नेतन्याहू सरकार पर संकट के बादल... इजरायल में संसद भंग करने का बिल पेश, सहयोगी दलों की चेतावनी से बढ़ी चुनौती
इजरायल में बुधवार को विपक्ष ने संसद को भंग करने का विधेयक पेश कर दिया, जिससे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की गठबंधन सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े हो गए हैं. इन दलों ने चेतावनी दी है कि अगर धार्मिक छात्रों को सैन्य सेवा से छूट देने वाला विवादास्पद विधेयक पास नहीं किया गया, तो वे भी संसद भंग करने के प्रस्ताव का समर्थन कर सकती हैं.

इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू की गठबंधन सरकार इस समय गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रही है. बुधवार को विपक्ष ने संसद को भंग करने का विधेयक पेश कर दिया, जिससे सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े हो गए हैं. इस संकट की जड़ में नेतन्याहू की सहयोगी अति-रूढ़िवादी पार्टियों की नाराजगी है. इन दलों ने चेतावनी दी है कि अगर धार्मिक छात्रों को सैन्य सेवा से छूट देने वाला विवादास्पद विधेयक पास नहीं किया गया, तो वे भी संसद भंग करने के प्रस्ताव का समर्थन कर सकती हैं.
जानकारी के मुताबिक, पिछले कुछ हफ्तों में इस मसले को सुलझाने के लिए गठबंधन दलों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है. सैन्य सेवा से धार्मिक छात्रों को छूट देने का मुद्दा इजरायली राजनीति में कई दशकों से तनाव का विषय रहा है. हालांकि, हमास के साथ जारी युद्ध के 21वें महीने में यह विवाद और अधिक संवेदनशील बन गया है. नेतान्याहू की सरकार के लिए यह स्थिति बेहद नाजुक है क्योंकि एक ओर वे युद्धकालीन स्थिरता बनाए रखना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर गठबंधन सहयोगियों की मांगों को टालना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. यदि अति-रूढ़िवादी दल विपक्ष के साथ खड़े हो गए, तो सरकार गिर सकती है और देश समय से पहले आम चुनाव की ओर बढ़ सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले कुछ दिन नेतन्याहू सरकार के भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं.
संसद भंग करने के प्रस्ताव पर संकट गहराया
इजरायल सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अब भी राजनीतिक समझौते की संभावनाएं बनी हुई हैं. मंगलवार को कई इज़रायली मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि संसद भंग करने के प्रस्ताव पर मतदान को एक हफ्ते तक टालने की कोशिश की जा रही है, ताकि गठबंधन दलों के बीच समाधान की कोई गुंजाइश निकाली जा सके. हालांकि अगर यह प्रस्ताव पास हो भी जाता है, तब भी सरकार तुरंत नहीं गिरेगी, क्योंकि इज़रायल की कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, संसद भंग करने वाले बिल को कानून बनने से पहले चार अलग-अलग चरणों में संसद में पारित होना पड़ता है. इन प्रक्रियाओं में समय लग सकता है, जिससे सरकार को कुछ राहत मिल सकती है.
सहयोगी दल क्यों हुए नाराज?
बीते सप्ताह 'यूनाइटेड टोरा जूडाइज़्म' (UTJ) पार्टी ने स्पष्ट कहा था कि यदि कोई समाधान सामने नहीं आया, तो वह संसद भंग करने के पक्ष में वोट करेगी. इसी कड़ी में इस सोमवार को नेतन्याहू की एक और बड़ी सहयोगी पार्टी 'शास' ने भी सार्वजनिक तौर पर चेतावनी दी कि यदि बुधवार तक कोई सहमति नहीं बनी, तो वह भी इस विधेयक का समर्थन करेगी. 'शास' प्रवक्ता आशेर मेदिना ने इजरायली पब्लिक रेडियो से बातचीत में कहा, “हमें दक्षिणपंथी सरकार गिराने में खुशी नहीं है, लेकिन अब हम एक तरह के ब्रेकिंग पॉइंट पर आ गए हैं. अगर आख़िरी समय तक कोई समाधान नहीं निकला, तो 'शास' संसद भंग करने के प्रस्ताव के पक्ष में वोट करेगा.”
बताते चलें कि इस पूरे विवाद की जड़ में है धार्मिक छात्रों को सैन्य सेवा से छूट देने का मुद्दा, जिसे लेकर नेतन्याहू की दोनों अति-रूढ़िवादी सहयोगी पार्टियां बेहद नाराज़ हैं. 2017 में इजरायल की सुप्रीम कोर्ट ने इस छूट को असंवैधानिक करार दिया था, लेकिन तब से अब तक कई सरकारें इस पर नया कानून पारित करने में विफल रही हैं. फिलहाल अधिकारियों का कहना है कि संसद भंग करने की प्रक्रिया महीनों तक चल सकती है. इस बीच इजरायल की गठबंधन की सरकार ने बुधवार को संसद की कार्यसूची में दर्जनों अन्य बिल जोड़ दिए हैं ताकि समय खींचा जा सके. नेतन्याहू की 'लिकुड' पार्टी संसद की उस समिति को भी नियंत्रित करती है जो बात का निर्यन करेगी कि प्रस्ताव कितनी तेजी से आगे बढ़ेगा.