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मलेशिया में इस्लाम छोड़ने के लिए भटक रही महिलाओं को PM Modi दिलाएंगे इंसाफ़?

शरीयत की बेड़ियों में मलेशिया का क़ानून । महिलाओं को क्यों नहीं मिलती इस्लाम छोड़ने की इजाज़त? मलेशिया की महिलाओं के साथ अब क्या पीएम मोदी करेंगे इंसाफ़? देखिये सिर्फ़ धर्म ज्ञान पर।

क्या महिलाओं को इस्लाम छोड़ने की इजाज़त नहीं है ? आज ये सवाल इसलिए उठा है, क्योंकि भारत से 5700 किलो मीटर दूर मलेशिया में एक महिला ऐसी है, जो ख़ुद के मुल्क में इस्लाम छोड़ने के लिए सालों से भटक रही हैं।चाहकर भी उस मुस्लिम महिला को इस्लाम से मुक्ति नहीं मिल पा रही है।क्या है ये पूरा मामला, आईये आपको विस्तार से बताते हैं।

मुस्लिम बहुल मलेशिया, एक ऐसा मुल्क है, जिसकी गिनती एशिया के सबसे अमीर देशों में होती है। आज की डेट में मलेशिया दिन रात मोदी चालीसा पढ़ता है।.पीएम मोदी की शान में कसीदे पढ़ता है।खुलकर कहता है कि हमें भारत से कृषि उपज के आयात पर और सहूलियत की उम्मीद है।यही दुआ करता है कि मलेशिया-भारत संबंध बढ़ते और फलते-फूलते रहें।अब आप बोलेंगे, ये तो वहीं मलेशिया है, जिसने पाकिस्तान के साथ अपनी दोस्ती दिखाते हुए कश्मीर मसले पर टांग अड़ाने की हिमाक़त की थी।भारत को अपने तीखे तेवर दिखाते हुए कश्मीर पर भारत का जबरन और नाजायज कब्जा बताया था।लेकिन ये बात उन दिनों की है, जब मलेशिया इस बात से अंजान था कि भारत उसकी ज़रूरत और मजबूरी दोनों हैं, तभी तो जैसे ही भारत सरकार ने मलेशिया से आयात होने वाले पाम तेल पर रोक लगाई, तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर की सारी गर्मी निकल गई।

उस दिन से आज तक, ना ही मलेशिया ने कभी भारत से पंगा लेने की कोशिश की और ना ही भारत विरोधी ताक़तों के साथ सुर से सुर मिलाने की हिमाक़त। ये जग ज़ाहिर है कि ।इस्लामिक मुल्क मलेशिया में कट्टरवादी ताक़तों को बोलबाला है।तभी तो मुल्क की शरीयत अदालतें एक मुस्लिम महिला को जबरन इस्लाम में बांधे हुए हैं। जी हैं। महिला का नाम गोपनीय है, लेकिन ख़बरों के मुताबिक़।मलेशिया में एक महिला ऐसी है, जिसे इस्लाम छोड़ने के लिए रोक दिया गया है। यानी ना चाहकर भी महिला को मुस्लिम बनकर रहना पड़ रहा है।क्या है ये पूरा मामला, आईये आपको बताते हैं।

दरअसल 32 वर्षीय मलेशियाई महिला का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ, लेकिन उसने कभी इस्लाम का पालन नहीं किया । कोर्ट के सामने महिला ने कहा कि वो कन्फ्यूशियननिज्म और बौद्ध धर्म को मानती है इसलिए उसे मुसलमान न माना जाए। अब जो कि महिला एक ग़ैर मुस्लिम से शादी करना चाहती है और इस्लाम से मुक्ति, इस कारण साल 2018 में शरिया अदालतों के फैसले के खिलाफ राजधानी कुआलालंपुर के हाई कोर्ट में अपील दायर की।जिस पर तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की। 

महिला की मांग थी कि कोर्ट ये घोषित करे कि वो मुस्लिम नहीं है और उन्हें अपनी मर्जी का धर्म मानने की पूरी आजादी है।महिला ये भी चाहती थी कि कोर्ट ये स्पष्ट करे कि शरिया की अदालतों के पास किसी व्यक्ति को इस्लाम से निकालने की इजाजत है या नहीं।.लेकिन महिला को कोर्ट से निराशा हाथ लगी और अदालत ने उसके इस्लाम छोड़ने पर रोक लगा दी। इसके बाद साल 2022 में  महिला ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया , तो अदालत ने निचली कोर्ट के फैसले पर न्यायिक समीक्षा करने से ही इनकार कर दिया।मुस्लिम महिला के इस मामले की जानकारी, तमाम न्यूज़ पोर्टल पर है।

अन्य मुल्कों की तरह भारत में भी ।मुस्लिम महिलाओं ने दशकों तक तीन तलाक़ का दर्द झेला।लेकिन जैसे ही केंद्रीय की सत्ता पर कमल खिला।पीएम मोदी ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बना दिया। अब ना ही महिलाओं को तीन तलाक़ दिया जा सकता है और जिन्होंने तीन तलाक़ देने की हिमाक़त की है, उन्हें क़ानून की धाराओं ने दंडित किया है। ।मलेशिया की तुलना में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में बसती है, जहां किसी भी धर्म को अपनाने और छोड़ने का अधिकार प्रत्येक भारतवासी के पास है। 

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