वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ... संसद में आज होगी बड़ी बहस, PM मोदी करेंगे चर्चा की शुरुआत
देश की संसद का शीतकालीन सत्र के बीच आज 'वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा व राज्यसभा में विशेष चर्चा शुरू होने वाली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे लोकसभा चर्चा शुरू करेंगे और समापन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे.
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देश की संसद का शीतकालीन सत्र इन दिनों बेहद खास माहौल में चल रहा है. इसी कड़ी में अब लोकसभा और राज्यसभा में एक ऐतिहासिक चर्चा होने जा रही है. राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष बहस का आयोजन किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी सोमवार को दोपहर 12 बजे ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा की शुरुआत करेंगे. करीब 10 घंटे तक चलने वाली इस चर्चा का समापन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे. वहीं राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह बहस की शुरुआत कर सकते हैं. सदन में माहौल पहले से ही गरम है, क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ‘वंदे मातरम’ को लेकर अपनी-अपनी राय सामने आ चुकी है.
क्यों अहम है वंदे मातरम पर बहस ?
आज होने वाली यह बहस सिर्फ सांस्कृतिक मुद्दा नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है. पिछले महीनों में इस गीत को लेकर बयानबाजी तेज रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम में कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि पार्टी ने 1937 में फैजाबाद में हुए अधिवेशन में असली गीत से कुछ लाइनें हटाने का फैसला किया था. उनका कहना था कि इसी निर्णय ने विभाजन का बीज बोया और राष्ट्रगीत को टुकड़ों में बांट दिया. कांग्रेस ने इस आरोप का जवाब देते हुए कहा था कि यह फैसला रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह पर लिया गया था, और इसका मकसद सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान करना था. ऐसे में आज संसद में इस बहस के दौरान शब्दों और तथ्यों की तीखी टकराहट देखने को मिल सकती है.
सत्र शुरू होने से पहले ही छिड़ गया विवाद
शीतकालीन सत्र शुरू होने से ठीक पहले एक नया विवाद खड़ा हो गया था, जब राज्यसभा सचिवालय ने सांसदों को निर्देश दिया था कि वे सदन के अंदर ‘वंदे मातरम’ और ‘जय हिन्द’ जैसे नारों का उपयोग न करें. विपक्ष ने इस पर केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि एनडीए भारत की आजादी और एकता के प्रतीकों से असहज है. इस बयान के बाद बहस और तेज हो गई और अब आज वही मुद्दा संसद के केंद्र में है.
कांग्रेस की ओर से कौन-कौन रखेगा पक्ष
इस चर्चा में कांग्रेस की तरफ से लोकसभा में आठ प्रमुख नेता बोल सकते हैं. इनमें प्रियंका गांधी वाड्रा, गौरव गोगोई, दीपेंद्र हुड्डा, विमल अकोइजम, प्रनीति शिंदे, प्रशांत पडोले, चमाला रेड्डी और ज्योत्सना महंत शामिल हैं. माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बहस में राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक विरासत को अपने दृष्टिकोण से मजबूत तरीके से रखेगी.
क्या है वंदे मातरम का वास्तविक अर्थ?
वंदे मातरम का मतलब है. 'हे मातृभूमि, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं.' वंदे शब्द संस्कृत का है, जिसका अर्थ नमन करना है. मातरम इंडो यूरोपीय शब्द है, जो मां या मातृभूमि का प्रतीक है. यह गीत भारत माता को समर्पित है और उनकी महानता, शक्ति और सौंदर्य का वर्णन करता है. यह वही गीत है जिसने गुलामी के दौर में स्वदेशी आंदोलन में जोश भरा. जिसने आजादी के मतवालों की रगों में देशभक्ति की आग जगाई. जिसने विदेशी शासन के खिलाफ देश में एकता की भावना को मजबूत किया.
वंदे मातरम से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
जानकारी देते चलें कि 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने यह गीत लिखा था. पहली बार इसे साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया गया था. इसके बाद साल 1882 में यह उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा बना. इसे 1896 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार गाया. इसी तरह 7 अगस्त 1905 को इसे स्वदेशी आंदोलन के दौरान राजनीतिक नारे के रूप में अपनाया गया. बाद में यही गीत बंगाल विभाजन के विरोध का प्रमुख स्वर बना. 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने विदेश में ‘वंदे मातरम’ लिखे ध्वज को फहराया. इसके बाद कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में इसे पूरे भारत के समारोहों के लिए अपनाया गया. आज़ादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया. यही वो महत्वपूर्ण तथ्य है जो बताते हैं कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं बल्कि भारत के स्वाधीनता संग्राम की धड़कन रहा है.
चर्चा में क्या खास होगा?
बहस के लिए कुल 10 घंटे तय किए गए हैं, जिनमें से 3 घंटे एनडीए के हिस्से आए हैं. बताया जा रहा है कि लोकसभा आज देर रात तक चल सकती है. दोनों पक्ष अपने तर्कों के साथ तैयार हैं. सत्ता पक्ष गीत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत तरीके से रख सकता है, जबकि विपक्ष इसे विविधतापूर्ण भारत की पहचान और सामाजिक सौहार्द से जोड़कर देख सकता है.
150 साल बाद भी क्यों खास है वंदे मातरम
आजादी के 75 साल बाद भी वंदे मातरम की गूंज कम नहीं हुई है. आज भी यह गीत हर भारतीय के भीतर देश के प्रति श्रद्धा का भाव जगाता है. यह गीत सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि वर्तमान और भविष्य का भी प्रतीक है. यह बताता है कि मातृभूमि का मान-सम्मान किसी भी दौर में सर्वोपरि होता है. आज संसद की यह ऐतिहासिक बहस देश को फिर याद दिलाएगी कि कैसे एक गीत लोगों की भावनाओं को जोड़ सकता है, आंदोलन खड़ा कर सकता है और राष्ट्र की आत्मा को मजबूत कर सकता है.
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बताते चलें कि संसद का शीतकालीन सत्र 19 दिसंबर तक चलेगा और आने वाले दिनों में ‘वंदे मातरम’ पर बहस और भी तेज हो सकती है. लेकिन इतना तय है कि इतिहास के 150 वर्षों बाद भी इस गीत की शक्ति, उसका प्रभाव और उसकी गूंज वैसी ही है जैसी आजादी के दीवानों के समय थी.
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