छत्तीसगढ़ जेल में महिला कैदियों के साथ 60 बच्चे, जो भुगत रहे हैं मां के जुर्म की कीमत
छत्तीसगढ़ की जेलों में महिला कैदियों के साथ 60 बच्चे भी रह रहे हैं। ये बच्चे अपनी मां के जुर्म की सजा नहीं भले भुगत रहे हों, लेकिन उनकी जिंदगी पर इसका असर पड़ रहा है. यह स्थिति जेल प्रशासन और समाज के लिए एक चुनौती बनती जा रही है.
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छत्तीसगढ़ की विभिन्न जेलों में बंद महिला कैदियों के साथ लगभग 60 से अधिक बच्चे भी कैद की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. ये मासूम बच्चे किसी अपराध के दोषी नहीं हैं, फिर भी अपनी मांओं के साथ जेल की चारदीवारी में पल-पोष रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हालिया आंकड़ों और राज्य जेल विभाग की रिपोर्टों से यह तस्वीर सामने आई है, जो राज्य में महिला कैदियों की बढ़ती संख्या और उनके बच्चों की दयनीय स्थिति को उजागर करती है.
जेलों में 'मदर एंड चाइल्ड' व्यवस्था
छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, रायपुर, जगदलपुर और दुर्ग जैसी प्रमुख जेलों में महिला कैदियों के लिए अलग वार्ड और 'मदर एंड चाइल्ड' सेल की व्यवस्था है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार, 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मां के साथ रखने की अनुमति है. राज्य की जेलों में कुल महिला कैदियों की संख्या लगभग 500 के आसपास है, जिनमें से करीब 12% के पास बच्चे साथ रहते हैं. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े औपचारिक हैं, वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है. जगदलपुर सेंट्रल जेल में 97 महिला कैदियों के साथ 12 बच्चे रहते हैं, जबकि बिलासपुर जेल में यह संख्या 15 से अधिक है. कुल मिलाकर, राज्य स्तर पर 60 से ज्यादा बच्चे जेल की ठंडी दीवारों के बीच खेलने-कूदने को मजबूर हैं.
जेल प्रशासन दूध, पोषण भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराता है, लेकिन क्रेच और आंगनवाड़ी जैसी व्यवस्थाएं कई जगहों पर नाममात्र की हैं. एक जेल अधिकारी ने बताया, "बच्चों के लिए अलग खेल का मैदान और किताबें उपलब्ध हैं, लेकिन जेल का माहौल ही उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित करता है. "
मां के अपराध की सजा
ये बच्चे हत्या, चोरी, नक्सलवाद या पारिवारिक विवाद जैसे मामलों में फंसी अपनी मांओं के साथ रहते हैं. कई बच्चे तो जेल में ही जन्म लेते हैं. एक बच्चे की मां, जो नक्सली गतिविधियों के आरोप में बंद है, ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "मेरा बच्चा यहां पैदा हुआ. बाहर परिवार नहीं है, तो क्या करूं? लेकिन वह निर्दोष है, फिर भी लोहे की सलाखों के पीछे खेलता है. " राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हाल ही में राज्यों से महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है, जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है. आयोग के अनुसार, इन बच्चों को पर्याप्त पोषण, शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. 6 साल की उम्र के बाद इन्हें जेल से बाहर राज्य संचालित बाल गृह भेज दिया जाता है, लेकिन तब तक का समय जेल का दबाव इन्हें जीवन भर प्रभावित करता है.
रिहाई और सुधार की उम्मीद
राष्ट्रीय आदर्श जेल मैनुअल 2016 के तहत, गर्भवती महिला कैदियों को विशेष भोजन और प्रसव के लिए नजदीकी अस्पताल में स्थानांतरित करने का प्रावधान है. साथ ही, विचाराधीन कैदियों (जिनकी संख्या महिला कैदियों में 70% से अधिक है) को जमानत पर रिहा करने की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश हैं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में जेलों में ओपन जेल (खुली जेल) की व्यवस्था पर विचार करने का आदेश दिया है, जो महिला कैदियों और बच्चों के लिए राहत साबित हो सकता है.
एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि इन बच्चों के लिए अलग 'चाइल्ड केयर होम' स्थापित किए जाएं. एक कार्यकर्ता ने कहा, "ये बच्चे अपराधी नहीं, बल्कि समाज के शिकार हैं. उनकी शिक्षा और पुनर्वास पर फोकस जरूरी है. "
राज्य सरकार की पहल
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छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से जेलों में आंगनवाड़ी केंद्र खोले हैं, लेकिन बजट की कमी से ये पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे. हाल के वर्षों में महिला कैदियों की संख्या में 20% वृद्धि हुई है, जिससे बच्चों की संख्या भी बढ़ी है. विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि पारिवारिक सहायता कार्यक्रमों को मजबूत किया जाए ताकि बच्चे जेल के बाहर रह सकें. यह मुद्दा न केवल मानवाधिकारों का सवाल है, बल्कि समाज की संवेदनशीलता का भी आईना. जब तक व्यवस्था में सुधार नहीं होता, ये मासूम अपनी मां के जुर्म की सजा भुगतते रहेंगे.
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