बाबा वैद्यनाथ के भक्तों के लिए नयी सौगात, सुल्लतानगंज-कटोरिया रेल लाइन का काम होगा शुरू
सुल्तानगंज और देवघर को जोड़ने वाली यह प्रस्तावित रेल लाइन श्रद्धालुओं की यात्रा को पहले से कहीं अधिक आसान और समय की बचत करने वाली बनाएगी. इसके निर्माण से जहां धार्मिक पर्यटन को नई दिशा मिलेगी, वहीं स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों और सामाजिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा. यह परियोजना न केवल क्षेत्र की कनेक्टिविटी को मजबूत करेगी बल्कि शिवभक्तों के लिए आस्था और सुविधा का अनोखा मेल भी साबित होगी. जहां पहले भक्तों को लम्बी दूरी तय करके यहां आना पड़ता था वहीं इसके आने के बाद दूरी काफी हद तक कम हो जायेगी.
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भारतीय रेलवे ने बिहार के सुल्तानगंज–कटोरिया रेल लाइन का काम चालू करने का फैसला लिया है. ये फैसला बाबा वैद्यनाथ के भक्तों के लिए बेहद ही खास होने वाला है. इससे भागलपुर और देवघर सहित पूरे देश के शिव भक्तों को रेलगाड़ी के माध्यम से सफर करने में आसानी होगी. बता दें कि इस परियोजना की कुल लंबाई 74.8 किलोमीटर है और यह असरगंज, तारापुर और बेलहर के रास्ते में पड़ती है.
इस प्रस्तावित रेल खंड में सुल्तानगंज और कटोरिया के साथ-साथ असरगंज, तारापुर, बेलहर, श्रीनगर और सूयाबथान में ठहराव दिया गया है। कटोरिया एक जंक्शन स्टेशन बनेगा, अभी कटोरिया स्टेशन बांका–जसीडीह रेल लाइन पर पड़ता है.
बाबा वैद्यनाथ के भक्त के लिए होगी आसानी
परियोजना के पूरा हो जाने पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं के जल लेकर देवघर तक जाने में आसानी होगी. पूरी परियोजना पर नवीनतम अनुमानों के मुताबिक लगभग 1261 करोड़ रुपये की लागत आएगी. अभी सुल्तानगंज से देवघर की दूरी वाया भागलपुर, बांका, कटोरिया लगभग 160 किलोमीटर है जो नई लाइन के बन जाने के बाद घटकर लगभग 101 किलोमीटर हो जाएगी जिससे सुल्तानगंज और देवघर के बीच कनेक्टिविटी और भी बेहतर होगी. इसके अलावा बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में भी आपको बता देते हैं…
शिव भक्तों के लिए क्यों जरूरी है देवघर?
झारखंड राज्य का देवघर शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यहां मौजूद बाबा वैद्यनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इस ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है. क्योंकि मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की पुरानी से पुरानी इच्छा की पूर्ति होती है. इसके अलावा देवघर में मौजूद एक शक्तिपीठ भी है. जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं. यहां मां सती का ह्रदय गिरा था. इसलिए इसे ह्रदय शक्तिपीठ भी कहा जाता है. सावन के महीने में यहां लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर और भोले को जल चढ़ाने के लिए आते हैं. क्योंकि माना जाता है कि सावन के दौरान शिव और शक्ति दोनों मिलकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं. भारतीय रेलवे के इस निर्णय के कारण अब भक्तों के लिए यहां जाना और भी आसान हो जायेगा.
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