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संभल के मुस्लिम बहुल इलाके में 46 साल बाद कार्तिकेय महादेव मंदिर में हुआ बाबा का जलाभिषेक, उमड़ा भक्तों का सैलाब

श्रावण शिवरात्रि पर संभल के मुस्लिम बहुल खग्गू सराय क्षेत्र में स्थित कार्तिकेय महादेव मंदिर में 46 साल बाद पूजा और जलाभिषेक हुआ. प्रशासन और श्रद्धालुओं ने मिलकर ऐतिहासिक आयोजन में भाग लिया. मंदिर के कपाट 2024 में खुले थे और अब पहली बार शिवरात्रि पर शंख-घंटियों की गूंज सुनाई दी. एसडीएम विकास चंद्र सहित सैकड़ों लोगों ने विधिवत पूजा की. सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे.

श्रावण मास की शिवरात्रि इस बार उत्तर प्रदेश के संभल जिले के लिए न सिर्फ धार्मिक आस्था का पर्व रही, बल्कि सामाजिक समरसता और ऐतिहासिक पुनर्जागरण की मिसाल भी बन गई. मुस्लिम बहुल क्षेत्र खग्गू सराय में स्थित कार्तिकेय महादेव मंदिर में पूरे 46 साल बाद विधिवत पूजा-अर्चना और जलाभिषेक किया गया. यह क्षण सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि वह अध्याय था जो इतिहास के पन्नों में बंद होकर धूल फांक रहा था, अब फिर से जीवंत हो उठा है.

सावन की शिवरात्रि बनी ऐतिहासिक क्षण की साक्षी

मंदिर के कपाट 14 दिसंबर 2024 को खुले थे, लेकिन इस बार की सावन शिवरात्रि एक विशेष ऊर्जा लेकर आई. श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही मंदिर परिसर में उमड़ पड़ी थी. हर कोई जैसे 46 साल के इंतज़ार को समाप्त होते देखने आया हो. स्थानीय एसडीएम विकास चंद्र खुद पूजा में शामिल हुए और अपने हाथों से भगवान शिव का जलाभिषेक कर पूरे वातावरण को पवित्रता से भर दिया. उनके साथ सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु, कांवड़ यात्री और स्थानीय निवासी मौजूद थे. मंदिर परिसर 'हर-हर महादेव' और 'बम-बम भोले' के जयघोषों से गूंज उठा.

46 साल की खामोशी के बाद लौटा मंदिर का उजाला

कार्तिकेय महादेव मंदिर की महिमा इतिहास के पन्नों में दर्ज है. मराठा काल में निर्मित यह मंदिर कभी संभल का प्रमुख धार्मिक केंद्र था, जहां शिव पुत्र भगवान कार्तिकेय की विशेष आराधना होती थी. लेकिन समय के साथ सामाजिक, सांप्रदायिक और प्रशासनिक कारणों से यह मंदिर धीरे-धीरे उपेक्षित हो गया. 46 वर्षों तक इसके कपाट बंद रहे और मंदिर की घंटियों की आवाज खामोश रही. लेकिन 2024 में प्रशासन के विशेष प्रयासों से जब मंदिर फिर से खुला, तो यह सिर्फ ईंट और पत्थर का ढांचा नहीं था, बल्कि आस्था की वो लौ थी जिसे वर्षों बाद फिर से हवा मिली थी. मंदिर के अंदर आज भी वही मूल शिवलिंग, प्राचीन स्थापत्य और मराठा-कालीन दीवारें लगभग उसी अवस्था में मौजूद हैं, जैसे समय ने उन्हें थामे रखा हो.

पहचान की वापसी थी ये शिवरात्रि

एसडीएम विकास चंद्र ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, “यह केवल पूजा-पाठ नहीं था, बल्कि संभल की खोई हुई पहचान को लौटाने का प्रयास था. यह आयोजन विरासत को संजोने और समाज को जोड़ने की दिशा में एक बड़ी पहल है. 46 सालों के सन्नाटे के बाद जब मंदिर में घंटे और शंखनाद गूंजे, तो वह सिर्फ धार्मिक रस्में नहीं थीं, बल्कि एक पूरे समाज की सांस्कृतिक आत्मा की पुकार थी।”

मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है मंदिर 

खग्गू सराय क्षेत्र में बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी निवास करती है. इस कारण मंदिर के पुनरुद्धार और पूजा-अर्चना को लेकर प्रशासन की जिम्मेदारी बढ़ गई थी. लेकिन जो हुआ, वह समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत बनकर सामने आया. इस आयोजन के दौरान कहीं भी कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं देखने को मिला. न कोई विरोध, न कोई नाराजगी. उल्टा, क्षेत्र के कई मुस्लिम नागरिकों ने भी व्यवस्था में सहयोग कर भाईचारे की नई मिसाल पेश की.

चाक-चौबंद रही सुरक्षा, शांति रही बरकरा

संवेदनशील क्षेत्र में इस ऐतिहासिक आयोजन को शांतिपूर्ण संपन्न कराना प्रशासन के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं था. संभल पुलिस, RRF (रैपिड रिएक्शन फोर्स) और मजिस्ट्रेट ड्यूटी हर कोने पर मुस्तैद रही. जामा मस्जिद के आसपास भी सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त किए गए. सदर कोतवाली प्रभारी गजेंद्र सिंह शेखावत खुद पूरे आयोजन की निगरानी में तैनात रहे. मंदिर के मुख्य द्वार पर बैरिकेडिंग की गई और किसी भी अफवाह या गड़बड़ी की आशंका को सख्ती से नकार दिया गया.

बताते चलें कि श्रावण शिवरात्रि के इस आयोजन ने साबित कर दिया कि धर्म जब जोड़ता है, तब समाज के सभी वर्गों को एकसूत्र में पिरोता है. कार्तिकेय महादेव मंदिर अब सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि संभल की आत्मा का प्रतीक बन चुका है. यह वह स्थल है, जहां अब हर सावन, हर शिवरात्रि पर आस्था की धारा फिर से बहेगी और यह संदेश देती रहेगी कि इतिहास को मिटाया नहीं जा सकता, बस थोड़े प्रयास और आस्था से उसे फिर से जिया जा सकता है.

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