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अखिलेश के PDA फार्मूले का BJP ने निकाला तोड़, पूर्वांचल के किसी OBC नेता को सौंपेगी प्रदेश अध्यक्ष की कमान!

यूपी की सत्ताधारी दल बीजेपी में नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन के लिए पार्टी आलाकमान को दिमागी कसरत करनी पद रही है. क्योंकि पार्टी प्रदेश की ज़िम्मेदारी जिसे भी सौंपेगी उसके पर आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दिलाने का दबाव रहेगा। इस चयन में पार्टी अखिलेश यादव के PDA फ़ॉर्मूले की काट भी ढूँढ रही है. ताकि समाजवादी पार्टी की इस वर्ग बनी हुई पकड़ को कमजोर किया जा सके.

18 Apr, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
01:02 PM )
अखिलेश के PDA फार्मूले का BJP ने निकाला तोड़, पूर्वांचल के किसी OBC नेता को सौंपेगी प्रदेश अध्यक्ष की कमान!
देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का महत्व सबसे अहम माना जाता है. कहा जाता कि दिल्ली में सत्ता की कुर्सी पाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है. ऐसे में यूपी की राजनीति करने वाली  प्रमुख दलों में एक बीजेपी अपने संगठन के विभिन्न पदों में होने वाले बदलाव को लेकर गहन चिंतन, विचार और तमाम बैठकें कर रही है. पार्टी को नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है. इसके लिए पार्टी क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर चौंकाने वाले नाम को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप सकती है. 


दरअसल, उत्तर प्रदेश में फरवरी 2027 में विधानसभा के चुनाव होने है. प्रदेश में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने वाली समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव PDA फ़ॉर्मूलें को अपनाए हुए है. जिसमें पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक की बात अखिलेश यादव लगातार कर रहे है. ऐसे में अखिलेश यादव के PDA फ़ॉर्मूले की काट ढूंढ़ते हुए नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर फैसला लेने के लिए बीजेपी के रणनीतिकारों को काफी दिमागी कसरत करनी पड़ रही है. पार्टी ने अभी तक प्रदेश में 98 जिला और शहर अध्यक्षों में से 70 की नियुक्ति कर दी है. अब पार्टी अपने संविधान के मुताबिक क्षेत्रीय और जातीय समीकरण को साधते हुए किसी योग्य नेता को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बैठाना चाहती है. 



लोकसभा चुनाव के नतीजों पर बीजेपी का ध्यान 

पिछले साल हुए लोकसभा के चुनाव में यूपी में बीजेपी क्लीन स्वीप करने का दावा कर रही थी. कई मीडिया चैनल पर खुद सूबे के मुखिया योगी आदित्यानाथ ने दावा किया था कि उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के प्रत्याशियों की बड़ी जीत होगी लेकिन नतीजे इससे बिल्कुल विपरीत सामने आए. चुनावी परिणाम में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई. समाजवादी पार्टी को 80 में से 37 सीटों पर जीत मिली, जबकि दूसरे नंबर पर 33 सीटों के साथ बीजेपी और कांग्रेस 6 सीट पर जीत हासिल की. इन नतीजों में अखिलेश यादव के पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक यानी PDA समीकरण का प्रभाव देखने को मिला था. इसके बाद समाजवादी पार्टी और अकिलेश यादव लगातार PDA की बातों पर ज़ोर दे रहे है. अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव से पहले ही यह साफ़ कर दिया है कि पार्टी PDA फ़ॉर्मूले के साथ ही आगे बढ़ने वाली है. अब बीजेपी के ऊपर इस बात का प्रेशर है कि कैसे अखिलेश के PDA फ़ॉर्मूले की काट निकाली जाए.पार्टी सूत्रों की माने तो इस बात की संभावना सबसे प्रबल है कि बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी वर्ग से आने वाला कोई नेता हो सकता है. क्योंकि यूपी में इस समुदाय की आबादी अच्छी ख़ासी है. अगर पार्टी ऐसा करती है तो आने वाले विधानसभा चुनाव में इस प्रभाव देखने को मिल सकता है. 


ओबीसी पर क्यों मंथन कर रही बीजेपी? 

यूपी में ओबीसी वर्ग की राजनीति करने वाले छोटे दलों को बीजेपी का साथ मिल रहा है। अनुप्रिया पटेल की अपना दल, ओम् प्रकाश राजभर की सुभासपा, निषाद पार्टी और जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल का साथ भी बीजेपी के साथ है.  इसको ध्यान में रखते हुए पार्टी का अपने दम पर ओबीसी वर्ग पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए पार्टी पूर्वांचल पर फोकस कर किसी ओबीसी नेता का प्रदेश के पार्टी मुखिया के तौर पर चयन कर सकती है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि  पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी की मज़बूत पकड़ को कमजोर करना है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की 24 में से 14 सीटों पर सपा ने बड़ी जीत हासिल की जबकि बीजेपी के पास 10 और उसकी सहयोगी अपना दल ने एक सीट पर जीत दर्ज की थी. 


किन नामों पर चल रही चर्चा?

बीजेपी में पूर्वांचल के कई ऐसे ओबीसी वर्ग से आने वाले नेता है जो पार्टी के लिए काफ़ी लंबे समय से संगठन में काम कर रहे है. इन नामों में स्वतंत्र देव सिंह, धर्मपाल सिंह, केंद्रीय राज्यमंत्री बीएल वर्मा, बाबूराम निषाद की चर्चा चल रही है जिन्हें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है. इनके अलावा पार्टी कुछ दलित वर्ग से आने वाले विनोद सोनकार, नीलाम सोनकार, विद्यासागर सोनकर सहित कुछ अन्य नामों पर भी मंथन कर सकती है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए किस तरह से जातीय और क्षेत्रीय समीकरण का ध्यान रखकर प्रदेश अध्यक्ष का चयन करती है. 

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