'राम का विरोध किया इसलिए...', चीन के 'प्यादे' केपी ओली ने भारत के खिलाफ उगला जहर, सत्ता से बेदखली का ठीकरा फोड़ा
नेपाल में Gen Z आंदोलन से सत्ता पलट गई है. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सत्ता गंवाने का ठीकरा भारत पर फोड़ा और कहा कि लिपुलेख व राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भारत को चुनौती देने के कारण उन्हें पद से हटना पड़ा. ओली फिलहाल सेना की सुरक्षा में शिवपुरी बैरक में हैं.
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नेपाल इस समय भारी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है. देश में सत्ता विरोधी प्रदर्शनों ने ऐसा रूप लिया कि तख्तापलट की नौबत आ गई. खास बात यह रही कि यह आंदोलन युवाओं की अगुवाई में हुआ और इसे Gen Z आंदोलन नाम दिया गया. आंदोलन इतना प्रभावी साबित हुआ कि सत्ता बदल गई और इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का बड़ा बयान सामने आया है. ओली ने अपनी नाकामियों का ठीकरा भारत पर फोड़ने की कोशिश की है और कहा कि अगर वे भारत के सामने झुककर रहते तो शायद उनकी कुर्सी बची रहती.
ओली का भारत विरोधी बयान
ओली ने अपनी पार्टी सीपीएन (यूएमएल) के महासचिव को लिखे एक पत्र में कहा कि लिपुलेख और अयोध्या स्थित राम मंदिर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सवाल उठाना उनके सत्ता गंवाने का कारण बना. उनका कहना है कि अगर वे भारत के सामने झुककर रहते तो लंबे समय तक प्रधानमंत्री बने रहते. ओली ने साफ तौर पर कहा कि 'मैंने भारत को चुनौती दी, अयोध्या पर विवादित बयान दिया, यही वजह है कि मुझे राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी.' उन्होंने यहां तक कहा कि अयोध्या और राम मंदिर को लेकर उनके बयानों के चलते उनकी सरकार चली गई और आज उन्हें सेना की सुरक्षा में शिवपुरी बैरक में रहना पड़ रहा है.
भारत और नेपाल के बीच किस बात का है विवाद?
लिपुलेख दर्रा विवाद भारत और नेपाल के बीच लंबे समय से चला आ रहा सीमा विवाद है. यह विवाद कालापानी और काली नदी के उद्गम स्थल से जुड़ा है. नेपाल सरकार का दावा है कि नदी का उद्गम लिपियाधुरा से होता है, जिसके चलते कालापानी और लिपुलेख नेपाल के हिस्से में आते हैं. जबकि भारत का मानना है कि नदी का उद्गम उत्तराखंड के कालापानी गांव के पास है, इसलिए यह इलाका भारत का अभिन्न हिस्सा है. यही मुद्दा 2020 में उस समय ज्यादा चर्चा में आया जब भारत ने लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया. नेपाल ने इसका विरोध किया और ओली सरकार ने इस विवाद को राजनीतिक रंग दिया.
राम मंदिर पर ओली का विवादित बयान
साल 2020 में ही ओली ने प्रधानमंत्री रहते हुए एक और विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि भगवान राम भारतीय नहीं बल्कि नेपाली थे. उनका दावा था कि असली अयोध्या नेपाल के बीरगंज के पास स्थित है और भारत ने एक “विवादित अयोध्या” का निर्माण किया है. इस बयान ने भारत-नेपाल रिश्तों में तनाव और गहरा कर दिया था. अब सत्ता से बेदखल होने के बाद भी ओली ने उसी मुद्दे को दोहराया और इसे अपने पतन की वजह बताया.
नेपाल में क्यों भड़का Gen Z आंदोलन?
नेपाल में हालिया अशांति का सबसे बड़ा कारण सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाया गया बैन माना जा रहा है. सरकार ने फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाबंदी लगा दी थी. इस फैसले ने युवाओं में गुस्सा भड़का दिया, खासकर जेन-ज़ी वर्ग में. सोशल मीडिया पहले से ही बेरोजगारी और असंतोष से जूझ रहे युवाओं के लिए एकमात्र माध्यम था, जहां वे अपनी आवाज़ उठा सकते थे. जब इसे बंद किया गया तो गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा. देखते ही देखते आंदोलन हिंसक हो गया. कई जगह आगजनी, तोड़फोड़ और झड़प की घटनाएं सामने आईं. खबरों के मुताबिक इस हिंसा में कई लोगों की मौत भी हुई है.
बेरोजगारी और नाराजगी ने दी आंदोलन को हवा
नेपाल में बेरोजगारी लंबे समय से गंभीर समस्या बनी हुई है. लाखों युवा नौकरी के लिए विदेश जाने को मजबूर हैं. देश के अंदर रोजगार की कमी और आर्थिक अस्थिरता ने युवाओं में गहरी नाराजगी पैदा कर रखी है. सोशल मीडिया बैन ने इस नाराजगी को और तेज़ कर दिया. यही वजह रही कि आंदोलन इतना व्यापक और उग्र हो गया कि सरकार का तख्तापलट हो गया.
भारत पर क्यों साध रहे हैं ओली निशाना?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओली अपने पतन का ठीकरा भारत पर फोड़कर दो फायदे उठाना चाहते हैं. पहला, वे अपने समर्थकों के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि उन्होंने भारत जैसी बड़ी ताकत को चुनौती दी थी. दूसरा, वे इस बहाने घरेलू असंतोष से ध्यान हटाकर राष्ट्रवाद का मुद्दा भुनाना चाहते हैं. हालांकि, यह साफ है कि नेपाल में उठी जेन-ज़ी की आवाज़ ने उनकी कुर्सी छीनी है और इसके पीछे मुख्य कारण जनता की नाराजगी है, न कि भारत.
बताते चलें कि नेपाल की मौजूदा स्थिति एक गहरी सच्चाई की ओर इशारा करती है. युवा अब किसी भी सरकार की गलत नीतियों को चुपचाप स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. Gen Z आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि नई पीढ़ी अपने अधिकारों के लिए लड़ने से पीछे नहीं हटेगी. वहीं, ओली जैसे नेताओं के लिए यह सबक है कि जनता की नाराजगी को भारत-विरोधी बयानबाजी से दबाया नहीं जा सकता. नेपाल का यह तख्तापलट सिर्फ राजनीतिक बदलाव नहीं बल्कि एक नई पीढ़ी के उभार की घोषणा भी है.
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