यूपी फतह के लिए तैयार बीजेपी का फार्मूला 27, मोदी-योगी का प्लान तैयार, मुंह देखता रह जाएगा विपक्ष का इंडी गठबंधन
यूपी में बीजेपी ने 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. हालांकि चुनाव में अभी दो साल का लंबा वक्त जरूर बाकी है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्लान बनाना शुरू कर दिया है. अगर यह प्लान अमल में लाया जाता है तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है.
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यूपी बीजेपी ने अपने विधायकों के कामकाज का एक विस्तृत सर्वे शुरू किया है, जिसके नतीजे आने के बाद कई मौजूदा चेहरों की छुट्टी लगभग तय मानी जा रही है. शुरुआती संकेत बताते हैं कि करीब 100 मौजूदा विधायकों के टिकट कट सकते हैं और 70–80 सीटों पर नए चेहरे उतारे जाएंगे. इस कदम के पीछे पार्टी का मकसद जनता की नाराजगी की काट और सत्ता में वापसी सुनिश्चित करना है.
यूपी फतह के लिए बीजेपी ने कसी कमर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मिलकर एक लक्ष्य तय किया है. वह है 2027 में हर हाल में यूपी में बीजेपी को जीत दिलाना. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी मान चुकी है कि लोकसभा चुनाव में सीटों में भारी गिरावट का एक बड़ा कारण जनता की नाराजगी और विधायकों का नकारात्मक रवैया रहा. कई विधायकों पर आरोप लगे कि वे अपने क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहते, छोटे-मोटे काम तक नहीं कराते, लोगों से अभद्र व्यवहार करते हैं और खनन या ठेकेदारी जैसे मामलों में गड़बड़ी में लिप्त रहते हैं.
बीजेपी के आंतरिक सर्वे में सभी विधायकों को तीन कैटेगरी में बांटा जा रहा है. इसमें ‘ए’ श्रेणी में वे नेता हैं, जो लोकप्रिय और जनता से जुड़े हुए माने जाते हैं. ‘बी’ में औसत प्रदर्शन करने वाले नेता, जबकि ‘सी’ में वे हैं, जिनकी छवि बेहद कमजोर है. पार्टी की योजना है कि ‘सी’ श्रेणी के विधायकों के टिकट लगभग तय तौर पर काट दिए जाएंगे. यही नहीं, पार्टी की रणनीति यह भी है कि 160–180 सीटों पर बदलाव कर जनता के गुस्से को ठंडा किया जाए. इससे न सिर्फ एंटी-इंकंबेंसी कम होगी, बल्कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के लिए भी मैदान कठिन हो जाएगा.
2017-22 में इस फॉर्मूले से पार्टी को हुआ है फायदा
बीजेपी ने यह प्रयोग पहले भी किया है. 2017 और 2022 के चुनाव में भी पार्टी ने कई मौजूदा विधायकों को किनारे कर नए चेहरों पर दांव लगाया था. इस फॉर्मूले ने पार्टी को फायदा भी पहुंचाया और असंतोष पार्टी के खिलाफ नहीं, बल्कि विधायकों तक सीमित रहा. यही वजह है कि पार्टी इस बार और बड़े पैमाने पर यह प्रयोग करने जा रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस या समाजवादी पार्टी की तुलना में बीजेपी ने टिकट वितरण को एक संस्थागत प्रक्रिया बना दिया है. यहां किसी विधायक को टिकट मिलने की गारंटी नहीं होती. पार्टी का संदेश साफ है कि संगठन व्यक्ति से बड़ा है और जनता की आवाज ही असली टिकट है.
विधायकों के बीच इस सर्वे को लेकर बेचैनी साफ दिख रही है. कई दो-टर्म वाले विधायक भी मानते हैं कि बीजेपी में मेहनत करने के बावजूद टिकट कटने का डर हमेशा बना रहता है. लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि जीतने की क्षमता ही अंतिम पैमाना है, और अगर नए चेहरे जनता को ज्यादा पसंद आते हैं तो बदलाव करने में नेतृत्व हिचकेगा नहीं. 2027 की तैयारी में बीजेपी न सिर्फ संगठन को चुस्त-दुरुस्त कर रही है, बल्कि सामाजिक समीकरणों को भी साधने की कवायद में है. विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक अगर जातीय समीकरणों पर खेलना चाहता है, तो बीजेपी नए चेहरों और व्यापक सामाजिक संतुलन के जरिए उनकी काट तैयार कर रही है.
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