वो अनोखा शक्तिपीठ जहां बिना हिंसा दी जाती है पशु बलि, जानें गर्भगृह का रहस्य और शिव की अद्भुत छवि
आपने अक्सर सुना होगा कि मां दुर्गा के काली रुप को जानवरों की बलि देने से मां की कृपा बनी रहती है. मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है. अगर बलि नहीं दी जाए तो काली माता दंड देती हैं. इन्हीं मान्यताओं की वजह से देश में आज भी कई लोग पशु बलि देने में विश्वास रखते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार में एक ऐसा शक्तिपीठ छिपा है जहां बिना हिंसा के बलि दी जाती है.
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शारदीय नवरात्र का आज आठवां दिन है. देशभर में कन्या पूजन किया जा रहा है. ऐसे में नवरात्र के दौरान कुछ मंदिरों में पशु बलि भी दी जाती है, लेकिन बिहार के कैमूर जिले में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ में अनोखे तरीके से बलि दी जाती है. इसके बारें में जानकर आपको भी हैरानी होगी. इस बलि की खास बात यह है कि यहां बिना खून बहाए इस प्रथा का निर्वहन किया जाता है. लेकिन बिना खून बहाए पशु बलि कैसे दी जा सकती है? अगर आपके मन में भी यह प्रश्न उठ रहा है, तो चलिए जानते हैं…
आपने कई बार सुना होगा कि बलि देने से मां की कृपा बनी रहती है. बलि देने के बाद काली मां हमसे नाराज नहीं होतीं. लेकिन मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ एक पवित्र स्थान है, जहां बलि तो दी जाती है, लेकिन बिना खून बहाए. यह मंदिर मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह शक्तिपीठ बिहार राज्य के कैमूर जिले की पावरा पहाड़ी पर बसा है. भक्त पहाड़ों से गुजरकर यहां मां भवानी के दर्शन करने जाते हैं. इस मंदिर में सात्विक बलि परंपरा की प्रथा चली आ रही है.
किस तरह दी जाती है पशु बलि?
यहां बकरे को मां भवानी के सामने रखा जाता है. फिर पंडित अक्षत और रोली से कुछ मंत्र पढ़कर बकरे पर पानी की छींटें मारते हैं, जिससे बकरा बेहोश होकर गिर जाता है. इसे ही मंदिर में बलि माना जाता है. कुछ देर बाद जब बकरा होश में आ जाता है, तो उसे छोड़ दिया जाता है. मंदिर में बकरे या किसी भी पशु के साथ हिंसा नहीं की जाती.
भक्त मां को किस तरह करते हैं प्रसन्न?
मां मुंडेश्वरी मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने के लिए नारियल और लाल चुनरी चढ़ाने की प्रथा है, लेकिन किसी मनोकामना के लिए पशु को बिना दर्द दिए माता के चरणों में समर्पित किया जाता है.
कौन हैं मां मुंडेश्वरी?
कहा जाता रहा है कि मां ने राक्षस मुंड को मारने के लिए अवतार लिया और उसका वध किया, जिसकी वजह से भक्तों के बीच उन्हें मां मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि यह मंदिर 5वीं शताब्दी में बनाया गया था. मंदिर के प्रांगण से मां के दर्शन करने तक का सफर सीढ़ियों से होकर पूरा करना पड़ता है.
मुगलों ने किया था आक्रमण
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इसके अलावा, मंदिर को मुगल इतिहास से भी जोड़ा गया है. कहा जाता है कि पहले यह मंदिर बहुत बड़ा था, लेकिन मुगलों के आक्रमण के बाद मंदिर का कुछ हिस्सा टूट गया. इस मंदिर में मां भगवती अकेली नहीं हैं, बल्कि मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिव विराजमान हैं.
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