जा रहा है. संघ के शताब्दी वर्ष के इस पहल का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है घर-घर संपर्क अभियान का. इसको लेकर संघ ने लक्ष्य तय किया है कि लगभग 20 करोड़ घरों तक यह अभियान पहुंचेगा, खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में. इस पहल का नेतृत्व मुस्लिम राष्ट्रीय मंच करेगा. इस कदम से यह संदेश जाता है कि संघ केवल सामाजिक चेतना ही नहीं बढ़ा रहा, बल्कि लोगों तक व्यक्तिगत स्तर पर पहुँचकर संवाद स्थापित कर रहा है.

मोहन भागवत ने बनाई रणनीति 

गुरुवार को हरियाणा भवन में आयोजित बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एमआरएम के शीर्ष पदाधिकारियों के साथ इस रणनीति पर विस्तार से चर्चा की. बैठक में संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल और एमआरएम के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार भी मौजूद थे. बैठक का मुख्य उद्देश्य यह तय करना था कि हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच दूरियां कम कैसे हों और एक मजबूत भारतीयता की पहचान कैसे बनाई जाए. संघ प्रमुख का कहना है कि हिंदू-मुस्लिम दोनों इस देश के लिए बेहद जरूरी हैं. सूत्रों के अनुसार, बैठक में मुस्लिम समाज के आर्थिकी और शैक्षणिक विकास के प्रयासों पर विशेष जोर दिया गया. संघ यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मुस्लिम समाज देश की मुख्य धारा में पूरी तरह से शामिल हो और समाज की प्रगति में योगदान दे. इसके लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक, प्रकोष्ठों और प्रांत संयोजक समेत लगभग 40 लोग बैठक में मौजूद थे.

मतभेद कम करना सबसे बड़ा लक्ष्य 

इस पहल का सामाजिक और आर्थिक महत्व भी है. देश में आपसी मतभेदों को कम करने से न केवल सामाजिक स्थिरता बढ़ेगी, बल्कि आर्थिक प्रगति के मार्ग भी आसान होंगे. जब समाज के विभिन्न वर्ग एक साथ मिलकर काम करेंगे, तो न केवल निवेश और व्यापार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि शिक्षा और कौशल विकास में भी तेजी आएगी. संघ की यह रणनीति भविष्य में देश को एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है. जानकारों का मानना है कि संघ के इस प्रयास से हिंदू-मुस्लिम समाज के बीच नए संवाद और सहयोग के अवसर खुलेंगे. इससे सिर्फ धार्मिक सद्भाव ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि युवाओं में देशभक्ति और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना भी प्रबल होगी. संघ ने यह स्पष्ट किया है कि इसका मकसद किसी भी धर्म या समुदाय को पीछे करना नहीं, बल्कि सभी को एक समान अवसर और सम्मान देना है.

बता दें कि इस अभियान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे सीधे लोगों तक पहुंचाया जाएगा. 20 करोड़ घरों तक यह संदेश जाएगा कि देश की प्रगति के लिए सभी वर्गों को मिलकर काम करना चाहिए. संघ के अनुभव और एमआरएम की सक्रिय भागीदारी से यह पहल और अधिक प्रभावशाली बन रही है. सरल और कम शब्दों में कहा जाए तो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष केवल उत्सव का नाम नहीं है, बल्कि यह देश की सामाजिक एकता और सर्वांगीण विकास के लिए एक नई दिशा भी प्रस्तुत कर रहा है.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement