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क्या तुर्की की वजह से 300 वर्षों तक नहीं हो पाई थी अमरनाथ यात्रा ?

3 जुलाई से शुरु हुई अमरनाथ यात्रा के लिए भक्तों का पहला जत्था जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हो चुका है. 38 दिनों की इस यात्रा में शिव भक्तों का जोश हाई है, जिसे देख दुश्मन पस्त हैं. हालाँकि एक वक़्त ऐसा भी था , जब 300 वर्षों तक बाबा बर्फ़ानी की गुफा सन्नाटा में रही और इसके पीछे का कारण था तुर्की.

03 Jul, 2025
( Updated: 04 Dec, 2025
04:26 AM )
क्या तुर्की की वजह से 300 वर्षों तक नहीं हो पाई थी अमरनाथ यात्रा ?

ना ही आतंकी शिव भक्तों की आस्था को कुचल पाए, और ना ही दुश्मनों की ताकत अमरनाथ यात्रा को रोक पाई. पहलगाम हमले को 40 दिन पूरे हो चुके हैं. इस बीच देश ने अपनों को खोने का दर्द झेला, ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए आतंकियों की फ़ैक्ट्री को मिट्टी में मिला दिया. ना सिर्फ़ पाक को उसकी औक़ात दिखाई गई, बल्कि अब जब अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फ़ानी प्रकट हुए हैं, तो उनके दुर्लभ दर्शन के लिए शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है. 3 जुलाई से शुरू हुई अमरनाथ यात्रा के लिए भक्तों का पहला जत्था जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हो चुका है. 38 दिनों की इस यात्रा में शिव भक्तों का जोश हाई है, जिसे देख दुश्मन पस्त हैं. हालाँकि एक वक़्त ऐसा भी था जब 300 वर्षों तक बाबा बर्फ़ानी की गुफा सन्नाटे में रही, और इसके पीछे का कारण था तुर्की.

22 अप्रैल 2025 इसी तारीख़ को देश के दुश्मनों ने आतंक के भेष में पहलगाम की बैसरन घाटी को लहूलुहान कर दिया था. धर्म पूछकर हिंदू पर्यटकों को गोली मारी गई. भारत की बहू-बेटियों का सिंदूर उजाड़ा गया. इस आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे। हालाँकि इसका बदला ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए लिया गया. आतंक की फ़ैक्ट्री चला रहे पाकिस्तान को उसी के घर में घुसकर उसकी औक़ात दिखाई गई. इस पूरे घटनाक्रम के बाद देश के पर्यटक जम्मू-कश्मीर जाने को लेकर ख़ुद को असुरक्षित महसूस करने लगे. टूरिस्ट सीज़न में पर्यटकों से गुलज़ार रहने वाली कश्मीर घाटी वीरान पड़ी रही, लेकिन इसी वीरानी को बाबा बर्फ़ानी के भक्तों ने खत्म किया है. अमरनाथ यात्रा शुरू होते ही जम्मू-कश्मीर की पुरानी रौनक लौटती दिखाई दी. बीते दिनों जम्मू में LG मनोज सिन्हा ने हरी झंडी दिखाकर अमरनाथ यात्रा के पहले जत्थे को रवाना किया. ‘हर हर महादेव’ और ‘बम बम भोले’ के जयकारों के बीच शिव भक्तों का उत्साह देखने लायक था. पहलगाम रूट से गुफा तक पहुंचने में लगभग 3 दिन लगते हैं, जबकि बालटाल रूट से केवल 14 किमी की चढ़ाई है, लेकिन वह एकदम खड़ी है. इसी कारण अमूमन तीर्थ यात्री अमरनाथ यात्रा के लिए पहलगाम रूट को ही चुनते हैं. इस बार सुरक्षा के कड़े इंतज़ामों के साथ-साथ तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया है, जिससे भोले के भक्त भयमुक्त हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भय के कारण ही बाबा बर्फ़ानी के भक्त उनसे करीब 300 वर्षों तक दूर रहे? एक ऐसा दौर भी था, जब अमरनाथ गुफा 300 वर्षों तक सन्नाटे में डूबी रही और इसके पीछे कारण थे, तुर्की से आए तुर्क आक्रांताओं की फौज.

कश्यप ऋषि के नाम से पहचाने जाने वाला जम्मू-कश्मीर संत-महात्माओं की तपोस्थली रहा है. यहां के कण-कण में हिंदुओं के प्राचीन मंदिरों की मौजूदगी थी। यह कश्मीरी पंडितों का निवास स्थल था. लेकिन अगर मध्यकालीन इतिहास पर नज़र डालें, तो विदेशी आक्रमणकारियों और आततायियों ने हिंदुओं की इसी आस्था को कुचल दिया. जिसमें अमरनाथ यात्रा भी शामिल थी.  आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अतीत में अमरनाथ यात्रा लगभग 300 वर्षों तक बाधित रही. दरअसल, 14वीं सदी के मध्य से 17वीं सदी तक अमरनाथ यात्रा स्थगित रही. इसके पीछे मुख्य कारण थे कश्मीर घाटी में विदेशी आक्रांताओं के हमले, अशांति और हिंदू आबादी का पलायन. बताया जाता है कि 14वीं सदी में कश्मीर घाटी पर तुर्क आक्रमणकारियों ने हमला किया, जो तुर्की से आए थे. इन हमलों के कारण इलाके में भारी अशांति फैली, और डर का माहौल बन गया. इन्हीं तुर्क आक्रमणकारियों ने मंदिरों में लूटपाट मचाई और धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया, जिसकी वजह से कई हिंदुओं खासकर कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा. इसी कारण तीर्थ यात्राएं असुरक्षित हो गईं. तुर्क आक्रांताओं ने अमरनाथ गुफा के रास्ते को भी नष्ट कर दिया, जिस वजह से लगभग 300 वर्षों तक बाबा बर्फ़ानी की गुफा भक्तों के बिना सन्नाटे में डूबी रही. हालाँकि, एक लंबे अंतराल के बाद बाबा बर्फ़ानी ने चमत्कार किया. ‘बूटा मलिक’ नामक एक चरवाहे के माध्यम से उन्होंने अपने भक्तों को अमरनाथ आने का रास्ता दिखाया.  इसी चमत्कारिक घटना के चलते 18वीं सदी में अमरनाथ यात्रा की पुनः शुरुआत हुई, जो आज तक अनवरत जारी है.

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