रूस पर दबाव या हिंदुस्तान पर निशाना? आखिर ट्रंप ने भारत पर क्यों लगाया टैरिफ, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का बड़ा खुलासा
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रूस पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए भारत पर सेकेंडरी टैरिफ़ जैसे कदम उठा रहे हैं. उनका लक्ष्य रूस की तेल आमदनी घटाकर यूक्रेन पर हमले रोकना है. वेंस ने भरोसा जताया कि अमेरिका युद्ध खत्म कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ और ट्रेड वार की नीति को लेकर दुनियाभर के कई बड़े देश खुलकर विरोध जता रहे हैं. इन सबके बीच भारत खास चर्चा में है क्योंकि ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को अपना अच्छा दोस्त बताते रहे हैं. लेकिन भारत के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने के उनके फैसले ने सभी को चौंका दिया. अब इस मुद्दे पर अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का बड़ा बयान सामने आया है. जिसमें उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को लेकर बड़ा ख़ुलासा किया है.
दरअसल, रूस–यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिशों में अमेरिका ने एक बार फिर आर्थिक दबाव की रणनीति अपनाई है. रविवार को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने साफ कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस पर आक्रामक आर्थिक दबाव बनाने के लिए भारत पर सेकेंडरी टैरिफ जैसे कदम उठाए हैं. इस बयान ने न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचाई है बल्कि भारत–अमेरिका रिश्तों को लेकर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
ट्रंप ने क्यों अपनाई की रणनीति?
एनबीसी न्यूज़ के कार्यक्रम ‘मीट द प्रेस’ में जेडी वेंस ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप का मकसद रूस की तेल अर्थव्यवस्था से होने वाली आय को कम करना है. अमेरिका का मानना है कि अगर रूस को तेल से कमाई नहीं होगी तो वह यूक्रेन पर युद्ध लंबे समय तक जारी नहीं रख पाएगा. वेंस के अनुसार, रूस पर केवल सैन्य दबाव पर्याप्त नहीं है. आर्थिक स्तर पर चोट पहुंचाना जरूरी है. यही वजह है कि ट्रंप प्रशासन ने भारत पर टैरिफ का हथियार चलाया ताकि रूस से तेल की बिक्री सीमित हो सके और मॉस्को की आमदनी घटे.
क्या अमेरिका बनेगा मध्यस्थ?
रूस–यूक्रेन युद्ध अब ढाई साल से ज्यादा लंबा हो चुका है. इस दौरान लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों मौतें हुईं. हाल ही में ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के बाद यह चर्चा और तेज हो गई कि अमेरिका इस युद्ध को खत्म कराने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है. जेडी वेंस ने भी भरोसा जताया कि तमाम मुश्किलों के बावजूद अमेरिका बातचीत की मेज पर रूस और यूक्रेन को ला सकता है. उन्होंने कहा कि अगर मॉस्को युद्ध रोकने को तैयार हो जाता है तो उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से जगह मिल सकती है, लेकिन हमले जारी रहे तो उसे अलग-थलग रहना पड़ेगा.
भारत पर टैरिफ क्यों?
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते पिछले एक दशक से लगातार मजबूत हो रहे थे. ट्रंप ने खुद कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छा दोस्त बताया था. लेकिन अब उन्हीं के फैसले भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने भारत से आने वाली वस्तुओं पर शुल्क दोगुना कर 50 प्रतिशत तक कर दिया है. अमेरिकी प्रशासन का आरोप है कि भारत रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीद रहा है और यह खरीद सीधे–सीधे मॉस्को के युद्ध को सहारा दे रही है. भारत ने इस आरोप को पूरी तरह खारिज कर दिया है. भारत का कहना है कि ऊर्जा जरूरतें और तेल खरीद का फैसला राष्ट्रीय हितों और बाज़ार की स्थितियों पर आधारित है.
अमेरिका का दोहरा रवैया
भारत पर टैरिफ़ लगाना और रूसी तेल खरीद की आलोचना करना अपने आप में सवाल खड़े करता है. क्योंकि चीन, जो रूस से तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा देश है, उस पर वॉशिंगटन ने कोई बड़ी आपत्ति दर्ज नहीं कराई. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अमेरिका का दोहरा रवैया है, जिसका सीधा असर भारत–अमेरिका रिश्तों पर पड़ सकता है. भारत की ओर से बार–बार कहा गया है कि उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं को केवल पश्चिमी देशों के दबाव में बदला नहीं जा सकता. खासतौर पर तब, जब यूरोप और अमेरिका खुद भी रूस से तेल और उसके उत्पाद खरीदते रहे हैं.
जयशंकर का सख्त संदेश
शनिवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका को करारा जवाब दिया. उन्होंने कहा कि यह वाकई अजीब है कि खुद को व्यापार–समर्थक बताने वाला प्रशासन दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहा है. जयशंकर ने स्पष्ट कहा, “अगर भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने पर आपको आपत्ति है, तो मत खरीदिए. कोई मजबूर नहीं करता लेकिन सच यह है कि यूरोप भी खरीदता है, अमेरिका भी खरीदता है. अगर पसंद नहीं है तो खरीदना बंद कर दीजिए.” उनका यह बयान बताता है कि भारत किसी भी बाहरी दबाव में अपनी ऊर्जा नीति बदलने वाला नहीं है.
भारत–अमेरिका रिश्तों पर असर
भारत और अमेरिका ने पिछले वर्षों में रक्षा, तकनीक, ऊर्जा और शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में गहरे सहयोग की नींव रखी है. क्वाड गठबंधन हो या इंडो–पैसिफिक रणनीति, दोनों देश साझेदारी को मजबूत बनाने की दिशा में बढ़ रहे थे. लेकिन ट्रंप प्रशासन के ये टैरिफ़ फैसले रिश्तों में खटास पैदा कर सकते हैं. भारत जहां रूस से तेल खरीद को अपनी ज़रूरत बताता है, वहीं अमेरिका इसे युद्ध को बढ़ावा देने वाला कदम मान रहा है. यह टकराव आने वाले दिनों में दोनों देशों के रिश्तों की परीक्षा ले सकता है.
दुनिया की नजरें भारत पर
रूस–यूक्रेन युद्ध के बीच भारत की भूमिका बेहद अहम हो गई है. भारत एक ओर रूस का पुराना साझेदार है, तो दूसरी ओर अमेरिका और पश्चिमी देशों का रणनीतिक साथी भी. यही कारण है कि हर बड़ा फैसला दुनिया की निगाह में रहता है. भारत बार–बार यह कह चुका है कि उसकी प्राथमिकता शांति और स्थिरता है. लेकिन ऊर्जा सुरक्षा के सवाल पर वह किसी समझौते के लिए तैयार नहीं है.
बता दें कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का बयान साफ करता है कि ट्रंप प्रशासन रूस पर दबाव बनाने के लिए हर हथकंडा अपनाने को तैयार है. लेकिन भारत पर टैरिफ़ जैसे कदम उठाना कहीं न कहीं रिश्तों को चुनौती देता है. भारत का रुख साफ है कि उसकी ऊर्जा जरूरतें और विदेश नीति केवल राष्ट्रीय हितों पर आधारित होंगी. अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में भारत और अमेरिका इन मतभेदों को कैसे सुलझाते हैं और वैश्विक राजनीति किस दिशा में बढ़ती है.
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