जोधपुर की धणी भविष्यवाणी में पीएम मोदी के लिए ख़तरे के संकेत !
भारत-पाकिस्तान में आए तनाव के तूफ़ान के बीच पीएम मोदी पर कौन सी बड़ी आफ़त आनी अभी बाक़ी है ? अक्षत तृतीया के मौक़े पर किया गया धणी भविष्यवाणी में देश का भविष्य क्या कहता है ?
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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस घांची समाज से तालुख रखते हैं, उसी समाज के बीच से 200 वर्ष पुरानी परंपरा में होने वाली धणी भविष्यवाणी में भविष्य की घटनाओं को लेकर क्या कुछ संकेत मिले हैं, जिसके तार इन दिनों पीएम मोदी से जोड़ा जा रहे हैं. भारत-पाकिस्तान में आए तनाव के तूफ़ान के बीच पीएम मोदी पर कौन सी बड़ी आफ़त आनी अभी बाक़ी है ? अक्षत तृतीया के मौक़े पर किया गया धणी भविष्यवाणी में देश का भविष्य क्या कहता है ?
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी की अक्षय तृतीया , शास्त्र अनुसार इस मौक़े पर दान-पुण्य से लेकर स्नान-व्रत किये जाने की परंपरा वर्षों पुरानी है, जो कि इस तिथि को अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी माना गया है, जिस कारण इस अबूझ मुहूर्त में मांगलिक कार्यों के साथ-साथ नये कार्य भी किये जाते हैं. धन प्राप्ति के लिए इस ख़ास मौक़े पर माँ लक्ष्मी संग श्री हरी की विशेष पूजा की जाती है. इसी मौक़े पर गरीबों और जरूरतमंदों को दान दिया जाता है, ताकी पुण्य की प्राप्ति हो सके. इसी के चलते इस पुनीत तिथि में जोधपुर की धरती में घांची समाज द्वारा ‘धणी' का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष भी इस अक्षय तृतीया से अगली अक्षय तृतीया तक के समय में होने वाली घटनाओं को जानने के लिए धणी अनुष्ठान किया गया, जिसमें भारत के भविष्य को लेकर सांकेतिक भविष्यवाणियाँ हुईं और इन्हीं भविष्यवाणियों को अब पीएम मोदी से जोड़ा जा रहा है.
अब जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध का माहौल है. पीएम मोदी की कूटनीतिक स्ट्राइक से पाकिस्तान में हाहाकार है. पहलगाम हमले का बदला लिये जाने की माँग उफान पर है. पाकिस्तान को ख़ुद के टुकड़ों में कटने की चिंता सता रही है..तो ऐसे में पीएम मोदी जिस घांची समाज से आते हैं, वहाँ से उनते आने वाले कल की भविष्यवाणी हुई है. बीते दिनों अक्षय तृतीया के मौक़े पर धणी अनुष्ठान आयोजन हुआ, जिसमें स्पष्ट संकेत ना मिलने के कारण किसी बड़े ख़तरे के क़यास लगाए जा रहे हैं.
दरअसल 200 वर्ष पुरानी इस परंपरा में अनुष्ठान के बाद दोनों बांस की पट्टिकाएं ऊपर-नीचे होती हैं, जिसे काल और सुकाल कहते हैं. ये पट्टिकाएँ इस बार ऊपर शूल तक नहीं पहुंच पाई. जिससे पता चला कि कहीं काल, तो कहीं सुकाल रहेगा. अनुष्ठान में काल ने सुकाल को नीचे खींचा, तो कभी सुकाल ने अकाल को नीच खींचा. यह राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत हैं. ऐसे में भारत के लिए युद्ध के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। इस पूरे अनुष्ठान में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलने पर राजनीतिक उठापठक और देश पर संकट की बात मानी जा रही है. मतलब ये कि कोई बड़ी आफ़त अभी पीएम मोदी पर आनी बाक़ी है. भविष्य को जानने का ये तरीक़ा जितना अनोखा है, उतना ही वर्षों पुराना है..भविष्य को जानने का ये तरीका ऐसा है कि यज्ञ वेदी के पास खंभ स्थापित किया जाता है. खंभ के आमने-सामने दो अबोध बालकों को मंत्रोच्चार से पवित्र कर खड़ा किया जाता है. इन बालकों के हाथ में बांस पट्टिकाएं थमाई जाती हैं. मंत्रोचार व यज्ञ भी चलता रहता है. सुकाल का संकेत देने वाली बांस पट्टिका पर कुकुम लगाया जाता है, जबकि काल का संकेत देने वाली पर काजल. मंत्रोचार व जाप से बालकों में भाव आने से बांस पट्टियों में हलचल होती है. वे स्वत: उपर-नीचे होने लगती हैं. अंतत संकेत का पता चलता है. जिसकी घोषणा समाज के बुजुर्ग करते हैं.
जो कि इस बार दोनों पट्टियां बराबर रही हैं।सुकाल की पट्टी उपर नहीं गई है. इसलिए यह साल भारी रहेगा. यानी की फसलें आधी होंगी. ज्यादा बारिश नुकसान करेगी, तो कहीं पूरा सूखा रहेगा. इस बार के संकेत बता रहे हैं कि युद्ध होकर रहेगा. कई तरह की विपदाएं आएंगी. देश में पीएम मोदी का तीसरा कार्यकाल और तीसरे कार्यकाल के एक साल पूरा हो जाने के तुरंत बाद पहलगाम आतंकी हमला, जिसके पीछे पाकिस्तान का हाथ. इन परिस्थितियों में जोधपुर की धणी भविष्यवाणी में क्या सत्यता ढूंढी जा सकती है .
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