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'हम तैयार हैं' वाला PM मोदी का बयान, डोभाल का रूस दौरा, डिफेंस डील का रद्द होना…भारत के खामोश जवाब की गूंज से हिला अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए भारी टैरिफ के जवाब में भारत ने अपनी कूटनीतिक सक्रियता तेज कर दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा से हुई बातचीत इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही हैं.

Image: File Photo

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की, तब दुनिया देख रही थी कि भारत कैसे प्रतिक्रिया देगा. लेकिन भारत ने सिर्फ बयानबाजी नहीं की, बल्कि वैश्विक मंच पर अपने कदम तेज कर दिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी चीन यात्रा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा से फोन पर बातचीत,ये सभी घटनाएं भारत की रणनीतिक सक्रियता को बताती हैं.

ट्रंप का टैरिफ हमला और भारत की मुश्किलें

अमेरिका ने भारत से आयातित कई वस्तुओं पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लागू कर दिया है. यह दो चरणों में लागू होगा. पहला 7 अगस्त से और दूसरा 27 अगस्त से. इसका मतलब है कि कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया है. ट्रंप प्रशासन का यह कदम भारत के लिए केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक चुनौती भी है. एक तरफ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दूसरी तरफ रूस उसका पुराना और भरोसेमंद दोस्त. ट्रंप सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध नहीं रुका, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर सेंकेडरी सेंक्शन भी लगाया जा सकता है. भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए यह स्थिति असमंजस भरी है, लेकिन भारत का रुख स्पष्ट है. वह अपने नागरिकों को सस्ते तेल की आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है.

भारत का जवाब

एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह "किसानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे और भारी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं. वही भारत ने ट्रंप के टैरिफ को 'अनुचित' और 'दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगा. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा, “हमारे लिए किसानों के हित सर्वोपरि हैं. भारत कभी अपने मछुआरों, डेयरी किसानों और श्रमिकों के हक से समझौता नहीं करेगा.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि “हमें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है, और हम इसके लिए तैयार हैं.”

प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा

भारत के प्रधानमंत्री 30 अगस्त को जापान के दौरे पर जाएंगे और उसके बाद सीधे चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में भाग लेंगे. यह दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक होगा, क्योंकि 2020 के गलवान संघर्ष के बाद यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री मोदी चीन की धरती पर कदम रखेंगे. इस सम्मेलन में आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा और व्यापारिक सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा होगी. गौरतलब है कि इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल भी SCO के विभिन्न कार्यक्रमों के तहत चीन का दौरा कर चुके हैं. लेकिन पीएम की यात्रा को कूटनीतिक स्तर पर अलग नजर से देखा जा रहा है.

रूस में डोभाल और पुतिन की अहम मुलाकात

इस पूरे घटनाक्रम के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने क्रेमलिन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने भारत-रूस की रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने पर सहमति जताई. अमेरिका के दबाव के बीच यह मुलाकात एक सधा हुआ कदम माना जा रहा है, जिससे यह संकेत गया कि भारत किसी भी एक ध्रुव पर झुकने के बजाय संतुलन की नीति अपनाना चाहता है.

ब्राजील से भी बना सहयोग का पुल

ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बातचीत की. यह संवाद भी ऐसे समय पर हुआ जब ट्रंप सरकार ने ब्राजील पर भी भारी टैरिफ का ऐलान किया. बातचीत में दोनों नेताओं ने ‘एकतरफा टैरिफ नीति’ की आलोचना की और बहुपक्षीय व्यवस्था को मजबूत बनाए रखने पर सहमति जताई. पीएम मोदी ने ऊर्जा, रक्षा, स्वास्थ्य और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का भरोसा भी दिलाया.

भारत ने F-35 खरीदने से किया इनकार

भारत ने अमेरिका को स्पष्ट कर दिया है कि वह फिलहाल F-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने में दिलचस्पी नहीं रखता. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह जानकारी अमेरिकी अधिकारियों को दी जा चुकी है. F-35 अमेरिका का पांचवीं पीढ़ी का एडवांस्ड लड़ाकू विमान है, जिसे लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने विकसित किया है. सूत्रों के मुताबिक, मोदी सरकार निकट भविष्य में अमेरिका के साथ कोई बड़ा रक्षा सौदा करने के मूड में नहीं है. इसके बजाय भारत ऐसी साझेदारियों में रुचि रखता है जहां तकनीकी ट्रांसफर हो और देश में ही उत्पादन की सुविधा मिले. यानी, भारत अब केवल खरीददार नहीं, बल्कि रक्षा निर्माण में भागीदार बनना चाहता है.

भारत का संदेश साफ है

इन तमाम घटनाओं से एक बात साफ हो गई है कि भारत अब सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि पहल करता है. अमेरिका के आर्थिक प्रहार के जवाब में भारत ने तीन अलग-अलग दिशाओं में चीन, रूस और ब्राजील कूटनीतिक कदम बढ़ाए हैं. यह भारत की परिपक्व और संतुलित विदेश नीति का प्रतीक है, जो न सिर्फ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर रही है, बल्कि वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में उभर रही है.

बताते चलें कि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ हमले के जवाब में भारत ने जो कदम उठाए हैं, वे केवल कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं नहीं हैं, बल्कि यह साफ संदेश है कि भारत अब वैश्विक मंच पर मूकदर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभा रहा है. आर्थिक दबावों के बीच भी भारत अपनी नीति, संप्रभुता और संतुलन को बरकरार रखने की दिशा में डटा हुआ है.

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