बिहार वोटर लिस्ट में 65 लाख नाम हटे, फिर भी SIR पर संसद में बहस नहीं...किरण रिजिजू ने किस नियम का दिया हवाला?
बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्ष संसद में लगातार हंगामा कर रहा है. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहे हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में साफ कर दिया कि SIR पर बहस नहीं हो सकती क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
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बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो चुकी है. विपक्ष लगातार इस मुद्दे को संसद के दोनों सदनों में उठाने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस, राजद और वाम दलों सहित अन्य विपक्षी पार्टियों ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में SIR पर बहस की मांग की है. लेकिन सरकार का रुख साफ है. केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने संसद में खड़े होकर यह दो टूक कह दिया है कि SIR पर लोकसभा में चर्चा नहीं हो सकती क्योंकि यह मामला इस समय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित
बुधवार को जब लोकसभा की कार्यवाही दोपहर 2 बजे दोबारा शुरू हुई, तो विपक्षी सांसदों ने चुनाव आयोग की संशोधित मतदाता सूची को लेकर जोरदार नारेबाजी शुरू कर दी. जवाब में मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, "लोकसभा के नियम कोर्ट में लंबित मामलों पर चर्चा की इजाजत नहीं देते हैं. SIR का मुद्दा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए सदन में इस पर बहस नहीं कराई जा सकती." उन्होंने यह भी जोड़ा कि संविधान के मुताबिक चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्थाओं के कामकाज पर भी संसद में चर्चा संभव नहीं है. रिजिजू का यह बयान विपक्ष की मांगों पर सीधा प्रहार माना जा रहा है.
विपक्ष का आरोप
बिहार में इस समय चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) चलाया जा रहा है. इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जा रहा है. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के नाम पर चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटा दिए हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक उद्देश्य से की जा रही है, जिससे विशेष समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है. कांग्रेस, राजद और लेफ्ट पार्टियों ने इस विषय को संसद में उठाया और मांग की कि सरकार SIR की पारदर्शिता और संवैधानिकता पर सफाई दे.
रिजिजू ने पूछा विपक्ष से सवाल
लोकसभा में लगातार हंगामे के बीच किरण रिजिजू ने विपक्ष से तीखे सवाल पूछे. उन्होंने कहा, "क्या आप सदन के नियम तोड़ना चाहते हैं? क्या आप देश के संविधान को चुनौती देना चाहते हैं?" उन्होंने विपक्ष से अपील करते हुए कहा कि इस तरह का व्यवहार संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है और इससे देश की लोकतांत्रिक छवि प्रभावित होती है. हालांकि, विपक्षी सांसद अपनी मांग पर अड़े रहे. नारेबाजी और शोरगुल के चलते लोकसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है. बुधवार को शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया में हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की जानकारी मांगी है. कोर्ट ने आयोग को आदेश दिया है कि वह यह आंकड़े तीन दिन के भीतर प्रस्तुत करे. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुयान और जस्टिस एन के सिंह की बेंच ने चुनाव आयोग से स्पष्ट जवाब मांगा है. यह सुनवाई एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर याचिका पर हुई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाए जा रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है.
चुनाव आयोग का पक्ष
हालांकि चुनाव आयोग ने इस पर अभी कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है. आयोग का कहना है कि SIR एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाना है. आयोग के अधिकारियों के अनुसार, जिन नामों को हटाया गया है, वे या तो मृतक थे, स्थान बदल चुके थे या डुप्लीकेट एंट्री में शामिल थे. आयोग ने यह भी बताया कि इस प्रक्रिया में किसी भी वैध मतदाता का नाम जानबूझकर नहीं हटाया गया है. साथ ही आयोग ने दावा किया है कि पुनरीक्षण के दौरान आम जनता को पर्याप्त सूचना और समय दिया गया है कि वे अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकें.
राजनीतिक लड़ाई का नया मोर्चा
SIR के मुद्दे ने बिहार में राजनीतिक टकराव को और गहरा कर दिया है. 2025 में संभावित विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची में बड़े बदलाव को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है. लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी, और चुनाव आयोग की चुप्पी—इन सबके बीच यह मामला अब सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया न रहकर राष्ट्रीय राजनीतिक बहस बन चुका है. लोकसभा में SIR पर चर्चा नहीं होगी, यह अब स्पष्ट है. सरकार नियमों और संवैधानिक प्रावधानों का हवाला दे रही है, जबकि विपक्ष इसे जनतंत्र और पारदर्शिता से जोड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप अब इस मुद्दे को एक नई दिशा दे सकता है.
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