PM मोदी के चीन दौरे से अमेरिका बेचैन, ट्रंप प्रशासन के बदले सुर, कहा- भारत हमारा रणनीतिक साझेदार
अमेरिका भले ही भारत पर सख्त रवैया अपना रहा हो, लेकिन उसे डर है कि ज्यादा दबाव से भारत चीन के करीब जा सकता है. पीएम मोदी के संभावित चीन दौरे को देखते हुए अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत को 'रणनीतिक साझेदार' बताया और दोनों देशों के बीच 'स्पष्ट और ईमानदार संवाद' की बात दोहराई है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के खिलाफ भले ही एक के बाद एक सख्त फैसले ले रहे हों, लेकिन उनके नीति निर्माताओं की नींद उड़ी हुई है. अमेरिका को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं ज्यादा दबाव की सूरत में भारत चीन की ओर कूटनीतिक रूप से न झुक जाए. इसके संकेत मिलने भी शुरू हो गए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्तावित चीन दौरा इसी रणनीतिक समीकरण को हवा देता दिख रहा है. जिसमें ट्रंप प्रशासन की बेचैनी को बढ़ा दिया है.
दरअसल, खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं. यह दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि पिछले सात सालों में यह मोदी का पहला चीन दौरा होगा. ऐसे समय में जब भारत और अमेरिका के रिश्तों में व्यापार, तेल और रणनीतिक मसलों को लेकर तनातनी बनी हुई है, मोदी का यह कदम विश्व राजनीति को नया मोड़ दे सकता है.
अमेरिका का सतर्क रुख
भारत और चीन की नजदीकी को देखते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के शीर्ष अधिकारी टॉमी पिगॉट ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अहम बयान दिया. उन्होंने भारत को “रणनीतिक साझेदार” करार दिया और यह स्पष्ट किया कि अमेरिका भारत के साथ “स्पष्ट और ईमानदार संवाद” जारी रखना चाहता है. यह बयान उस समय आया है जब अमेरिका को यह डर सता रहा है कि भारत कहीं चीन के साथ अपने रिश्ते और मजबूत न कर ले. पिगॉट ने यह भी कहा कि अमेरिका और भारत के बीच हर मुद्दे पर सहमति जरूरी नहीं है, लेकिन ईमानदार बातचीत और कूटनीतिक संवाद दोनों देशों के हित में है. उन्होंने माना कि कुछ मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं, जैसे कि रूस से तेल खरीद और व्यापार असंतुलन, लेकिन इन मुद्दों को सुलझाने के लिए संवाद ज़रूरी है.
ट्रंप की नीति और भारत पर दबाव
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया. यह कदम अमेरिकी व्यापार नीति का हिस्सा तो था, लेकिन इससे भारत में नाराजगी जरूर फैली है. इस आर्थिक दबाव के जवाब में भारत अपनी विदेश नीति को और ज्यादा संतुलित बना रहा है. भारत अब चीन के साथ भी संबंधों को तटस्थ तरीके से सुधारने का संकेत दे रहा है. इसका बड़ा प्रमाण पीएम मोदी का आगामी चीन दौरा है, जो अमेरिका के लिए कूटनीतिक चेतावनी से कम नहीं.
भारत की रणनीति
भारत की विदेश नीति हमेशा से “गुटनिरपेक्ष” और “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि” की भावना पर आधारित रही है. भारत न तो अमेरिका का पक्का दोस्त कहलाना चाहता है, और न ही चीन का विरोधी. भारत की रणनीति है कि वह दोनों शक्तियों के साथ अपने सामरिक और आर्थिक संबंधों को इस तरह बनाए रखे जिससे देशहित को नुकसान न हो. भारत का रूस के साथ भी गहरा सामरिक रिश्ता रहा है. रूस से तेल खरीदने के फैसले को भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों से जोड़ता है, और अमेरिका के दबाव में आने से इनकार करता है.
अमेरिका की बढ़ती बेचैनी
अमेरिका को इस बात का डर है कि यदि भारत को बार-बार चेतावनी और दबाव की नीति से घेरा गया, तो वह चीन के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध और मजबूत कर सकता है. यह स्थिति अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है, जिसमें भारत एक अहम स्तंभ माना जाता है. अमेरिकी विदेश विभाग के बयानों में इसी बेचैनी की झलक दिखती है. वे बार-बार यह दोहरा रहे हैं कि भारत के साथ उनका संबंध “स्पष्ट, ईमानदार और स्थायी” है, लेकिन साथ ही राष्ट्रपति ट्रंप लगातार सख्त निर्णय लेते जा रहे हैं. यह द्वंद्व अमेरिका की नीतियों में भ्रम और चिंता दोनों को दर्शाता है.
क्या भारत झुकेगा चीन की ओर?
भारत की विदेश नीति किसी भी दबाव में नहीं झुकती. हां, वह अवसरों की तलाश में जरूर रहता है. अमेरिका यदि अपनी नीतियों में संतुलन नहीं लाया, तो भारत अपनी प्राथमिकताओं को पुनः परिभाषित करने से पीछे नहीं हटेगा. प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा केवल एक सम्मेलन में भागीदारी नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है कि भारत आत्मनिर्भर है, और किसी एक देश के भरोसे नहीं बैठा है.
बताते चलें कि भारत, अमेरिका और चीन के बीच इस समय जो “शतरंज” चल रही है, उसमें भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह अब एक आत्मनिर्भर और कूटनीतिक शक्ति बन चुका है. इसलिए अमेरिका की चिंता वाजिब है, लेकिन समाधान सिर्फ संवाद में है.
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