सीजफायर के बीच क्या कश्मीर में उतरेगी दशनाम साधुओं की विशालकाय फौज ?
एक बार फिर सरकार मुक्त मठ-मंदिरों के लिए आवाज़ गूंजी है. एक बार फिर सनातन संस्कृति के विकास के लिए आवाज़ गूंजी है. एक बार फिर हिंदू पर्यटकों की वापसी के लिए आवाज़ गूंजी है. सीजफायर के बीच आचार्य महामंडलेश्वर का मिशन कश्मीर क्या कहता है, जिसके सारथी ख़ुद देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। देखिये इस पर हमारी आज की ये स्पेशल रिपोर्ट.
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आज का जम्मू-कश्मीर क्या पर्यटकों की रौनक़ से गुलज़ार हो पाएगा, आज ये सवाल इसलिए क्योंकि पहलगाम आतंकी हमले में जिस प्रकार धर्म पूछकर हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया गया, उसे भूल पाना नामुमकिन है, तभी तो जम्मू-कश्मीर के पर्यटन में मंदी छाई हुई है. कश्मीर की हसीन वादियाँ अब तक पर्यटकों के लिए दहशत बनी हुई हैं. हालाँकि प्रदेश के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला हो या फिर विपक्षी नेता महबूबा मुफ़्ती, सनातन का चोला ओढ़कर पर्यटकों की वापसी का रास्ता खोज रहे हैं. लेकिन क्या अपने इरादों में कामयाब हो पायेंगे, ये तो वक़्त बताएगा. फ़िलहाल तो आचार्य महामंडलेश्वर ने ठाना है, जम्मू-कश्मीर में कुछ बड़ा करना है. एक बार फिर सरकार मुक्त मठ-मंदिरों के लिए आवाज़ गूंजी है..एक बार फिर सनातन संस्कृति के विकास के लिए आवाज़ गूंजी है. एक बार फिर हिंदू पर्यटकों की वापसी के लिए आवाज़ गूंजी है. सीजफायर के बीच आचार्य महामंडलेश्वर का मिशन कश्मीर क्या कहता है, जिसके सारथी ख़ुद देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. देखिये इस पर हमारी आज की ये स्पेशल रिपोर्ट.
मंदिरों के इस देश में जम्मू-कश्मीर, धरती का वो स्वर्ग है..जहां सदियों पुराने प्राचीन मठ-मंदिर हैं. आदि शंकराचार्य की इस तपोस्थली पर आज भी सनातन की गहरी छाप नजर आती है. आज भी कश्मीर कश्यप ऋषि के नाम से जाना जाता है. जम्मू को तो मंदिरों का शहर कहा जाता है. यहीं बाबा बर्फ़ानी भी बसते हैं और यहीं पर माँ वैष्णों देवी की गुफा मिलती है. प्राचीन मंदिरों के साथ-साथ ऐसे -ऐसे मठ है, जो संत महात्माओं की तपस्या की साक्षी बनी और आज इन्हीं मठ-मंदिरों की रौनक़ वापस लाने के लिए निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि महाराज मिशन कश्मीर पर निकल पड़े हैं, दिलचस्प बात ये है कि उनके इस मिशन का सारथी कोई और नहीं., बल्कि देश के सनातनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे. क्या है ये पूरा मामला, आईये आपको बताते हैं.
आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि महाराज, आज की डेट में संत समाज से आने वाली एक ऐसी करिश्माई शख़्सियत हैं, जिनके सानिध्य में आकर विदेशी हस्तियों ने संगम किनारे कल्पवास को अपनाया, ताज़ा उदाहरण स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल है, जिन्हें इस बार के महाकुंभ में निरंजनी अखाड़े के मठ में देखा गया था. बतौर आध्यात्मिक गुरु कैलाशानंद गिरि महाराज विश्व भर में सनातन की पताका लहरा रहे हैं, जन-जन को आध्यात्म की सत्यता से परिचित कर रहे हैं. इसी कड़ी में अब उन्होंने जम्मू-कश्मीर जाने का फ़ैसला किया है. क्षतिग्रस्त मठ-मंदिरों का विकास हो सके और प्रत्येक सनातनी मठ-मंदिरों तक पहुँच सके , इसके लिए उन्होंने पीएम मोदी से सरकार मुक्त मठ-मंदिरों की माँग की है. दरअसल कैलाशानंद गिरि महाराज जी कश्मीर की सनातन संस्कृति को बचाए रखने की कोशिश है, जिसके लिए उन्होंने अपना मिशन कश्मीर का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है.
जम्मू-कश्मीर में जितने भी मंदिर और मठ पर किसी भी तरह का सरकारी, गैर सरकारी या अवैध कब्जा है. उन सभी को मुक्त कराया जाए और उन मंदिर और मठ को सभी संतो को सौंप दिया जाए. यहीं माँग कैलाशानंद गिरि महाराज पीएम मोदी के समक्ष रखेंगे. उन्होंने ये योजना बनाई है कि जम्मू-कश्मीर के मठ-मंदिरों का विकास अखाड़ा और संतों के द्वारा कराया जाएगा. जो मंदिर या मठ छोटे हैं, उन्हें बड़ा बनाया जाएगा और उन्हें विकसित किया जाएगा. ताकि बड़ी संख्या में सनातन को मानने वाले लोग उन मंदिर और मठ में पहुंचकर दर्शन पूजन कर सकें. दरअसल आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि महाराज ये मानते हैं कि मंदिर और मठ के विकास के साथ-साथ सनातन संस्कृति का विकास तो होता ही है, साथ ही उससे राज्य का भी विकास होता है. बक़ायदा उदाहरण देते हुए उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर , महाकाल लोक और अयोध्या के राम मंदिर का ज़िक्र किया.
ऐसे में अगर जम्मू-कश्मीर के इन मंदिर और मठों का विकास होगा तो वहां भी लोग पहुंचेंगे. मतलब बिलकुल साफ़ है, जम्मू-कश्मीर के मठ-मंदिरों का कंट्रोल देश का संत समाज अपने हाथों में रखना चाहता है, और अगर ऐसा है, तो इसमें ग़लत क्या है ? संत महात्मा अगर कश्मीर आएंगे. दशनाम संतों की फ़ौज अगर कश्मीर में उतरेगी और अगर घाटी की सनातन संस्कृति की उत्थान होता है, तो इसमें क्या ग़लत है? जब अन्य धर्मों के तीर्थस्थलों पर उन्हीं के पादरी और धर्मगुरुओं और धार्मिक बोर्ड का कंट्रोल है, तो फिर क्या जम्मू-कश्मीर के मठ-मंदिरों का रखरखाव संतों के हाथों में नहीं होना चाहिये और सबसे बड़ी बात ये कि आचार्य महामंडलेश्वर के इस मिशन को पूरा करने में क्या ख़ुद पीएम मोदी आगे आएँगे? दोनों के बीच की मित्रता किसी से छिपी नहीं है, पीएम मोदी द्वारा तमाम मंदिर कॉरिडोर उद्घाटन में कैलाशानंद गिरि महाराज की मौजूदगी रहती है , ऐसे में क़्या पीएम मोदी ख़ुद से जम्मू-कश्मीर का रिमोट कंट्रोल उनके हाथों में देंगे ?
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